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रोचक होगी बीजेपी की परंपरागत सीट दिमनी की सियासी जंग, बसपा बिगाड़ सकती है गणित

मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट तेज हो गई है. हालांकि चुनाव तारीखों का एलान अब तक नहीं हुआ है. लेकिन सियासी दल चुनावी तैयारियों में जुट चुके हैं. जिन 24 सीटों पर चुनाव होना है उनमें मुरैना जिले की दिमनी सीट भी शामिल है, जो बीजेपी की परंपरागत सीट मानी जाती है, लेकिन इस बार यहां बीजेपी के लिए स्थिति आसान नहीं होगी क्योंकि कांग्रेस और बसपा भी पूरे दमखम के साथ मैदान में उतरेगी. पढ़िए सीट से जुड़े समीकरण.....

dimni assembly seat
रोचक होगी बीजेपी की परंपरागत सीट दिमनी की सियासी जंग

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Published : Jun 29, 2020, 10:45 PM IST

Updated : Jun 30, 2020, 6:15 PM IST

मुरैना। मध्यप्रदेश में विधानसभा उपचुनाव की सियासी बिसात बिछ चुकी है. दोनों दल इसकी तैयारियों में जुटे हैं. जिन 24 सीटों पर मध्यप्रदेश में विधानसभा उपचुनाव होना है उनमें मुरैना की पांच विधानसभा सीटों में से एक दिमनी भी शामिल है. इस सीट पर कांग्रेस के बागी विधायकों को बीजेपी ने अपना प्रत्याशी बनाना तय किया है, जबकि कांग्रेस को यहां से जिताऊ ऊम्मीदवार की तलाश है. ऐसे में बसपा दोनों दलों के असंतुष्टों में से वजनदार नेता पर दांव लगाकर दिमनी विधानसभा सीट पर एक बार फिर वापसी करने की कोशिश करेगी. इसके लिए सियासी दलों ने तैयारियां भी तेज कर दी हैं.

रोचक होगी बीजेपी की परंपरागत सीट दिमनी की सियासी जंग

बीजेपी की परंपरागत सीट मानी जाती है दिमनी

अब तक के चुनावों में दिमनी विधानसभा सीट बीजेपी की परंपरागत सीटों में गिनी जाती है. यहां आठ वार भारतीय जनता पार्टी, दो बार निर्दलीय, दो बार कांग्रेस और एक बार बहुजन समाज पार्टी को जीत मिली है. इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता पूर्व मंत्री मंत्री वंशीलाल खटीक का दबदबा रहा. उन्होंने 5 बार दिमनी सीट पर जीत दर्ज की और विधानसभा पहुंचे.

बसपा कार्यकर्ता

तैयारियों में जुटी बीजेपी-कांग्रेस

यही वजह है कि अब कांग्रेस के बागी विधायक गिर्राज दंडोतिया के भाजपा में पहुंचने से और रविंद्र सिंह तोमर को दिमनी विधानसभा से कांग्रेस का उम्मीदवार बनाए जाने की चर्चाएं और प्रबल होती जा रही हैं और कांग्रेस की कमलनाथ सरकार के कार्यकाल की योजनाओं को लेकर वो इस बार फिर जनता के बीच संपर्क बनाने में जुटे हैं. तो वहीं भाजपा में पहुंचे गिर्राज दंडोतिया क्षेत्र के विकास को लेकर कमलनाथ सरकार में हुई उपेक्षा और जनता को किए गए वादों को पूरा न करने से नाराज होकर अब शिवराज की योजनाओं के सहारे उपचुनाव में विधानसभा जाने की तैयारी में लगे हैं.

रोचक होगी बीजेपी की परंपरागत सीट दिमनी की सियासी जंग

सीट का जातिगत समीकरण

दिमनी विधानसभा क्षेत्र में सर्वाधिक क्षत्रिय मतदाता लगभग 70000 है , तो दलित 40 से 45 हजार हैं. कुशवाहा जाति का बोर्ड भी लगभग 25000 है तो इतने ही मतदाता ब्राह्मण समुदाय के हैं. इसके अलावा अन्य छोटी जातियां जिनमें राठौर बघेल मुस्लिम गुर्जर किरार प्रजापति और वैसे वर्ग मिलाकर लगभग 70000 मतदाता शामिल हैं. 214000 मतदाताओं वाली दिमनी विधानसभा में 1,15,000 पुरुष मतदाता तो वहीं 97000 महिला मतदाता शामिल हैं.

