मुरैना। कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थामने वाले मुरैना के पूर्व विधायक रघुराज कंषाना का उपचुनाव के जरिए विधानसभा पहुंचना आसान नहीं है, क्योंकि मुरैना विधानसभा सीट पर अब तक कोई भी विधायक लगातार नहीं चुना गया है. इस चुनावी दौड़ा में एक तरफ जहां कांग्रेस लगातार सिंधिया खेमे के विधायकों को 25 करोड़ में जनता द्वारा दिए गए वोटों को बेचने का आरोप लगा रही हैं, वहीं दूसरी ओर बसपा(बहुजन समाज पार्टी) भी कमर कस कर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है. मुरैना सीट का ये इतिहास रहा है कि बसपा हमेशा से ही बीजेपी और कांग्रेस दोनों का गणित बिगड़ती आ रही हैं. जिले में चुनाव के दौरान बहुजन समाज पार्टी हमेशा प्रत्यक्ष रूप से टक्कर देती आ रही है, फिर चाहे सामने कांग्रेस हो या बीजेपी.
हाल ही में होने वाले उप चुनाव में बीजेपी, कमलनाथ सरकार की वादाखिलाफी को मुद्दा बना सकती है. फिर चाहे वह किसानों की कर्ज माफी का हो, युवाओं की बेरोजगारी भत्ता और रोजगार का हो या फिर चंबल अंचल के मुख्यालय मुरैना के बानमौर औद्योगिक क्षेत्र और सीतापुर औद्योगिक क्षेत्र में कोई नई फेक्ट्री न लगने का मामला हो. क्षेत्र के विकास और युवाओं को रोजगार दिलाने के लिए कोई नीति धरातल पर न लाना जैसे कई मुद्दे इस बार कांग्रेस को घेरेंगे. वहीं अंचल में सिंधिया के प्रभाव को रोकने के लिए कांग्रेस, सिंधिया राजवंश के 1957 के इतिहास को दोहराने वाली करतूत जनता के सामने रखने वाली है. इसके अलावा विधायकों द्वारा बीजेपी से 35 करोड़ रुपए लेकर जनता द्वारा दिए गए जनादेश को बेचने का आरोप लगा रही है.
चुनाव को प्रभावित करते हैं जातीय समीकरण
चंबल अंचल में राजनीतिक दलों की विकास की नीति से कहीं ज्यादा मायने रखते हैं चुनाव के ठीक पहले बनने वाले जातिगत समीकरण. यही कारण है कि राजनीतिक दल भी अपने उम्मीदवार का चयन करते समय जातीय समीकरणों को ध्यान में रखकर उम्मीदवार का चयन करते हैं. सर्वाधिक वोटर विधानसभा क्षेत्र में गुर्जर समाज के हैं, इसलिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही उम्मीदवार चयन के समय पहली प्राथमिकता गुर्जर समुदाय के उम्मीदवार के रूप में रखते हैं. वहीं बहुजन समाज पार्टी भी अंचल में अपना खासा दब-दबा रखती है. यही कारण है कि मुरैना विधानसभा सीट पर हर बार उम्मीदवार सामान्य वर्ग का होता है.
आरक्षण के मुद्दे पर हुए आंदोलन से बसपा की खिसकी जमीन
प्रमोशन में आरक्षण और नौकरियों में आर्थिक आधार पर आरक्षण के मुद्दे पर दलित संगठनों द्वारा किए गए आंदोलनों के बाद बसपा का फार्मूला उतना सफल होता दिखाई नहीं देता, क्योंकि दलित वोट बैंक बसपा के खाते से खिसककर कांग्रेस के पाले में पहुंच गया है. यही कारण है कि बसपा से दावेदारी करने वालों में उप चुनाव में खासी कमी आई है.
मुरैना सीट पर इन मुद्दों पर लड़ा जाएगा चुनाव
उपचुनाव में CM शिवराज सिंह चौहान की नेतृत्व वाली बीजेपी 15 साल के शासनकाल में चालू की गई जन कल्याणकारी योजना के अलावा मुरैना में किए गए विकास कार्यों को जनता के बीच पहुंचाएंगे, जिनमें 12 सौ करोड़ से बनने वाले सीवर प्रोजेक्ट, 125 करोड़ से बनने वाले प्रधानमंत्री आवास कॉलोनी, मुरैना शहर के लिए चंबल नदी से पीने के लिए पानी लाने की जल आवर्धन योजना और चंबल एक्सप्रेस वे प्रस्तावित मुख्य आधार होगा. तो दूसरी तरफ कांग्रेस के 15 माह के कार्यकाल के दौरान चले ट्रांसफर उद्योग के नाम पर कर्मचारियों से और अधिकारियों से की गई वसूली को भी मुद्दा बनाया जाएगा. किसानों का शत-प्रतिशत ऋण माफ न होना और रोजगार के लिए युवाओं को कमलनाथ सरकार के समय अवसर न दिए जाना भी चुनाव में एक अहम मुद्दा बनेगा.
