मुरैना। श्रावण माह में देशभर के शिवालयों में भक्तों का तांता लगा हुआ है. हर एक शिवालय की अपनी मान्यता, विशेषता और अहमियत है. मुरैना में भी एक खास शिवालय है, जहां मंदिर निर्माण में बड़े-बड़े पत्थर की शिलाओं का उपयोग किया गया है. इन पत्थर के शिलाओं को जोड़ने के लिए न तो किसी गारे का उपयोग किया गया है और न ही किसी मिट्टी- सीमेंट का. इस मंदिर को ककनमठ शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है, जहां लोगों की गहरी आस्था है.
11वीं शताब्दी में बना मंदिर
जिला पुरातत्व अधिकारी अशोक शर्मा बताते हैं कि, 11वीं शताब्दी में कच्छप घात राजा ने अपनी रानी ककनावती की पूजा- अर्चना के लिए इस मंदिर का निर्माण कराया था. ककनावती के इष्ट देव भगवान भोलेनाथ थे, इसलिए राजा कच्छप घात ने इस विशालकाय मंदिर का निर्माण करवाया. ये मंदिर 110 फीट ऊंचा हैं, जिसमें 52 खंभे हैं.
रानी के नाम पर है मंदिर का नाम
जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर कच्छप राजवंश की राजधानी सिहोनिया के तत्कालीन राजा कच्छप घात ने अपनी रानी ककनावती की पूजा- अर्चना के लिए इस मंदिर का निर्माण कराया था. जानकारी के मुताबिक रानी ककनावती भगवान भोलेनाथ की अनन्य उपासक थीं. वे ज्यादातर भोलेनाथ की पूजा में लीन रहती थीं. राजा ने रानी की पूजा-अर्चना और साधना की सुविधा को ध्यान में रखते हुए, इस भव्य शिव मंदिर का निर्माण कराया था. पुरातत्व अधिकारी शर्मा ने बताया कि, रानी ककनावती के नाम पर ही इस मंदिर का नाम ककनमठ शिव मंदिर रखा गया है.