मंडला। यूं तो माहवारी का नाम सुनते ही महिलाएं मुंह पर ताला लगा लेती हैं, चेहरे को हथेलियों से ढक लेती हैं क्योंकि इसे वो बेहद सीक्रेट और पर्सनल मामला समझती हैं, जिसका किसी से जिक्र करना भी मुनासिब नहीं समझती हैं, लेकिन पीरियड पर खुलकर बात नहीं करने की वजह से कई बार वो खतरों से घिर जाती हैं. मण्डला जिले के धर्मापुर गांव की 90 फीसद महिलाएं आज भी पीरियड के दौरान गंदे-पुराने कपड़ों का इस्तेमाल करती हैं क्योंकि उन्हें ये पता ही नहीं है कि सेनेट्री नैपकिन किस चिड़िया का नाम है.
माहवारी को लेकर समाज में कई कुरीतियां भी प्रचलित हैं. इस दौरान महिलाओं को अपने ही घर में भेदभाव से गुजरना पड़ता है, ऐसा लगता है जैसे उन्होंने कोई गुनाह कर दि या हो. इन्हें न कोई छूता है और न ही इन्हें किचन में जाने की इजाजत होती है, पूजा-पाठ पूरी तरह बंद रहता है.
कपड़े का करती हैं इस्तेमाल सेनेटरी नैपकिन की नहीं है जानकारी
ग्रामीण इलाकों की महिलाएं आज भी कपड़े का इस्तेमाल करती हैं, इसकी एक वजह ये भी है कि उन्हें पैड की जानकारी नहीं है, दूसरा ये कि महिलाओं तक पैड की पहुंच नहीं है, तीसरा ये कि महिलाएं पैड खरीदने में सक्षम नहीं रहती और कपड़े का इस्तेमाल ही कई बार महिलाओं को कैंसर की दहलीज तक पहुंचा देती है.