मुरैना।जिले में समर्थन मूल्य पर बाजरे की खरीदी सुर्खियों में है. खासकर इस समय जब कृषि कानूनों के विरोध के चलते किसानों में भारी अंसतोष है. इन मांगों में एमएसपी भी एक बड़ा मुद्दा है. जिले भर में हुए बाजरे के उत्पादन का महज 40 फीसदी ही सरकार एमएसपी पर खरीद पाई है. इसमें भी प्रशासन और सरकार के पसीने छूट गए. ईटीवी भारत आपको कुछ ऐसे आंकड़ें बता रहा है, जिससे मध्यप्रदेश में एमएसपी पर खरीद की स्थिति साफ हो जाएगी. क्योंकि राज्य सरकार मुरैना में बाजरे की खरीद को लेकर अपनी पीठ थपथपा रही है.
पैदावार बंपर लेकिन खरीदी कम
इस साल जिले में 1 लाख 72 हजार हेक्टेयर जमीन पर बाजरा उगाया गया है. इनमें महज 27 हजार 958 किसानों ने 62 हजार 414 हेक्टेयर जमीन का पंजीयन समर्थन मूल्य पर विक्रय करने के लिए कराया था. पंजीकृत किसानों के निर्धारित क्षेत्रफल में शासन के मानकों के अनुसार औसत बाजरा उत्पादन 1 लाख 56 हजार मीट्रिक टन हुआ. यानी ये वो मात्रा है, जिसे सरकार को एमएसपी पर किसानों से खरीदना था. लेकिन आगे जो आंकड़ों आएंगे वो चौकाने वाले हैं.
करीब 2 हजार किसान एमएसपी पर नहीं बेच पाए उपज
जिल में 25 अक्टूबर से समर्थन मूल्य पर बाजरा की खरीदी शुरू होने वाली थी, लेकिन व्यवस्थाओं के अभाव में इसकी शुरूआत 5 नवंबर से हो पाई. जिसका परिणाम ये हुआ कि 21 नवंबर तक निर्धारित समय में पंजीकृत किसानों में सिर्फ 25 फीसदी किसान ही बाजरा समर्थन मूल्य पर बेच सके. चूंकि ज्यादातर किसानों की उपज सरकार अभी तक खरीद नहीं पाई थी, लिहाजा अंतिम तारीख को बढ़ा दिया गया और किसानों को 15 दिनों का समय और मिला. बावजूद इसके करीब 2000 किसान फिर भी छूट गए और अपनी उपज एमएसपी पर बेचने से वंचित रह गए.
आंकड़ों की बाजीगरी
सरकार का असली गेम यहीं से शुरू होता है. क्योंकि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 27 हजार 958 किसानों में सरकार ने करीब 26 हजार किसानों की उपज समर्थन मूल्य खरीद ली. यानी दावा किया जा सकता है कि मुरैना में 90 फीसदी से भी ज्यादा बाजरे की खरीदी की गई है. जबकि सच्चाई बिल्कुल अलग है.
क्या है सच्चाई ?
मुरैना में कुल 1 लाख 72 हजार हेक्टेयर जमीन पर बाजरा उगाया गया है. इनमें से महज 62 हजार 414 हेक्टेयर जमीन ही उपज ही सरकार ने पंजीकृत की है. लिहाजा पहले ही 1 लाख 9 हजार 586 हेक्टेयर की उपज इस दायरे से बाहर हो गई. इस उपजाने वाले हजारों किसानों को एमएसपी का फायदा नहीं मिल पाया. लेकिन सरकार आंकड़ों की बाजीगरी करने के लिए पहले ही उपज का कुल रकवा ही कम पंजीकृत करती है. फिर इसी रकवे की पैदावार को एमएसपी पर खरीदकर बताती है कि इस साल समर्थन मूल्य पर बाजरे की बंपर खरीदी की गई है.
क्यों बढ़ाया गया खरीदी का समय ?
