मुरैना/ग्वालियर। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन में सहभागी रहे प्रख्यात गांधीवादी विचारक डॉ एसएन सुब्बाराव का बुधवार को राजस्थान के जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल में निधन हो गया. पद्मश्री सम्मानित प्रख्यात गांधी विचारक डॉ एसएन सुब्बाराव की हाफ पेंट और खादी की शर्ट उनकी पहचान थी. 7 फरवरी 1929 को कर्नाटक के बेंगलुरु में जन्मे डॉ सुब्बाराव शुरू से ही गांधी के विचारों से प्रभावित रहे और महज 13 साल की उम्र से वो राष्ट्रपति महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़ गए. इस दौरान वो कई बार जेल भी गये. गांधीवादी विचारों को पूरे देश भर में स्थापित करने के लिए साल 1954 में चंबल घाटी में कदम रखा. 1964 में मुरैना जिले की जौरा तहसील में गांधी सेवा आश्रम की स्थापना की और यहां पर शिविर आयोजित कर युवाओं को इससे जोड़ने का काम किया. यही वजह है कि आज भी लगभग 5000 से अधिक परिवार गांधी आश्रम में खादी के वस्त्र निर्माण कर अपनी आजीविका चला रहे हैं.
नहीं रहे गांधीवादी विचारक डॉ. एसएन सुब्बाराव, जयपुर के SMS अस्पताल में ली अंतिम सांस
हाफ पैंट और खादी की शर्ट थी पहचान
पूरे देश-दुनिया में प्रख्यात गांधीवादी विचारधारा को अपने जीवन में उतारने वाली डॉक्टर सुब्बाराव की पहचान हाफ पैंट और खादी की शर्ट थी. डॉ सुब्बाराव विश्व में गांधीवादी विचारधारा का प्रचार करते थे और यही वजह है कि जब भी वह देश के बाहर जाते थे, तब भी हाफ पेंट और खादी की शर्ट ही पहनते थे. लोग उन्हें 'भाई जी' के नाम से जानते थे. उन्होंने अपने जीवन में गांधीवादी के अलावा किसी को महत्व नहीं दिया है.
चंबल के कहे जाते थे 'शांतिदूत'
गांधीवादी विचारों से प्रेरित होकर उन्होंने सन् 1970 में गांधी सेवा आश्रम की स्थापना की. स्थापना के महज दो वर्ष बाद ही 1972 में चंबल के बीहड़ों की बागी समस्या के निदान में सामूहिक आत्मसमर्पण जैसा इतिहास उन्होंने रच दिया. डॉ. सुब्बाराव ने 14 अप्रैल 1972 को 672 से अधिक डकैतों का सरेंडर कराया और निरंतर डकैतों को गांधीवादी विचारधारा पर प्रेरित करने के लिए उनसे संपर्क करते रहे. यही वजह है कि जौरा के गांधी सेवा आश्रम में चंबल अंचल के कुख्यात डकैतों ने हथियार डाले थे.चंबल में शांति स्थापना के साथ ही उन्होंने युवाओं में श्रम संस्कार जगाने के लिए युवा शिविरों का आयोजन कर अंचल में विकास के नए आयाम स्थापित किए. दक्षिण भारत में जन्म लेने के बावजूद उन्होंने देश और दुनिया में अपना परिचय हमेशा चंबल के बेटे के रूप में दिया.
मुरैना में 672 डकैतों का आत्मसमर्पण कराने वाले 'शांतिदूत' नहीं रहे
गुरुवार को जौरा गांधी सेवा आश्रम में अंतिम संस्कार
प्रख्यात गांधी विचारक डॉ सुब्बाराव को चंबल का शांतिदूत भी कहा जाता है. चंबल उनकी कर्मभूमि थी. वो युवाओं के प्रेरणा स्रोत थे. उन्हीं दम पर चंबल में डकैतों की समस्या खत्म हुई थी. बेंगलुरु में जन्म के बावजूद उनका सबसे ज्यादा लगाव चंबल अंचल से ही रहा है. बताया जा रहा है कि डॉक्टर सुब्बा राव का पार्थिव शरीर बुधवार शाम दिल्ली से चलकर जौरा के गांधी आश्रम पहुंचेगा. उसके बाद गुरुवार को उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा. डॉक्टर सुब्बा राव के अंतिम संस्कार में बड़े राजनेताओं के साथ-साथ देश-विदेश की बड़ी-बड़ी हस्तियां भी शामिल होने की संभावना है.