नरसिंहपुर।द्वारका पीठ शंकराचार्य का राजकीय सम्मान के साथ हजारों लोगों की उपस्थिति में परमहंसी गंगा आश्रम के परिसर में भू समाधि दी गई. इस दौरान संत और देश के विभिन्न हिस्सों से आए श्रद्धालु भी मौजूद रहे. गुरु समाधि के समय मंत्रोच्चार के साथ पवित्र नदियों के जल से उनका अभिषेक किया गया और भू-समाधि दी गई. शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी के निधन के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश में एक दिन का राजकीय शोक घोषित किया है. भू-समाधि के समय आश्रम में सीएम शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल, केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते, पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, सहित उनके अनुयायी मौजूद थे. one day state mourning, swami swaroopanand saraswati died
एक दिन का राजकीय शोक: नरसिंहपुर पहुंचे सीएम शिवराज ने शंकराचार्य के अंतिम दर्शन किए और श्रद्धांजलि दी. वहीं सीएम ने स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी के ब्रह्मलीन होने पर एक दिन का राजकीय शोक घोषित किया है. मुख्यमंत्री ने कलेक्टर को निर्देश दिए हैं. इस दौरान सीएम शिवराज ने कहा कि परम पूज्य शंकराचार्य सनातन धर्म के सूर्य थे. उनके जाने से मध्यप्रदेश सूना हो गया है. उन्होंने बताया कि शंकराचार्य स्वतंत्रता संग्राम सैनानी भी थे. उनका अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा. सीएम ने कहा कि उन्होंने हमे जो राह दिखाई है हम उस पर चलने का प्रयास करेंगे.
पूर्व सीएम ने दी श्रद्धांजलि: वहीं पूर्व सीएम कमलनाथ ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी के ना रहने से राष्ट्र के लिए ये बहुत बड़ी क्षति और हानि है. उनका आशीर्वाद देश और प्रदेश के साथ हमेशा रहेगा.
क्रांतिकारी साधू के रूप में भी जाने जाते थे:स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए उन्हें एक बार क्रांतिकारी साधु के रूप में जाना जाता था. वे अक्सर धार्मिक और राजनीतिक मुद्दों पर अपने मन की बात कहते थे. उन्होंने शिरडी के साईबाबा के "देवता" पर भी सवाल उठाया था. स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म 1924 में मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के दिघोरी गांव में पोथीराम उपाध्याय के रूप में हुआ था. उन्होंने 9 साल की उम्र में भगवान की खोज में अपना घर छोड़ दिया था. वे 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में एक स्वतंत्रता सेनानी बन गए और उन्हें "क्रांतिकारी साधु" कहा गया. उन्हें दो बार जेल हुई, एक बार 9 महीने की और दूसरी को छह महीने के लिए. वह 1981 में द्वारका पीठ के शंकराचार्य बने, उनके अनुयायियों ने कहा था.