स्थानी लोग

दिमनी सीट से जुड़े अहम तथ्य

1962 से 2008 तक मुरैना जिले की दिमनी विधानसभा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी, लेकिन 2008 में हुए परिसीमन के बाद यह सीट सामान्य वर्ग के लिए घोषित हुई और क्षत्रिय बाहुल्य होने के कारण राजनीति की अखाड़े में बदल गई. 2008 में भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ और कद्दावर नेता नरेंद्र सिंह तोमर के नजदीकी मंगल सिंह तोमर को भाजपा ने यहां से उम्मीदवार बनाया और वो बहुजन समाज पार्टी के रविंद्र सिंह तोमर से महज 250 मतों से चुनाव जीते. 2013 के बाद बसपा के रविंद्र सिंह तोमर ने कांग्रेस का दामन थाम कर चुनावी मैदान में उतरे, लेकिन बसपा के बलवीर सिंह दंडोतिया ने उन्हें जीत का रास्ता तय नहीं करने दिया. 2014 में रविंद्र सिंह ने नरेंद्र सिंह तोमर से हाथ मिलाकर भाजपा का दामन थाम लिया, लेकिन 2018 में भाजपा ने टिकट नहीं दिया. इसके बाद वे फिर कांग्रेस में पहुंच गए.

धार्मिक स्थान

बसपा भी कर सकती है सेंधमारी

बहुजन समाज पार्टी भी कांग्रेस और भाजपा के परंपरागत उम्मीदवार जो असंतुष्ट दावेदार हैं, उन पर नजर बनाए हुए है. साथ ही लगातार संपर्क में भी है. इनमें से जो भी प्रबल उम्मीदवार दिखेगा, बहुजन समाज पार्टी उसे अपने सिंबल पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर एक बार फिर दिमनी विधानसभा को बसपा की झोली में डालने की तैयारी कर रही है.

दिमनी क्षेत्र का प्राचीन मंदिर

ऐसा रहा अब तक चुनावी इतिहास

  • दिमनी सीट पर1962 में निर्दलीय उम्मीदवार सुमेर सिंह को जीत मिली.
  • 1967 में भी निर्दलीय उम्मीदवार एसएस मारिया ने जीत दर्ज की.
  • 1972 में भारतीय जनता पार्टी के छविराम वर्गल ने बीजेपी को जीत दिला कर दिमनी विधानसभा का खाता भाजपा के लिए खोला.
  • 1977 में मुंशीलाल खटीक ने पहली बार चुनाव जीता.
  • 1980-1985 और 1990 में भी मुंशीलाल लगातार चुनाव जीतते रहे और प्रदेश सरकार में मंत्री बने.
  • 1993 के उपचुनाव में कांग्रेस के रमेश कोरी ने जीत हासिल की तो 1998 में उन्हें भाजपा के मुंशीलाल ने हरा दिया.
  • 2003 में यहां से भारतीय जनता पार्टी ने महिला प्रत्याशी संध्या राय को प्रत्याशी बनाया और भाजपा ने जीत दर्ज की.
  • 2008 में ये सीट एससी के लिए आरक्षित से सामान्य सीट में परिवर्तित हुई और यहां से भारतीय जनता पार्टी के सुमंगल सिंह तोमर ने चुनाव जीता.
  • फिर 2013 में बहुजन समाज पार्टी के बलवीर सिंह दंडोतिया यहां से विधायक बने तो 2018 में कांग्रेश के गिर्राज दंडोतिया ने जीत दर्ज की.
  • अब कांग्रेस के गिर्राज दंडोतिया बागी विधायकों की टोली में जाकर भाजपा के झंडे तले पहुंच गए हैं और 2020 के उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रबल उम्मीदवारों में माने जा रहे हैं.

नहर की मांग बन सकता है मुद्दा

दिमनी विधानसभा मुरैना जिले की ग्रामीण विधानसभा में से एक है. यहां कृषि प्रधान क्षेत्र होने के कारण लगभग दो दशक से किसानों की एक ही मांग है कि चंबल नदी से लिफ्ट इरिगेशन बनाकर क्षेत्र को कृषि की सिंचाई के लिए एक नहर बनाई जाए, जिसके लिए भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने लंबे समय पहले आश्वस्त भी किया था, लेकिन उस पर आज तक कोई काम आगे नहीं बढ़ सका.

इन मुद्दों पर नेताओं की होगी नजर

यहां के लोग अत्यधिक संख्या में फौज में जाना पसंद करते हैं. इसलिए इस क्षेत्र की लिए एक फिजिकल स्कूल की भी मांग की जा रही है. दिमनी विधानसभा क्षेत्र में कोई भी शासकीय कॉलेज ना होने से क्षेत्र की बेटियों को हाईस्कूल और इंटर के बाद पढ़ाई को रोकना पड़ता है. दिमनी और शिवन्या 2 बड़े क्षेत्र हैं, जहां स्वास्थ्य सेवाएं एव शिक्षा का विकास किया जाए तो समूचे क्षेत्र को इसका लाभ प्रत्यक्ष रूप से मिल सकता है. वहीं प्राचीन ककनमठ शिव मंदिर भी क्षेत्र में है, जो पर्यटन की दृष्टि से संरक्षित किया गया है, लेकिन सुविधाओं के विकास का अभाव होने के कारण यहां पर्यटकों का हमेशा टोटा रहता है और पर्यटन को उद्योग में परिवर्तित करने में भी क्षेत्रीय नेता असफल रहे जो इस चुनाव में खासकर भाजपा और कांग्रेस को प्रभावित कर सकते हैं.

Last Updated : Jun 30, 2020, 6:15 PM IST

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