ओरछा।मध्यप्रदेश के बुदेलखंड स्थित निवाड़ी जिले में छोटा सा कस्बा है ओरछा. प्राकृतिक खूबसूरती के साथ यह जगह धार्मिक नगरी के रूप में भी जानी जाती है. देश विदेश से हर साल बड़ी संख्या में पर्यटक और श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. यहां बेतवा नदी किनारे स्थित ओरछा में विराजमान हैं भगवान राजा राम. कहा जाता है कि क़रीब 5 सौ वर्ष पूर्व ओरछा की रानी गणेश कुंवर राजे अयोध्या से रामलला को अपने साथ लेकर आई थीं और यहां उन्हें राजा बनाकर विराजमान किया था. ओरछा के रामराजा मंदिर के महंत आचार्य पं. वीरेंद्र कुमार बिदुआ ने इस मंदिर के इतिहास और महत्व के साथ ही भगवान राम के यहां राजा के रूप में पूजे जाने की पौराणिक कहानी पर विस्तार से चर्चा की ईटीवी भारत संवाददाता पीयूष श्रीवास्तव से.
राजा के साथ श्रीकृष्ण ने किया नृत्य :ओरछा नगरी एक समय ओरछा राज्य का हिस्सा थी. जो बुंदेला राजघराने द्वारा स्थापित किया गया था. मंदिर के महंत आचार्य पं. वीरेंद्र कुमार बिंदुआ ने बताया "क़रीब पांच सौ वर्ष पूर्व ओरछा घराने के राजा मधुकर शाह जो कृष्ण उपासक थे, उनकी रानी गणेश कुंवर राजे राम की अनुयायी थीं. एक बार राजा ने रानी से कहा कि भगवान राम को छोड़कर कृष्ण की आराधना करें लेकिन रानी ने इस बात से इनकार कर दिया. उन्होंने राजा से भगवान कृष्ण की उपासना और ख़ुद भगवान राम की उपासना करने की बात कही. तुम्हारे राम कैसे हैं, हमारे कृष्ण हमारे साथ नृत्य करते हैं. जब राजा ने नृत्य किया तो भगवान श्री कृष्ण भी उनके साथ नृत्य करने लगे. उन दोनों के नृत्य करने पर आकाश से स्वर्ण पुष्प (सोने के फूल) की वर्षा हुई. आज वे स्वर्ण पुष्प राजा के यहां रखे हुए हैं."
सरयू में प्राण त्याग रही रानी को मिले राम :मान्यता है कि ओरछा के राजा मधुकर शाह ने रानी से भगवान के दर्शन करने की इच्छा व्यक्त की थी. उन्होंने रानी से कहा कि हमारे कृष्ण तो आपने देख लिये. अब अपने भगवान राम के दर्शन तो करायें. इस बात पर रानी अयोध्या गयीं. उन्होंने वहां सरयू के किनारे तपस्या की लेकिन भगवान नहीं आये. रानी गणेश कुंवर राजे ने उसी सरयू नदी में प्राण त्यागने के लिये छलांग लगाने का प्रयास किया लेकिन तभी किसी ने आवाज लगायी 'ठहरो'. जब रानी देखा तो एक छोटा सा बालक उनकी गोदी आ कर बैठ गया. रानी समझ गई कि ये भगवान श्रीराम ही हैं, जो बाल रूप में उनके पास आए हैं.
भगवान राम ने रखी चार शर्तें :रानी ने भगवान राम से अपने साथ ओरछा चलने की प्रार्थना की. जिस पर श्रीराम ने हामी भर दी. लेकिन कुछ शर्तें भी रखी. पहली शर्त थी कि वे सिर्फ़ पुख्य नक्षत्र में ही चलेंगे और पैदल ही यात्रा करेंगे. शास्त्रों के अनुसार पुख्य नक्षत्र की सीमा 23 से 26 घंटे की होती है. उन्होंने दूसरी शर्त रखी कि पुख्य नक्षत्र की समाप्ति पर वे जहां बैठ जाएंगे वहीं विराजमान हो जाएंगे. वे उस जगह से नहीं उठेंगे. तीसरी शर्त रखते हुए भगवान राम ने कहा "आपने हमें भगवान माना है तो मैं किसी राजा के अधीन नहीं रहूंगा, एक भक्त के अधीन रह सकता हूं लेकिन राजा के नहीं." जिस पर रानी ने उन्हें राजा बनाने की बात कही. जिस पर भगवान प्रसन्न हो गये और पैदल यात्रा करते हुए उन्हें अपने साथ ले जाने के लिए रानी सभी शर्तें मानती गईं.
राजा बनकर राम संभालते हैं राजपाठ :भगवान राम रानी के साथ चलते हुए ओरछा आ गये, लेकिन उनके आगमन तक राजा द्वारा बनवाया जा रहा मंदिर अधूरा था. उधर, समय के अनुसार रात्रि हो गई. ऐसे में रानी ने जो श्रीराम को अपनी गोदी में लेकर आयी थी, उन्होंने भगवान राम को अपनी रसोई में बैठा दिया. क्योंकि शास्त्रों के अनुसार मंदिर के बाद दूसरा सबसे पवित्र स्थान रसोई घर को ही माना गया है. जब राजा मधुकर शाह और रानी गणेशी बाई ने भगवान राम से मंदिर में चलने के लिए कहा तो भगवान ने उसे अस्वीकार कर दिया. उन्होंने कहा कि वे जहां बैठ गये, अब वहीं रहेंगे. इसके बाद राजा मधुकर शाह ने भगवान राम को राजा बना दिया और समस्त राजपाठ सौंप दिया. तब से ही ओरछा में विराजमान भगवान राम को भगवान राजा राम सरकार के रूप में पूजा जाता है. ये सभी जानते हैं कि राजा को पहले सलामी दी जाती है, उसी प्रकार रामराजा सरकार पर भी शुरू से ही एक जवान सलामी लगता था. हाल ही में कुछ दिन पहले से एक चार की सलामी लग रही है, जो उनकी भव्यता को दर्शाता है.