मुरैना। मध्य प्रदेश में जैसे ही उपचुनाव का बिगुल बजा, तो शांत पड़े चंबल में अचानक से डकैतों और बदमाशों की चर्चा फिर तेज हो गयी. एक जमाने में डकैतों की शरण स्थली रहे चंबल में 2010 के बाद कोई लिस्टेड डकैत गैंग तो नहीं है, लेकिन इनामी बदमाश आज भी यहां चुनावों को प्रभावित करते हैं. मुरैना, भिंड और शिवपुरी जिलों में इन बदमाशों का सबसे ज्यादा प्रभाव माना जाता है.
चंबल की राजनीति में डकैतों का प्रभाव देश की आजादी के पहले ही ही चंबल के बीहड़ों में डकैतों का आतंक रहा है. कहा जाता है कि चंबल अंचल में 80 के दशक में डकैतों को सियासत का चस्का लगा. और इस नशे ने हर छोटे-बड़े चुनावों को प्रभावित किया. माना जाता था कि चुनाव वही जीतता था. जिसके पक्ष में डकैतों ने फरमान जारी किया. इसलिए राजनीतिक दलों के प्रत्याशी भी इन डकैतों का सहारा लेते थे.
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आज भी प्रभावित होते हैं चुनाव
हालांकि बदलते वक्त में अब चंबल अंचल में डकैत का कोई लिस्टेट गिरोह तो नहीं बचा. लेकिन यहां के बदमाश आज भी चुनावों को प्रभावित करते हैं. चंबल की राजनीति को करीब से जानने वाले वरिष्ट पत्रकार राजेश शर्मा कहते है कि पुलिस के अनुसार चंबल में अब डकैतों का कोई गिरोह तो नहीं बचा. लेकिन राजस्थान की सीमा से सटी चंबल अंचल की विधानसभा सीटों पर आज भी राजस्थान और मध्य प्रदेश के बीच में रहने वाले बदमाश चुनावों को प्रभावित करते हैं. पहले के चुनावों में इस बात की जानकारी मिलती रही है. चुनावों को प्रभावित किया जाता रहा है.
चंबल की सियासत का केंद्र है मुरैना मुरैना में पुलिस की कार्रवाई
मुरैना जिले में पुलिस ने 1 मई से अब तक 175 फायर आर्म्स एक्ट के मामले दर्ज किए हैं. तो 82 संगीन धारदार हथियारों के मामले दर्ज किए. 11 सौ से अधिक आदतन अपराधियों को गिरफ्तार किया. जबकि 20 से ज्यादा अपराधियों का जिला बदल किया. इसके अलावा इसके अलावा मुरैना जिले में गुड्डा गुर्जर गैंग, बैजनाथ गुर्जर अभी भी सक्रिय हैं. जिनमें गुड्डा गुर्जर गैंग पर 35 हजार तो बैजनाथ गुर्जर गैंग पर 50 हजार का इनाम घोषित किया गया है. इन दोनों गैंगों का मूवमेंट अभी भी मुरैना और शिवपुरी जिले में बना हुआ है. जो चुनावी समर में पुलिस के लिए परेशानी बने हुए हैं.
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पुलिस के लिए रहती है बड़ी चुनौती
हालांकि पुलिस इस बात को नहीं मानती कि डकैत और इनामी बदमाश चुनावों को प्रभावित करते हैं. लेकिन चुनावी तैयारी के लिए जिस तरह से हथियारों की जब्ती और कार्यवाही होती है. उसके आंकड़े इतना तो दर्शाते हैं कि कहीं ना कहीं डकैतों का खौफ इन बदमाशों के रूप में न केवल जनता के बीच है. बल्कि पुलिस और प्रशासन के लिए भी यह चुनौती रहते हैं.
राजनीतिक दल भी लेते है सहारा
जयप्रकाश नारायण और गांधीवादी विचारक एसएन सुब्बाराव से प्रभावित होकर आत्मसमर्पण करने वाले डकैत बहादुर सिंह मुरैना में बने गांधी आश्रम में रहते हैं, वे कहते है कि आज भले ही दौर बदल गया. लेकिन पहले डकैत चुनावों को प्रभावित करते थे. बहादुर सिंह बताते है कि जब डकैतों का गिरोह गांव में जाकर किस प्रत्याशी के समर्थन में वोट करना है इसका आदेश देते हैं. लिहाजा डर के चलते लोग भी उसी प्रत्याशी को वोट करते थे. जिसका समर्थन डकैत करते थे.
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अर्जुन सिंह की सरकार में डकैतों ने किया था समर्पण
भिंड जिले का नाम भी एक वक्त तक डकैतों की वजह से बदनाम रहा अर्जुन सिंह की सरकार बनी तो 1981 में कई बड़े नामी इनामी डकैतों ने आत्मसमर्पण किया था जिनमे मलखान सिंह फूलन देवी मोहर सिंह मनोहर सिंह जैसे कई नाम शामिल थे. लेकिन उस दिन सबसे पहले समर्पण करने वाले दस्यु थे उदय सिंह मस्ताना, उन्होंने ईटीवी भारत से बागी काल के दौरान हुए अनुभव साझा करते हुए बताया कि हैं कि उन दिनों चुनाव का अलग ही प्रभाव रहता था. राजनैतिक दल कभी डकैतों से संपर्क नहीं करते थे. बल्कि जो प्रत्याशी होते थे वे डकैतों से संपर्क करके चुनाव जीतते थे.
हालांकि वक्त वदला, राजनीति बदली और चंबल की फिजा भी धीरे-धीरे बदल गयी. अब भले ही डकैतों का धमक पहले जैसी यहां नहीं सुनाई देती हो. लेकिन जिस अंचल की रग-रग में बगावत भरी हो, वहां आज भी डकैतों के प्रभाव को यहां के लोग आज भी नकारते नहीं हैं. यानि चंबल की सियासत में बीहड़ बागी और डकैतों को कभी नकारा नहीं जा सकता. हालांकि इन उपचुनावों में अब तक डकैतों या बदमाशों का कोई बड़ा मूवमेंट तो नहीं दिखा. लेकिन पुलिस आज भी यहां सख्ती से चुनाव कराने में जुटी है.