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कोरोना मरीजों के लिए वरदान साबित हो रही Feeling therapy! - कब जागेगी सरकार

कोविड पेशेंट के लिए फीलिंग थेरेपी किसी वरदान से कम साबित नहीं हो रही है. नरसिंहपुर के निजी अस्पताल में कोविड संक्रमित मरीजों पर टच या फीलिंग थेरेपी का प्रयोग, बेहद कारगर साबित हो रहा है.

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Published : May 17, 2021, 11:22 AM IST

Updated : May 17, 2021, 1:59 PM IST

नरसिंहपुर। कोविड के नाम पर देश में जिस तरह से भय का भूत और एक दूसरे से दूरी का माहौल बना है. उस दौर में नरसिंहपुर जिले के एक निजी अस्पताल ने इसी दूरी को, दूर कर नजदीकी को कोविड से लड़ने में बेहद अहम भूमिका निभाई है. ये पहल इतनी कारगर साबित हो रही है कि थमती सांसों के लिए ये जिंदगी दे रही है. देखिए आखिर क्या खास हो रहा है नरसिंहपुर के इस अस्पताल में?

फीलिंग थेरेपी का कमाल

नरसिंहपुर के निजी अस्पताल में कोविड संक्रमित मरीजों पर टच या फीलिंग थेरेपी का प्रयोग बेहद कारगर साबित हुआ है. अस्पताल में अकेले मरीज का मनोबल अकेलेपन में टूटने से, मौत की बातें भी सामने आने लगी थी. इस बात को लेकर नरसिंहपुर के डॉक्टर अभिजीत नीखरा ने कोविड से ग्रस्त पेशेंट के लिए फीलिंग थेरेपी या टच थेरेपी देने का मन बनाया.

कोरोना मरीजों के लिए वरदान साबित हो रहा Feeling therapy!

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डॉक्टर और पत्नी की मेहनत ने बचाई जान

इस नये नवाचार के शुरुआत के साथ देखते ही देखते मरीजों के आत्मविश्वास के साथ-साथ सेहत में भी जमकर बढ़ोत्तरी हुई है. पंद्रह दिन अस्पताल में बिताने वाले कमलेश बताते हैं कि उन्हें उनकी हालत का खुद पता नहीं था लेकिन वो इतना जरूर कहते हैं कि डॉक्टर और उनकी पत्नी की कोविड वार्ड से लेकर आईसीयू में की गई मेहनत ने उन्हें नया जीवन दिया है. इलाज के दौरान उनकी पत्नी हर पल उनके साथ रहीं. भोजन कराने से लेकर सेवा करने का सारा काम उनकी पत्नी ने कोविड वार्ड में किया. इसके अलावा साजिद ने अपने फ्रेंड सुधीर की थमती सांसों को जिंदगी देने का बीड़ा उठाया और करीब एक महीने तक अपने दोस्त के लिए वे इस कोविड वार्ड में रहे.

टूटे मनोबल को संभाला

जिस कोविड वार्ड के नाम से हम-आप डर जाते हैं. दरअसल वहां डर का नहीं सतर्कता का काम है. इस थेरेपी से एक बात समझ आती है कि मरने वालों में ज्यादातर मौतें अपनो से बिछड़कर, टूटे मनोबल और देखरेख के अभाव में हो रहीं हैं. ऐसे में ये फीलिंग थेरेपी, कोविड मरीजों के लिए बेहद कारगर साबित हो रही है.

दोस्त के लिए कोविड सेंटर में पड़ाव

वहीं साजिद ने अपने मित्र सुधीर की थमती सांसों को जिंदगी देने का बीड़ा उठाया और करीब एक माह तक अपने दोस्त की खातिर वे इस कोविड वार्ड में रहे. जिस कोविड वार्ड के नाम से हम आप डर जाते हैं. वहां डर का नहीं सतर्कता का काम है. इस थेरेपी से एक बात समझ आती है कि मरने वालों में ज्यादातर मौतें अपनो से बिछड़कर टूटे मनोबल और देखरेख के अभाव में हो रहीं हैं. ऐसे में ये फीलिंग थेरेपी कोरोना मरीजों के लिए बेहद कारगर साबित हो रही है.

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डॉक्टर का नवाचार

डॉक्टर अभिजीत नीखरा ने अपनी दवा के असर के लिए मरीजों के मनोबल और उनकी डाइट पर फोकस किया, तो पाया कि डॉक्टर के अलावा उनके परिजन ही मददगार साबित हो सकते हैं. मरीजों के ऐसे परिजन जिनमें एंटीबॉडी बन गयी हो, उन्हें मरीजों के साथ कोविड वार्ड में कुछ समय मरीज के साथ रहने की सुविधा दी गयी है.

फीलिंग थेरेपी से जागा आत्मविश्वास

इस नये प्रयोग के साथ देखते ही देखते मरीजों के आत्मविश्वास के साथ-साथ सेहत में भी जमकर सुधार आया है. 15 दिन अस्पताल में बिताने वाले कमलेश बताते हैं कि उन्हें उनकी हालत का खुद पता नहीं था लेकिन वे इतना जरूर कहते हैं कि डॉक्टर और उनकी पत्नी की कोविड वार्ड से लेकर आईसीयू में की गई, मेहनत ने उन्हें नया जीवन दिया है. इलाज के दौरान उनकी पत्नी हर पल उनके साथ रहीं. भोजन कराने से लेकर सेवा करने का सारा काम उनकी पत्नी ने कोविड वार्ड में किया.

Last Updated : May 17, 2021, 1:59 PM IST

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