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लॉकडाउन से बुनकरों के सामने गहराया रोजी- रोटी का संकट

मुरैना जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर जौरा तहसील के ग्राम पंचायत चैना के मजरा इस्लामपुरा में पूरी बस्ती के लगभग सभी परिवार मुख्य रूप से कालीन बनाने का काम करते हैं. लेकिन लॉकडाउन के चलते इनका काम अब काफी प्रभावित हो रहा है. जिसकी वजह से रोजी- रोटी का संकट खड़ा हो गया है.

Weavers face bread crisis
बुनकरों को रोटी का संकट

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Published : May 11, 2020, 7:18 AM IST

Updated : May 11, 2020, 7:00 PM IST

मुरैना। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के चलते हुए लॉकडाउन का असर बाजार की आर्थिक गतिविधियों पर भी दिखने लगा है. यही कारण है कि अब शहर ही नहीं गांव के कामकाज भी प्रभावित होने लगे हैं. मुरैना जिले के चेना गांव में लगभग एक सैकड़ा परिवार कालीन बनाने का काम करते हैं और वही उनकी आजीविका का मुख्य साधन है, लेकिन लॉकडाउन क चलते इनकी बनाई हुई कालीन को आज कोई बाजार में खरीदने को तैयार नहीं है.

रोजी- रोटी का संकट

दरअसल मुरैना जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर जौरा तहसील के ग्राम पंचायत चैना के मजरा इस्लामपुरा में पूरी बस्ती में करीब सैकड़ों लोगों का परिवार रहता है. इन सभी परिवारों में मुख्य रूप से कालीन बनाने का काम किया जाता है.. घर के अंदर किए जाने वाले इस काम में घर के हर व्यक्ति का योगदान होता है, फिर चाहे उसमें महिला हो, बच्चे हो या फिर युवा और बुजुर्ग हो, ये सभी लोग मुख्य रूप से कालीन बनाने का काम करते हैं. एक कालीन बनाने में चार से पांच व्यक्ति लगभग 40 से 45 दिन तक लगातार काम करते हैं.

लॉकडाउन के समय बाजार बंद है, जहां बड़े-बड़े शोरूम में कालीन बेचे जाते थे, वहां से कालीन की बिक्री न होने के कारण व्यापारी अथवा ठेकेदार इन बुनकरों को नई कालीन बनाने का ऑर्डर नहीं दे रहे हैं और न ही कालीन बनाने के लिए उन्हें कच्चा माल उपलब्ध कराया जा रहा. जितने कालीन के पहले से ऑर्डर दे दिए गए हैं, और जिनके कच्चा माल व्यापारियों द्वारा दे दिया गया है, बस उसी माल से धीरे-धीरे कालीन बनाने का काम कर रहे हैं. लिहाजा इन्हें 40 फीसदी मजदूरी भी सामान्य दिनों की अपेक्षा नहीं मिल पा रही है.

कुछ कालीन बुनकरों का मानना है कि, उनकी मजदूरी को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने का नियम भी प्रभावित कर रहा है . दरअसल एक कालीन को बनाने में चार से पांच आदमी नियमित रूप से लगते हैं, तब जाकर वह कालीन का काम व्यवस्थित रूप से हो पाता है. लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के कारण, सिर्फ एक या दो व्यक्ति ही कालीन पर काम कर रहे हैं, जिसके कारण उन्हें काम करने में न केवल परेशानी आ रही है, बल्कि उन्हें काफी समय भी लग रहा है.

वहीं इनमें से कुछ बुनकर इन हालतों के चलते काम बंद कर दिये है, जो काम 40 दिन में हुआ करता था, उन कामों को करने में 90 से 100 दिन लग रहे हैं. ऐसी हालातों में आधा मुनाफा होगा, जिसके चलते इनके रोजी-रोटी पर संकट खड़ा हो गया है.

Last Updated : May 11, 2020, 7:00 PM IST

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