मंदसौर। शिवना नदी के तट पर स्थित भगवान पशुपतिनाथ मंदिर और प्रदेश का इकलौता अफीम उत्पादक जिला...जी हां हम बात कर रहे हैं, मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले की. राजस्थान से सटे मंदसौर विधानसभा क्षेत्र की राजनीति में धर्म का तडका भले ही न लगता हो, लेकिन मादक पदार्थ और किसान हर बार केन्द्र में होता है. इस विधानसभा सीट पर बीजेपी की तगड़ी पकड़ मानी जाती है. पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा भी इस सीट से जीत चुके हैं. अभी तक के चुनावों में इस सीट से कांग्रेस से दो ही चेहरे विधायक बने हैं. कांग्रेस ने इस सीट पर 1998 में आखिरी बार जीत दर्ज की थी. हार की एक वजह अंदरूनी गुटबाजी भी रही है.
बीजेपी के गढ़ को तोड़ने की कोशिश: मंदसौद विधानसभा सीट 1962 में अस्तित्व में आई थी. इसके बाद से इस सीट पर 13 बार चुनाव हो चुके हैं. इसमें 8 बार बीजेपी और 5 बार कांग्रेस जीत दर्ज कर चुकी है. पिछले तीन विधानसभा चुनावों से इस सीट पर बीजेपी के यशपाल सिंह सिसोदिया लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं. 2018 के आखिरी विधानसभा चुनाव में बीजेपी के यशपाल सिंह सिसोदिया ने कांग्रेस के नरेन्द्र नहाटा को 18 हजार 370 वोटों से हराया था. इस सीट पर कांग्रेस के श्याम सुंदर पाटीदार ही चार बार और नवकृष्ण पाटिल ने 1998 में कांग्रेस के लिए आखिरी चुनाव जीता था. इसके बाद से 2003, 2008, 2013 और 2018 में लगातार बीजेपी ही इस सीट से जीतती आ रही है. आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए बीजेपी विधायक यशपाल सिंह सिसौदिया एक बार फिर दमखम से दावेदारी कर रहे हैं. उधर कांग्रेस की तरफ से महेन्द्र गुर्जर, नवकृष्ण पाटिल, विपिन जैन, नरेन्द्र नाहटा और राजेश रघुवंशी टिकट के लिए दावेदारी कर रहे हैं. हालांकि कांग्रेस के सामने चुनाव में एकजुटता बनाए रखना जीत के लिए अहम सवाल होगा.