मुरैना। कोविड-19 संक्रमण काल के दौरान संक्रमण से बचने के लिए चिकित्सकों द्वारा समूचे विश्व में आम लोगों को जो उपाय सुझाए जा रहे हैं. उनमें सैनिटाइजर का उपयोग सबसे महत्वपूर्ण रूप से बताया जा रहा है. लेकिन इसके कितने गंभीर दुष्परिणाम है. इस बारे में कोई चर्चा नहीं की जा रही. कोविड-19 पर शोध कर रहे प्रोफेसर विनायक सिंह तोमर ने बताया कि, जिन केमिकल्स का उपयोग सैनिटाइजर बनाने में किया जा रहा है. उन रासायनिक पदार्थो का उपयोग मानव जीवन के लिए कहीं अधिक घातक है. प्रोफेसर विनायक सिंह के अनुसार सैनिटाइजर बनाने के लिए उपयोग किए जाने वाले ट्रायग्लोसान, बेंजालकोनियम , फैथलेट्स , नोनएल्कोहॉलिक जैसे रासायनिक शरीर के लिए बेहद हानिकारक हैं. इनके उपयोग से व्यक्ति को कैंसर, किडनी का फेल होना, मस्तिष्क की धमनियां का सिकुड़ना , नपुंसकता और रोग प्रतिरोधी क्षमताओं का कम होना आदि बीमारियां को जन्म देता है.
दरअसल, प्रोफेसर विनायक सिंह के अनुसार कोविड-19 संक्रमण काल में घर से बाहर रहने वालों के लिए कोरोना वायरस संक्रमण से बचने के लिए आम नागरिक को सैनिटाइजर का उपयोग करने की चिकित्सकों द्वारा सलाह दी जा रही है. यह सही भी है 70 फ़ीसदी अल्कोहल वाले सैनिटाइजर अथवा इससे अधिक प्रतिशत वाले अल्कोहल कोविड-19 के संक्रमण को त्वचा से समाप्त करते हैं, लेकिन इसका लगातार उपयोग शरीर के लिए बेहद हानिकारक है. कुछ सावधानियां बरतना भी जरूरी है. लेकिन उन सावधानियों के बारे में आम नागरिक को कोई जानकारी नहीं दी जा रही
ट्राइक्लोसान नामक रासायनिक का सैनिटाइजर में उपयोग होता है, जो व्यक्ति के शरीर अथवा त्वचा से अवशोषण बढ़ाता है, लेकिन ट्राइक्लोसान नामक रसायन मांसपेशियों में जकड़न पैदा करता है. ऐंठन पैदा करता है जिससे मांसपेशियों में रक्त का प्रवाह सामान्य नहीं होता. बेंजालकोनियम क्लोराइड नामक रसायन का उपयोग सैनिटाइजर में कीटाणुओं को मारने के लिए किया जाता है लेकिन यह रसायन त्वचा में जलन और खुजली पैदा करता है.
फैथलेट्स से कम उम्र के बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है कम
फैथलेट्स नमक रसायन का उपयोग विभिन्न सैनिटाइजरो में सुगंध पैदा करने के लिए किया जा रहा है. लेकिन रसायन शरीर पर प्रतिकूल असर डालता है. इससे लीवर और किडनी प्रभावित होते हैं जनन तंत्र पर भी इसका प्रतिकूल असर होता है. लिहाजा कम उम्र के बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है.नॉन एल्कोहलिक जो रसायन होते हैं, वे शरीर की एंटीबायोटिक क्षमता को निष्प्रभावी बना देते हैं, जिससे मनुष्य के शरीर में ऐसे जीवाणु भी होते हैं. रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए काम आते हैं, वो नष्ट हो जाते हैं. एल्कोहलिक सैनिटाइजर सिंपल बैक्टीरिया को सुपरबग में बदल देते हैं, जिससे उपयोगी बैक्टीरिया भी खत्म हो जाते हैं और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता धीरे-धीरे खत्म हो जाती है.
कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए औषधियों का करें उपयोग
प्रोफेसर विनायक सिंह तोमर ने बताया कि, मनुष्य को इस संक्रमण से बचना है तो अपने वातावरण में मिलने वाले औषधीय पौधों का उपयोग करना चाहिए. इसके लिए नीम के पत्तों को पानी में उबालकर उस पानी से हाथ धोने का काम करें तो वो 4 घंटे तक बैक्टीरिया को मारने में सक्षम रहता है. इसी तरह अगर अमरूद के पत्ते को पानी में उबालकर और उस पानी से हाथ पैर धोने का काम करें तो वह दो से ढाई घंटे तक बैक्टीरिया मारने में सक्षम होता है और उसका कोई दुष्प्रभाव शरीर पर नहीं होता .
इन बातों को ध्यान में रखकर करें सौनिटाइजर का उपयोग
शोधकर्ता प्रो विनायक सिंह तोमर के अनुसार अगर ये तथ्य सही साबित होते हैं, तो इसके गंभीर परिणाम आम नागरिक को भुगतने होंगे. इसलिए किसी भी व्यक्ति को कम से कम 2 घंटे से कम समय में एक बार सैनिटाइजर का उपयोग नहीं करना चाहिए. दूसरा जिन हाथों पर पानी लगा हो या अन्य कोई रिकॉर्ड हो तब तक वह पूरी तरह सुख ना जाए तब तक किसी भी प्रकार के सैनिटाइजर का उपयोग ना करें. यही नहीं अगर हाथों को सैनिटाइजर से धोया गया है तो किसी भी प्रकार के अन्य केमिकल का उपयोग उस हाथ से आधे घंटे तक नहीं किया जाना चाहिए. अन्यथा दो रासायनिक पदार्थों का आपस में क्रिया करना व्यक्ति के शरीर के लिए और अधिक नुकसानदायक साबित हो सकता है.