पन्ना। एक तरफ सरकारें आदिवासियों के विकास के लिए तमाम योजनाओं लागू करने का दावा करती हैं. लेकिन इन योजनाओं की जमीनी हकीकत कुछ और ही है. जिला मुख्यालय से महज चंद किलोमीटर की दूरी पर बसे गांव मांझा की बदहाल हालात इन तमाम दावों की पोल खोल देतीं हैं. मांझा एक छोटा सा गांव है. जहां करीब 40 आदिवासी परिवार रहते हैं. लेकिन इनकी जिंदगी नरक से कम नहीं हैं. न तो रहने को घर है और न ही इनके पास रोजगार. आस-पास के इलाकों से लकड़ियां इकट्ठा करके उन्हें बेचकर इनका गुजारा चलता है.
ये परिवार सरकार की प्रधानमंत्री आवाज योजना, प्रधानमंत्री सड़क योजना, उज्जवला जैसी तमाम योजनाओं से कोसों दूर हैं. मिन्नतों के बाद जैसे-तैसे पीएम आवास और गैस सिलेंडर की व्यवस्था हुई तो सिर्फ दो परिवारों को आवास और तीन परिवारों को उज्जवला योजना का लाभ मिल पाया है. बाकि झुग्गी झोपड़ियों में अपनी जिंदगी काट रहे हैं.