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आदिवासियों पर हो रहे अन्याय के खिलाफ तहसीलदार को सौंपा ज्ञापन, उग्र आंदोलन की दी चेतावनी

प्रशासन के ढीले रवैये के चलते आदिवासियों को उनका हक नहीं मिल पा रहा है. आदिवासी संगठन उग्र आंदोलन की चेतावनी दी है. क्षेत्र में आदिवासियों पर जुल्म के खिलाफ ज्ञापन भी सौंपा है.

Tribal atrocities
आदिवासियों पर अत्याचार

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Published : Aug 10, 2020, 6:08 PM IST

पन्ना। गुनौर थाने में पदस्थ आरक्षक राघव पांडे का अनुसूचित जाति-जनजाति पर बढ़ता जुल्म और दबंग कार्यशैली के अलावा खुलेआम भ्रष्टाचार और वसूली से लोगों का जीना मुहाल हो गया है, जिससे आक्रोशित आदिवासी बनवासी संगठन के जिला प्रभारी एवं खाद्य आपूर्ति विभाग के जिला अध्यक्ष केपी सिंह बुंदेला के नेतृत्व में आदिवासियों के साथ तहसील परिसर गुनौर में तहसीलदार राजेंद्र मिश्रा को चार सूत्रीय ज्ञापन सौंपकर उच्च स्तरीय जांच कर इंसाफ की मांग की है.

बुंदेला ने कहा कि ग्राम पंचायत गुनौर के छिगम्मा गांव की रानी गौड़ महिला का परिवार इन दिनों काफी परेशान है. कुछ दिन पहले गांव के दबंगों ने महिला के पति से मारपीट की थी. जिसकी शिकायत रानी गौड़ एवं उसके पति ने थाना गुनौर में लिखित रूप में की थी. आरक्षक राघव पांडे ने मामला दर्ज करने के बदले महिला से 10 हजार रुपए की मांग की थी.

महिला जंगल से लकड़ी बीनकर और उसे बेचकर पाई-पाई जोड़कर 2000 रूपए जुटाई थी, जिसे आरक्षक ने ले लिया और 8 हजार रुपए की मांग कर रहा है. रुपए नहीं देने पर फर्जी मामले में फंसाने की धमकी दे रहा है. पीड़ित ने अनुविभागीय दंडाधिकारी सुरेश कुमार गुप्ता के सामने मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपकर इच्छा मृत्यु की मांग की है. इन दिनों आरक्षक राघव पांडे के आतंक से उसका परिवार दहशत में है.

वहीं दूसरा मामला थाना अमानगंज के मझौली का है, जहां रामलाल आदिवासी को शासन से 4 लाख 52 हजार रुपए मिले थे. पीड़ित की रकम को अमानगंज के संतोष सिंह परिहार ने हड़प ली, जिसकी शिकायत SP से की गई थी, जिसकी जांच कराकर आरोपी पर कार्रवाई की मांग की गई है. तीसरा मामला बरबसपुरा गांव का है, जहां अनुसूचित जाति की महिला सरपंच रतिया बाई अहिरवार ने रोजगार सहायक व सचिव के भ्रष्टाचार से परेशान होकर अपने पद से इस्तीफा दे दिया है.

आदिवासी बनवासी दलित महासंघ बुंदेलखंड के बैनर तले 1 से 9 अगस्त तक खूंटा गाड़ो जमीन जोतो आंदोलन के तहत जन जागरण अभियान चलाया गया था. संगठन ने कई गांवों का दौरा किया और पता चला कि सैकड़ों आदिवासी बनवासी 2005 के पहले से खेती करते आ रहे हैं, जिनके पास कब्जे के पुख्ता सबूत हैं. प्रशासन के ढीले रवैये के चलते आदिवासियों को उनका हक नहीं मिल पा रहा है. आदिवासी संगठन उग्र आंदोलन की चेतावनी दी है.

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