मुरैना।मध्य प्रदेश की 28 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में सबसे ज्यादा पांच सीटें मुरैना जिले की हैं. जिनमें एक सीट जौरा भी है. ये सीट कांग्रेस विधायक बनवारी लाल शर्मा के निधन से खाली हुई है. इस सीट पर बीजेपी ने पूर्व विधायक सूबेदार सिंह सिकरवार रजौधा पर भरोसा जताया है. तो वहीं कांग्रेस ने युवा चेहरा और जमीनी स्तर पर काम करने वाले पंकज उपाध्याय पर दांव लगाया है. वहीं बहुजन समाज पार्टी ने दो बार बसपा से विधायक रहे सोने राम कुशवाह को उम्मीदवार बनाया है. लिहाजा बसपा के प्रभाव होने की वजह से इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला होता दिख रहा है.
जौरा में अब तक 13 बार चुनाव हुए हैं.
जौरा विधानसभा क्षेत्र में लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं का उपयोग मतदाताओं द्वारा बखूबी किया जाता रहा है. जिस राजनीतिक दल या जनप्रतिनिधि ने अपने वादे पूरे नहीं किए जनता ने उसे उसी समय नकार दिया. यही कारण है कि जौरा विधानसभा सीट पर किसी एक राजनीतिक दल का कब्जा नहीं रहा. अभी तक 13 बार हुए विधानसभा चुनावों में दो बार निर्दलीय, एक बार प्रजातांत्रिक सोशलिस्ट पार्टी, एक बार जनता दल , एक बार जनता पार्टी, एक बार भारतीय जनता पार्टी, तीन बार बहुजन समाज पार्टी और चार बार कांग्रेस पार्टी को विजय मिली है .
जौरा सीट का जातीगत समीकरण
यह सीट जातीय समीकरण के हिसाब से काफी महत्वपूर्ण है. जिस पर जीत के लिए यहां पर उम्मीदवार को चार का दम दिखाना पड़ता है. इन चार समीकरण पर अच्छी पकड़ वाला ही उम्मीदवार यहां से जीतता आया है. ब्राह्मण, धाकड़, क्षत्रीय और कुशवाह समुदाय हर चुनाव में निर्णायक स्थिति में रहता है. इसके अलावा मुस्लिम वोट यहां काफी प्रभावशाली है. जातीय समीकरणों को आधार पर देखा जाए तो जौरा विधानसभा ब्राह्मण बाहुल्य विधानसभा मानी जाती है. यही कारण है कि जौरा विधानसभा सीट पर किसी एक राजनीतिक दल का कब्जा नहीं रहा.
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जौरा सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला
कांग्रेस के ब्राह्मण उम्मीदवार पंकज उपाध्याय को अगर ब्राह्मण के साथ अगर वैश्य वर्ग का साथ मिलता है तो वो चुनाव में मजबूत स्थिति में होंगे. इसी तरह बहुजन समाज पार्टी को कुशवाहा और दलित वोट मिला कर उसका भी एक बड़ा वोट बैंक नजर आता है. वहीं अगर बात बीजेपी की करें तो बीजेपी पास क्षत्रिय मतदाता किरार धाकड़ मोटर और छोटी जातियों का बोर्ड मिलना तय माना जा रहा है इसलिए इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला है.
जौरा में विकास रहा बड़ा मुद्दा
जौरा विधानसभा क्षेत्र में विकास बड़ा मुद्दा रहा है. यही कारण है कि यहां की जनता ने कभी किसी एक नेता को या राजनीतिक दल को यहां अड्डा नहीं जमाने दिया और जिसने भी जनता की अपेक्षाओं को पूरा नहीं किया उसे बदल डाला. जौरा कृषि प्रधान होने के साथ-साथ व्यवसाय केंद्र भी है और इस क्षेत्र को व्यवसाय का केंद्र बनाने में अहम भूमिका सहकारी शक्कर कारखाना कैलारस की रही है. जिसके कारण इस क्षेत्र के किसान और व्यापारी दोनों की माली हालत में सुधार हुआ है, लेकिन पिछले दो दशक से बंद पड़े इस शक्कर कारखाने को चुनाव के समय चालू कराने का वादा भाजपा और कांग्रेस दोनों करती आ रही हैं, लेकिन सत्ता में आने के बाद एक भी दल इसे चालू नहीं करा पाया.
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शक्कर कारखाना चालू करना बड़ी चुनौती
सहकारी शक्कर कारखाना कैलारस को चालू करने के लिए महज 23 करोड रुपए की आवश्यकता है. जिसमें किसानों के गन्ने की फसल का भुगतान बाकी चल रहा है, तो शेष राशि कर्मचारियों के लंबित वेतन के भुगतान की है लेकिन सरकार इन 23 करोड रुपए की धनराशि की व्यवस्था करने से असमर्थ है. यही कारण है कि यहां लगातार जनता द्वारा सत्ताधारी दल के उम्मीदवार को दो दशक से पराजय का सामना करना पड़ रहा है.
जौरा विधानसभा के मतदाता
वहीं बात अगर जौरा विधानसभा सीट के मतदाताओं की जाए तो यहां कुल मतदाता 2 लाख 25 हजार 337 हैं. जिनमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 1लाख 23 हजार 512 है. तो महिला मतदाताओं की संख्या 1 लाख 1 हजार 809 है, जो उपचुनाव में अपने नए विधायक का चयन करेंगे.
जौरा विधानसभा सीट का इतिहास