मध्य प्रदेश

madhya pradesh

ETV Bharat / state

मौसंबी बनी फायदे की फसल, खेती के लिए किसानों का बढ़ रहा रुझान - मुरैना का मौसंबी किसान

मुरैना के चैना गांव में किसानों के लिए लाभ का धंधा बना मौसम्मी के खेती

Mausambi became a crop of benefits
मौसंबी बनी फायदे की फसल

By

Published : May 14, 2020, 5:16 PM IST

मुरैना।मौसंबी काफी महत्वपूर्ण फसल है, देश भर में मुख्य रूप से महाराष्ट्र में इसका बड़े पैमाने में उत्पादन होता है, इसके अलावा इस फसल का उत्पादन आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा में भी किया जाता है. सामान्य फसलों से किनारा कर यहां किसान इन फसलों से भारी भकरम मुनाफ कमाता है, अब इन्हीं किसानों की तर्ज पर मुरैना का किसान भी आगे बढ़ा है और वो रबी खरीब के अलावा अब मौसंबी की खेती की ओर रुख कर रहा है और फायदा भी कमा रहा हैं.

मौसंबी बनी फायदे की फसल

3 साल में मिली उपज
चंबल अंचल में सामान्यतः खरीफ सीजन में बाजरे की फसल और रबी सीजन में सरसों की फसल का उत्पादन किया जाता है, लेकिन ये किसानों को आर्थिक बदहाली से नहीं उबार पाता. लेकिन समय के साथ बदली किसानों की सोच ने उनकी समृद्धि के रास्ते खोल दिए हैं. लगभग 5 साल पहले एक किसान ने मौसंबी की खेती की शुरुआत की और उसे 3 साल बाद उत्पादन मिलना शुरू हुआ, तो गांव के अन्य किसान भी उसे देखकर अचंभित होने लगे. सामान्यतः एक बीघा खेत मे परंपरागत खेती करने से किसान 10 से 12 हजार रुपये कमाता है पर मौसंबी ने उसे 10 गुना बढ़ा दिया. इसे देखते हुए यहां पिछले 5 साल में 500 से अधिक जमीन में मौसंबी के बागान लगाए हैं.

5 साल में उत्पादन बंपर
3 साल में मिली उपज

5 साल में उत्पादन बंपर
मौसंबी उत्पादक किसान विजय सिंह यादव ने बताया महाराष्ट्र के नागपुर के पास पांडुरना से मौसंबी की उन्नत किस्म के पौधे लाए जाते हैं और उन्हें इस जमीन में लगाया जाता है, जो 3 साल बाद फल देना शुरू कर देते हैं. जैसे-जैसे पौधा वृद्धि करने लगता है, मौसंबी का उत्पादन और अधिक होने लगता है. 3 साल में किसान को पहली जब मौसमी की पहली फसल मिलती है तब उसे एक बीघे में 50 हजार का लाभ होता है, वहीं जब यही पौधा 5 साल के हो जाते हैं तो उत्पादन 5 गुना बढ़ जाता है और एक बीघे से लगभग 1लाख 50 हाजर से 1लाख 75 हजार तक की फसल पैदा होती है.

परंपरागत खेती की तुलना में 10 लाभ
देश की 70 फीसदी जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्र में निवास करती है और ग्रामीण क्षेत्र की जनता के जीवन यापन का मुख्य संसाधन कृषि है. इसीलिए एक बड़े वर्ग की चिंता को लेकर सरकार हमेशा चिंतित रहती है और लगातार इस बात के प्रयास किए जा रहे हैं. सरकारी प्रयास कृषि को लाभ का धंधा बनाने में कितने सफल हुए ये तो नहीं कहा जा सकता लेकिन किसानों की बदलती सोच ले उनकी आर्थिक दशा को बदलने की एक ठोस कदम जरूर आगे बढ़ाया है. इसका उदाहरण है मुरैना जिले की जौरा तहसील की ग्राम पंचायत चैना में किसान जो परंपरागत खेती से हटकर मौसंबी की खेती की तरफ रुख करने लगे हैं, जिससे उन्हें परंपरागत खेती की तुलना में 10 गुने से अधिक लाभ हो रहा है.

ABOUT THE AUTHOR

...view details