नीमच।नीमच जिले की मनासा तहसील में गांव भाटखेड़ी के प्रगतिशील औषधीय उत्पादक किसान कमलाशंकर विश्वकर्मा ने औषधीय फसलों की खेती के क्षेत्र में नवाचार किया है. जिसे देखने दूर दूर से किसान आ रहे है और लाभ ले रहे है. हाईटेक तकनीक अपनाकर किसान द्वारा खेत में तरह-तरह की औषधियों को संरक्षित करने का कार्य भी किया जा रहा हैं. उनके खेत पर कौंच बीज, नीली अपराजिता, कंटकारी, शिवलिंगी, छोटी और बड़ी दूधी, शतावरी, मूषपर्णी, अश्वगंधा, अरंडी, नीम-गिलोय औषधियां उपलब्ध है.
हाईटेक तकनीक ने बदली परंपरागत खेती केंद्रीय मंत्री के रह चुके हैं सलाहकार
कमलाशंकर विश्वकर्मा ने माइक्रोबायोलॉजी के साथ-साथ समाज कार्य एवं पत्रकारिता की पढ़ाई की है. पूर्व में केंद्रीय मंत्री फग्गनसिंह कुलस्ते के सलाहकार भी रह चुके हैं और वर्तमान में मानवाधिकार आयोग के नीमच जिले के सदस्य भी है. ग्रामीण क्षेत्र से लगाकर कई बड़ी हस्तियों के सम्पर्क में रहकर भी एक छोटे से ग्राम भाटखेड़ी क्षेत्र में औषधीय फसलों के उत्पादन वृद्धि और प्रजाति संकलन पर अनुसंधान कार्य कर रहे हैं.
बांस के खेत में औषधीय फसल
किसान कमलाशंकर ने राष्ट्रीय बांस मिशन में लगाए गए बांस के खाली पड़े खेत में नवाचार करते हुए अंतरवर्ती फसल के रूप में शतावरी और अश्वगंधा की फसल लगाई है. ताकि जब तक बांस की फसल बड़ी होगी तब तक उनके बीच में जमीन कंद वाली औषधीय फसलें मुनाफे का सौदा रहेगी. देश भर में अधिकतर जगह बांस की खेती करने वाले किसान खेत को खाली ही छोड़ देते हैं, जिससे उनको अधिक मुनाफा नहीं मिल पाता है जिस कारण वे इसे घाटे का सौदा मानते है.
संतरे के पौधों के बीच लगाए औषधीय पौधे
राष्ट्रीय बांस मिशन के अंतर्गत शासन द्वारा किसान को वन विभाग के माध्यम से 120 रूपए प्रति पौधे के मान से अनुदान दिया जाता है. किसान ने उद्यानिकी विभाग एवं नरेगा की मदद से नंदन फलोद्यान में संतरे के पौधों के बीच भी शतावरी और अश्वगंधा लगाई है. इस योजना में भी शासन के द्वारा किसान को अनुदान दिया जाता है. किसान ने सभी फसलों के लिए जैविक खाद एवं जैविक फफूंद नाशक, नीम तेल, पीले और नीले ट्रैप का प्रयोग किया है.