मुरैना।आपातकाल के आज 45 साल पूरे हो गए, लेकिन उसकी यादें आज भी उस दौर के लोगों के जेहन में ताजा है. उस दौर में देश भर में कांग्रेस का समर्थन न करने वाले नेता और पत्रकारों को रातों-रात जेल में डाल दिया गया और 'नो वकील नो दलील' का फॉर्मूला चल निकला. इस दौरान मुरैना में भी लोगों को जेल भाजा गया था, जिसमें से एक थे संघ विचारक राधेश्याम गुप्ता, जिन्होंने आपातकाल के 45 साल होने पर ईटीवी भारत से बात की और उस दौर के बारें में बताया.
राधेश्याम गुप्ता ने बताया कि मुरैना से जनसंघ के संस्थापक सदस्य कुंवर सिंह शर्मा काका और बाबू जबर सिंह को भी जेल में जाना पड़ा. इनके साथ-साथ कई ऐसे नाम भी थे, जो कांग्रेस की विचारधारा से संबंध रखते थे, लेकिन इंदिरा गांधी के इमरजेंसी लागू करने वाले निर्णय से संतुष्ट नहीं थे. उस दौर में अनेकों समाजवादी नेताओं की पहचान कर जेल भेजा जाने लगा, धीरे धारे मुरैना से तकरीबन आधा सैकड़ा से अधिक लोग धीरे-धीरे कर ग्वालियर और मुरैना की जेलों में बंद रहे.
राधेश्याम गुप्ता ने बताया ने बताया कि आपातकाल में संघ और उसकी विचारधारा वाली पार्टी जनसंघ सहित अन्य कई सामाजिक संगठनों के नेताओं को देशभर में जेल में बंद किया गया. हालांकि 1977 में आम चुनावों की घोषणा के बाद जनता पार्टी का गठन हुआ, जिसके बाद जेल में बंद नेताओं को बाहर निकालना शुरू किया गया. राधेश्याम गुप्ता ने बताया कि वह उन आखरी लोगों में से एक थे जो जेल से बाहर आए थे.