नरसिंहपुर।मां तो मां होती है चाहे गरीबी हो या अमीरी उसके लिए इसका कोई मोल नहीं. हालात कैसी भी हो अच्छे या बुरे लेकिन मां अपने बच्चों का ख्याल हमेशा रखती है, कितनी भी गरीबी क्यों ना हो लेकिन मां अपने बच्चों के लिए रोटी का इंतजाम कर ही लेती है. खुद को भूखा रखती है लेकिन अपने बच्चों को खाना जरूर खिलाती है. मदर्स डे पर बेसहारा बेबस मां छाया की कहानी..
मदर्स डे स्पेशलः बेबस मां छाया की कहानी.. - गोटेगांव न्यूज
मदर्स डे पर गोटेगांव रेलवे स्टेशन पर रहने वाली बेसहारा बेबस मां छाया की कहानी..
बच्चों के पिता 4 माह से घर नहीं लौटे हैं. वह भी कबाड़ का काम करते थे और कहीं चले गए हैं. बच्चों को सिर्फ मां का ही साया है इनके पास रहने के लिए घर नहीं है नाही दो वक्त की रोटी की कोई व्यवस्था इन छोटे-छोटे मासूमों का ख्याल रखने बाली सिर्फ उनकी मां है जो कबाड़ का काम करती हैं. कई बार समाज के लोग इसे भोजन भी दे देते हैं, जिसमें से पहले बच्चे को खिलाती है फिर अगर बच गया तो खुद खा लेती है.
छाया की तमन्ना है कि उसका बेटा पढ़ लिखकर नौकरी करें मगर हालात यह है कि इस मां के पास खुद के नाम के अलावा कोई दस्तावेज नहीं है ना ही इन बच्चों की कोई कागजात यह सिर्फ बेसहारों की गिनती में आते हैं समाज में रहने वाली मां एक प्रकार से समाज की गंदगी उठाकर खुद का और अपने बच्चों का पेट पाल रही है और उनका पालन पोषण कर रही है लेकिन जिंदगी से हारी नहीं है.