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मध्यप्रदेश के मंदसौर में है रावण की ससुराल, आज भी महिलाएं करती हैं घूंघट

मध्यप्रदेश के मंदसौर में रावण की पूजा की जाती है. उसे जमाई का दर्जा दिया जाता है. यहां दशहरे पर रावण का वध न करते हुए उसे पूजा जाता है. यहां का नामदेव समाज रावण को दामाद मानता है और विजयादशमी के दिन शहर के खानपुरा में सीमेंट से बनी रावण की 41 फिट की प्रतिमा की पूजा करता है.

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Published : Oct 15, 2021, 9:48 AM IST

मंदसौर। आज विजयादशमी (vijayadashmi 2021) है. असत्य पर सत्य की विजय के इस पर्व पर बुराई के प्रतिक रावण का जगह-जगह दहन किया जाता है, लेकिन मध्यप्रदेश के मंदसौर में रावण (Ravan Worship) की पूजा की जाती है. उसे जमाई का दर्जा दिया जाता है. यहां दशहरे पर रावण का वध न करते हुए उसे पूजा जाता है. यहां का नामदेव समाज (Namdev Community) रावण को दामाद मानता है और विजयादशमी के दिन शहर के खानपुरा में सीमेंट से बनी रावण की 41 फिट की प्रतिमा की पूजा करता है.

विजयादशमी के दिन की जाती है रावण की पूजा
ऐसा माना जाता है कि रावण की पत्नी मंदोदरी नामदेव समाज की बेटी होकर मन्दसौर की रहने वाली थीं, जिसके कारण रावण को मंदसौर के दामाद का दर्जा दिया गया है. विजयादशमी के दिन नामदेव समाज रावण की प्रतिमा पर ढोल-धमाके के साथ आता है. यहां समाज के लोग रावण के दाहिने पैर में लच्छा बांधकर उसकी पूजा भी करते हैं. मालवा मे दामाद को विशेष महत्व दिया जाता है इसलिए यहां यह मान्यता है कि समाज की हर महिला रावण के सामने घूंघट कर ही गुजरती है. इसके अलावा एक विशेष प्रकार का बुखार आने पर रावण के दाहिने पैर में लच्छा बांधने से वह बुखार भी ठीक हो जाता है. साथ ही मनोकामना पूरी होने पर रावण को तरह-तरह के भोग भी लगाए जाते हैं.

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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मंदसौर नगर का नाम दशपुर नगर था और दशपुर के राजा की बेटी मंदोदरी का विवाह लंकापति दशानन रावण से हुआ था और उसी के नाते लंकेश यहां के जमाई के रूप में सम्मानित और पूजनीय हैं. लोगों का यह भी मानना है कि रावण की पूजा करने से मंदसौर में कोई विपत्ता नहीं आति है.

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