25 अक्टूबर से 21 नवंबर तक होने वाली समर्थन मूल्य की खरीदी विधानसभा चुनावों के कारण 5 नवंबर से शुरू हो सकी. लेकिन निर्धारित समय में 50 फीसदी किसानों की उपज समर्थन मूल्य पर नहीं खरीदी जा सकी. इसलिए सरकार को 15 दिन का अतिरिक्त समय देकर 5 दिसंबर तक समर्थन मूल्य पर खरीदी की. इसमें भी करीब करीब 2 हजार किसान 14 हजार मीट्रिक टन उपज एमएसपी पर नहीं बेच पाए.
अधिक पैदावार से गड़बड़ाया सरकार का लक्ष्य
बाजरे की खरीदी में प्रशासन द्वारा गत वर्ष हुई खरीदी के मानक के अनुसार सरकार को 40 हजार मीट्रिक टन का लक्ष्य दिया गया था, लेकिन इस बार उत्पान अधिक होने के कारण बाजार भाव गिर गया. मार्केट में 12 सौ से 13 सौ प्रति क्विंटल बाजार बिक रहा है. जबकि इस साल समर्थन मूल्य पर बाजरा का भाव 2150 रुपये था. लिहाजा किसानों ने अपनी उपज समर्थन मूल्य पर बेचना ही उचित समझा और सरकार के औसत लक्ष्य गड़बड़ा गया. 40 हजार मीट्रिक टन की जगह 1 लाख 42 हजार 982 मीट्रिक टन से अधिक खरीद करनी पड़ी.
अव्यवस्थाओं के चलते परेशान हुए किसान
सरकार द्वारा समर्थन मूल्य पर बाजरे की खरीदी का लक्ष्य पिछले साल की तुलना में दस हजार मीट्रिक टन बढ़ाकर 40 हजार मीट्रिक टन निर्धारित किया था. इसी अनुपात में मुरैना जिले के खरीदी केंद्रों को बारदाना मिला था. लेकिन धीरे-धीरे यह लक्ष्य बढ़ाकर 70 हजार और फिर एक लाख मीट्रिक टन हुआ. लक्ष्य तो बढ़ गया लेकिन बारदाना कम पड़ गया. बाजरे की आवक ज्यादा होते देख एक फिर खरीदी का टारगेट बढ़ाकर 1 लाख 50 हजार मीट्रिक टन पहुंच गया. जिससे बारदाने की समस्या और गंभीर हो गई. जिससे किसानों भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा. हालांकि इस दौरान बिचौलियों को लेकर भी कई सवाल खड़े हुए.
बिचौलियों ने भी किया झोल
मुरैना जिल में एमएसपी पर बाजरे की खरीद के दौरान बड़े-बड़े बिचौलियों का गड़बड़ घोटाला भी सामने आया. इन्होंने ऐसे किसानों को टारगेट किया जिनका बाजरे का पंजीकृत रकवा ज्यादा था और उसकी तुलना में उपज कम थी. कमीशन खोरी के इस खेल में बिचौलियों ने किसानों को लाभ का लालच देकर उनके पंजीयन पर मार्केट से सस्ते दाम में खरीदी गई बजारे की उपज सरकारी दामों पर बेच दी.
ये भी सवाल उठे
नए कृषि कानूनों के मुताबिक किसान अपनी उपज पूरे देश में बेच सकते हैं. लेकिन राजस्थान से मध्यप्रदेश में बाजरे उपज बचने आए कई किसानों का आरोप है कि उनके वाहनों का बॉर्डर पर ही रोक दिया गया. ऐसे में सरकार दोहरे मापदंड अपना रही है.
भुगतान में देरी
कई किसानों का आरोप है कि उपज बेचे जाने पर भी अब तक उनके खातों में पैसे नहीं आए हैं. सरकार का नियम है कि बाजरा तुलने के सात दिन में किसान के खाते में पैसा आ जाएगा, लेकिन सैकड़ों किसान ऐसे हैं जिनके खाते में 15 से 20 दिन बाद भी बाजरे का पैसा नहीं आया.