मुरैना। आंचलिक कृषि अनुसंधान केंद्र मुरैना में कृषि वैज्ञानिकों द्वारा अंचल की प्रमुख फसल सरसों की उन्नत किस्म तैयार की है, जिससे अंचल के किसानों को समृद्धि मिलेगी. सामान्यतः स्थानीय जलवायु में जिस किस्म के सरसों बीज उपयोग में किए जाते थे, उनकी अपेक्षा प्रति हेक्टेयर लगभग 10 क्विंटल की पैदावार का इजाफा किसानों को मिलेगा. यह अंचल के किसानों के लिए फायदेमंद ही नहीं है, बल्कि अनुसंधान की भी एक बड़ी उपलब्धि है, जिसे लगभग 5 से 6 वर्ष की रिसर्च के बाद तैयार किया गया है. हालांकि कई अन्य अनुसंधान केंद्र और बीज उत्पादक कंपनियां भी इन मापदंडों को पूरा कर बेहतर पैदावार देने की दावा करती हैं, लेकिन चंबल अंचल की जलवायु में वह है कारगर साबित नहीं हो सकी.
अनुसंधान केंद्र के प्रभारी एवं बीज उत्पादन विशेषज्ञ डॉ वायपी सिंह के निर्देशन में अनुसंधानकर्ता डॉ योगेंद्र सिंह ने पिछले पांच सालों में किए शोध के बाद यह प्रमाणित किया है कि RVM-3 सरसों बीज की ग्वालियर चंबल अंचल की जलवायु में सामान्य से अधिक उत्पादन देने वाली साबित हुई है. अभी तक अंचल में प्रति हेक्टेयर 20 से 25 क्विंटल पैदावार होती है, अगर अनुकूल वातावरण मिले और बेहतर देखरेख हो तो प्रति हेक्टेयर 30 क्विंटल तक अधिकतम पैदावार हो जाती है.
डॉ वायपी सिंह के अनुसार अनुसंधान परिषद द्वारा जल्द RVM-3 सरसों सीड दोनों जगह से प्रमाणित हो जाएंगे. प्रमाणित होते ही यह अंचल के किसानों को बोनी करने के लिए मिलने लगेगा, और किसान अधिक उत्पादन लेने लगेगा, जो उनकी आर्थिक उन्नति में मददगार साबित होंगे.
वातावरण के अनुकूल हैं RVM-3 सरसों सीड
देश के विभिन्न अनुसंधान केंद्रों में कई उन्नत किस्म के सरसो बीज तैयार किए हैं, और वह उत्पादन भी अच्छा देते हैं. पर चम्बल अंचल में जलवायु भिन्न होने के कारण पैदावार प्रभावित होती है, और किसानों को उम्मीद के अनुरूप पैदावार नहीं मिलती थी, लेकिन RVM-3 सरसों बीज की रिसर्च अंचल की जलवायु में होने के कारण उम्मीद के अनुसार ही पैदावार होगी, इसलिए किसानों को किसी तरस की समस्या नहीं आएगी.
RVM-3 सरसों सीड की रिसर्च करने वाले डॉक्टर जोगिंदर सिंह का कहना है कि अगर किसान समय-समय पर उचित देखभाल करें, तो पैदावार प्रति हेक्टेयर 35 क्विंटल से अधिक भी जा सकती है, और ऐसे में देखभाल और जलवायु परिवर्तन होने के कारण मौसम विपरीत होने पर भी यह 30 से 35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार देने वाली सरसों होगी, यह पिछले 6 वर्षों में रिसर्च कर साबित हुआ है, इसलिए यह चंबल क्षेत्र के लिए बहुत ही उपयोगी साबित होने वाली है.
चम्बल अंचल के तीन लाख हेक्टेयर में होता है सरसों का उत्पादन
चंबल अंचल में सरसों की फसल नकदी फसल के रूप में मानी जाती है, पूरे चंबल अंचल की बात करें तो लगभग दो लाख 90 हजार से तीन लाख हेक्टेयर भूमि में रबी सीजन पर सरसों की फसल का उत्पादन होता है. केवल मुरैना जिले में एक लाख 70 हजार हेक्टेयर में सरसों बोई जाती है, तो भिंड और शिवपुर में मिला कर भी यह तीन लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में सरसों का उत्पादन किसानों द्वारा किया जाता है, इसलिए RVM- 3 सरसों सीड चंबल अंचल के लिए बेहद महत्वपूर्ण है.