मंदसौर। आजादी की लड़ाई में कई वीर पुरुषों और महिलाओं ने अंग्रेजों से लड़ते हुए अपना बलिदान दिया. देश के लोग उन्हें हमेशा याद करते रहेंगे, लेकिन आजादी की इस लंबी लड़ाई में वीर पुरुषों के अलावा हजारों-लाखों लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने अपने देश को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए अपनी ही जमीन पर लड़ते-लड़ते कुर्बानी दे दी.
1857 की क्रांति के शुरुआती दौर में मंदसौर पर भी अंग्रेजों ने धावा बोल दिया और उनके आक्रमण के पहले ही यहां के शहरवासियों ने गुराडिया देदा इलाके में अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया. उनके हमले के पहले ही मंदसौर के जांबाज क्रांतिकारियों ने दो फिरंगियों को मार गिराया था, इस घटना के बाद गुस्साए अंग्रेजों ने कई लोगों को गोलियों से भून डाला. इसी वजह से इस इलाके का नाम भुनिया खेड़ी पड़ गया, आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों से लोहा लेने में मंदसौर वासियों का योगदान होने से यहां के लोगों को आज भी अपने पूर्वजों के बलिदान पर गर्व है.
किलों पर आक्रमण की कहानी
1857 की क्रांति के दौरान देश में चले जन आंदोलन से अंग्रेजों के हौसले पस्त हो गए थे. तमाम जिलों और गांवों में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह शुरू हो गया था. लिहाजा ब्रिटिश सरकार ने राजा महाराजा के किलों पर ही आक्रमण करना शुरू कर दिया, मंदसौर के किले पर आक्रमण करने की नीयत से जब अंग्रेज शासकों के दो अधिकारी लेफ्टिनेंट रीड और लेफ्टिनेंट टक्कर ने मुगल वंश के शासक फिरोज शाह के साथ मिलकर धावा बोला तो शहर के लोगों ने आक्रमण से पहले ही गुराडिया देदा के जंगलों में उनका सामना करते हुए लेफ्टिनेंट रीड और लेफ्टिनेंट को मार गिराया. इसके बाद गुस्साई अंग्रेज सेना ने कई लोगों को गोलियों से भून दिया, जिस जंगल में मंदसौरवासियों को भूना गया था, उसका नाम बाद में भुनिया खेड़ी पड़ गया.