नीमच।आटा और दाल के बाद अब मसालों में तेजी का रुख है, पिछले 9 सालों में महंगाई ने सुरसा के मुंह की तरह बढ़त हासिल की है. खाने की थाली पर महंगाई की आग का नतीजा यह कि मजदूर और मध्यम वर्ग बेहद परेशान है. देश में गेहूं, मक्का, चावल और मसालों फसलों का उत्पादन कम होने से इस साल महंगाई पर कंट्रोल बहुत मुश्किल है.
पेट की भूख और महंगाई की आग:बढ़ती महंगाई ने परिवार के जिम्मेदार लोगों का भार और बढ़ा दिया है, बेकार बेठे लोगों को आटा-दाल के भाव सुनने वालों को भी अब आटा-दाल की घर में डिमांड होने पर ताव आने लगता है. जानकारों की मानें तो देशभर में मक्का का उत्पादन पिछले तीन वर्षों की तुलना में 43 प्रतिशत ही रह गया है, इस बार देश में चावल का उत्पादन भी कम हुआ है जबकि भारत में उत्पादित चावल को 154 देशों में निर्यात किया जाता है. सरकार भले ही निर्यात में कमी लाने का प्रयास कर रही है, लेकिन पेट की भूख और महंगाई की आग के परेशान लोग बेबस नजर आ रहे हैं.
गेहूं और मक्का भी हुए महंगे:लोगों की जिंदगी और जीवन पर महंगाई बढ़ा असर डाल रही है. हाल की रिपोर्ट आम लोगों की रसोई में ओर टेंशन बढ़ाने वाली है, कारण है कि तेल, गेहूं, आटा के बाद अब मसालों में के भाव भी दो गुना हो गए हैं. कमजोर वर्ग कांदा यानी प्याज व मक्का की रोटी और साग के सहारे दिन काटता रहा है, लेकिन अब मक्का का उत्पादन भी आधा रह गया है, नतीजा यह की मक्का भी महंगी हो गई है.
महंगाई ने देखा मसालों का घर:महंगाई ने बेमौसम की सब्जियों और बेमौसम फलों पर नजर गड़ाए हुई थी, लेकिन अब महंगाई ने मसालों का घर भी देख लिया है. आम लोगों की रसोई में दाखिल होकर महंगाई अब स्वाद और सेहत पर असर डालने का काम कर रही है. बता दें कि साल भर पहले गेहूं 19 से 20 रुपये किलो में सहज रुप से उपलब्ध था, पिछले 6 माह से गेहूं के भाव 25 से 30 रुपये किलो हो गए हैं. नतीजा यह कि आटा 35 से 40 रुपये किलो में उपलब्ध हो रहा है.