बीजेपी के संभावित उम्मीदवार रघुराज कंषाना
उधर कांग्रेस का मानना है कि उन्होंने जो वादे किए थे वह 5 साल की कार्य योजना के अनुसार थे, जबकि बीजेपी ने हॉर्स ट्रेडिंग कर विधायकों की खरीद-फरोख्त कर लोकतंत्र की हत्या करते हुए सरकार को समय से पहले ही गिरा दिया. इसलिए वह जनता को किए वादों को पूरा नहीं कर सकी. वहीं अब बीजेपी के संभावित उम्मीदवार रघुराज कंषाना का कहना है कि न केवल मुरैना के बल्कि पूरे चंबल अंचल की कमलनाथ सरकार से अपेक्षा थी कि विकास होगा, लेकिन कोई कार्य नहीं होने दिया. न ही किसी विकास कार्य के प्रस्ताव को सरकार ने स्वीकार किया. इसलिए जनता की हम कोई मदद नहीं कर पा रहे थे, मजबूरन हमें सरकार से दूरी बनानी पड़ी.
किस जाति का कितना है वोट प्रतिशत
- विधानसभा क्रमांक 05 मुरैना में दो लाख 54 हजार से ज्यादा मतदाता हैं.
- इस जनसंख्या में सर्वाधिक वोट गुर्जर समाज के पास हैं, जो कि 50 हजार से ज्यादा है.
- दलित समाज के पास 45 हजार.
- वैश्य वर्ग 35 हजार.
- ब्राह्मण 25 हजार.
- राजपूत 10 हजार.
- कुशवाह 12 हजार.
- मुस्लिम 12 हजार.
- राठौर 15 हजार और 50 हजार अन्य विभिन्न जातियों के वोट हैं.
बीजेपी का हमेशा से रहा है दबदबा
- मुरैना विधानसभा सीट पर 1962 से अब तक 13 बार चुनाव हुए हैं, इनमें सात बार बीजेपी और उसकी विचारधारा वाली पार्टी चुनाव जीती. वहीं कांग्रेस चार बार, बहुजन समाज पार्टी एक बार और प्रजातांत्रिक सोशलिस्ट पार्टी ने एक बार जीत दर्ज की है.
- सन 1962 में प्रजातांत्रिक सोसलिस्ट पार्टी के जबर सिंह ने पहली विधानसभा में जीत दर्ज कर भोपाल का रास्ता तय किया था.
- 1967 में भारतीय जन संघ से जबर सिंह ने दूसरी बार चुनाव में जीत दर्ज कर इतिहास रचा.
- 1972 में कांग्रेस के हरीराम सर्राफ तो 1977 में भारतीय जनता पार्टी के जबर सिंह ने कांग्रेस को हरा कर तीसरी बार जीत दर्ज की.
- 1980 में कांग्रेस के महाराज सिंह मावई विधायक चुने गए
- 1985 में भारतीय जनता पार्टी के जाहर सिंह शर्मा कक्का चुनाव जीते
- 1990 में बीजेपी के ही सेवाराम गुप्ता ने सीट अपने नाम की.
- 1993 में कांग्रेस के सोवरन सिंह मावई विधायक बने
- 1998 में एक बार फिर बीेजेपी के सेवाराम गुप्ता ने कांग्रेस को हराकर कर अपनी जीत दर्ज की.
- 2003 में बीजेपी के रुस्तम सिंह ने चुनाव जीता.
- 2008 में बहुजन समाज पार्टी के परसुराम मुदगल जीते.
- 2013 में बीजेपी के रुस्तम सिंह फिर चुनाव जीतने में सफल रहे.
- 2018 में कांग्रेस के रघुराज कंषाना ने बीजेपी सरकार के मंत्री रुस्तम सिंह को 20 हजार से ज्यादा मतों से चुनाव हराया.