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प्रवासी मजदूरों के बच्चों की शिक्षा के लिए क्या हैं इंतजाम, कितना तैयार है शिक्षा विभाग?

कोरोना महामारी के चलते जिले और राज्य से दूसरे राज्य में कमाने खाने गए प्रवासी मजदूर वापस लौट आए हैं. जिनके साथ वे बच्चे भी शामिल हैं, जो पढ़ाई कर रहे थे. ऐसे में प्रवासी मजदूरों के बच्चों की शिक्षा की क्या व्यवस्था है, इसे लेकर ईटीवी भारत ने कुछ आंकड़े इकट्ठा किए हैं. पढ़िए पूरी खबर...

Migrant laborers
प्रवासी मजदूर के बच्चे

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Published : Aug 7, 2020, 4:54 PM IST

मंडला। पूरे देश में ऐसे कई लोग हैं, जो काम के लिए एक राज्य से दूसरे राज्य में पलायन करते हैं और जब ये पलायन होता है, तो इसमें पूरे परिवार के सदस्य प्रभावित होते हैं, जिसे कोरोना महामारी ने सबके सामने लाकर रख दिया है. आज पूरा देश कोरोना महामारी से जंग लड़ रहा है, ऐसे में बाहर कमाने खाने गए लोगों को मुसीबत में अपने गांव की मिट्टी याद आ रही है और हजारों की संख्या में लोग परिवार सहित वापस अपने घर लौट आए हैं. जिनके साथ वे बच्चे भी शामिल हैं, जो पढ़ाई लिखाई किया करते थे, ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इन बच्चों को पढ़ाई से कैसे जोड़ा जाएगा और शिक्षा विभाग ने इनके लिए क्या सोचा है?

कैसे पढ़ेंगे प्रवासियों के बच्चे

मंडला जिले से बड़ी संख्या में मजदूर पलायन करते हैं, जिसका अंदाजा इस आंकड़े से लगाया जा सकता है कि मार्च से लगे लॉकडाउन के बाद से अब तक जिले में 39332 लोग घर वापस लौटे हैं, जिनमें से विदेश से 142 और 39190 व्यक्ति दूसरे राज्यों या फिर दूसरे जिलों से मंडला जिले में वापस आए हैं, जिनके साथ उनका परिवार और बच्चे भी वापस लौटें है. ऐसे में ईटीवी भारत ने यह जानने की कोशिश की है कि आखिर सभी वापस लौटे लोगों का आंकड़ा किस तरह से सहेजा जा रहा है, जिसके बाद पता चला कि आंगनबाड़ी की कार्यकर्ताओं द्वारा बाहर से आए लोगों का सर्वे किया जा रहा है और यही आंकड़ों का आधार है.

कुल बाहर से आए बच्चों की संख्या

प्रवासी व्यक्तियों के साथ लौटे बच्चों की संख्या ईटीवी भारत के द्वारा दो आयु वर्ग में बांट कर ली गई है, क्योंकि हमारा लक्ष्य यह जानना था कि आखिर इन बच्चों की पढ़ाई के लिए जिला शिक्षा विभाग आखिर किस तरह के इंतजाम कर रहा है.

8वीं से 12वीं तक के बच्चे

प्रवासी श्रमिकों के साथ लौटे 5 से 14 वर्ष के बच्चों की संख्या

  • घुघरी जनपद में कुल 127 बच्चे हैं, जिसमें से 64 बच्चे शाला में प्रवेशित, 63 बच्चे शाला में प्रवेश कराए जाने हैं.
  • नैनपुर जनपद में कुल 163 बच्चे हैं, जिसमें से 93 बच्चे शाला में प्रवेशित, 70 बच्चे शाला में प्रवेश कराए जाने हैं.
  • मोहगांव जनपद में कुल 137 बच्चे हैं, जिसमें से 51 बच्चे शाला में प्रवेशित, 86 बच्चे शाला में प्रवेश कराए जाने हैं.
  • मंडला में कुल 75 बच्चे हैं, जिसमें से 39 बच्चे शाला में प्रवेशित, 36 बच्चे शाला में प्रवेश कराए जाने हैं.
  • मवई जनपद में कुल 86 बच्चे हैं, जिसमें से 32 बच्चे शाला में प्रवेशित, 54 बच्चे शाला में प्रवेश कराए जाने हैं.
  • बिछिया जनपद में कुल 90 बच्चे हैं, जिसमें से 48 बच्चे शाला में प्रवेशित, 42 बच्चे शाला में प्रवेश कराए जाने हैं.
  • नारायण गंज जनपद में कुल 65 बच्चे हैं, जिसमें से 32 बच्चे शाला में प्रवेशित, 33 बच्चे शाला में प्रवेश कराए जाने हैं.
  • बीजाडांडी जनपद में कुल 21 बच्चे हैं, जिसमें से 9 बच्चे शाला में प्रवेशित, 12 बच्चे शाला में प्रवेश कराए जाने हैं.
  • निवास जनपद में कुल 10 हैं, जिसमें से बच्चे 3 बच्चे शाला में प्रवेशित, 7 बच्चे शाला में प्रवेश कराए जाने हैं.
  • बिछिया नगर परिषद में कुल 6 बच्चे हैं, जिसमें से 3 बच्चे शाला में प्रवेशित, 3 बच्चे शाला में प्रवेश कराए जाने हैं.
  • मंडला नगर परिषद में ऐसा एक भी बच्चा नहीं है, जिनका शाला में प्रवेश कराया जाना है.

इस तरह देखा जाए तो 5 साल से 14 साल के वे बच्चे जो कक्षा पहली से आठवीं तक के हैं. उनकी कुल संख्या 777 है, जिनमें से महज 406 बच्चों को ही पढ़ाई से जोड़ा जा सका है, जबकि 371 बच्चों को अभी पढ़ाई का कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है. इस तरह कुल लाभान्वित बच्चों की संख्या 48 प्रतिशत से भी कम आती है.

प्रवासी मजदूर

प्रवासी श्रमिकों के साथ लौटे 15 से 18 साल के बच्चों की संख्या

  • घुघरी जनपद में कुल 373 बच्चे हैं, जिसमें से 45 बच्चे शाला में प्रवेशित हैं, 228 बच्चे शाला में प्रवेश कराए जाने हैं.
  • नैनपुर जनपद में कुल 268 बच्चे हैं, जिसमें से 56 बच्चे शाला में प्रवेशित हैं, 212 बच्चे शाला में प्रवेश कराए जाने हैं.
  • मोहगांव जनपद में कुल 227 बच्चे हैं, जिसमें से 38 बच्चे शाला में प्रवेशित, 189 बच्चे शाला में प्रवेश कराए जाने हैं.
  • मंडला जनपद में कुल 225 बच्चे हैं, जिसमें से 29 बच्चे शाला में प्रवेशित हैं, 196 बच्चे शाला में प्रवेश कराए जाने हैं.
  • मवई जनपद में कुल 210 बच्चे हैं, जिसमें से 34 बच्चे शाला में प्रवेशित हैं, 176 बच्चे शाला में प्रवेश कराए जाने हैं.
  • बिछिया जनपद में कुल 194 बच्चे हैं, जिसमें से 42 बच्चे शाला में प्रवेशित, 158 बच्चे शाला में प्रवेश कराए जाने हैं.
  • नारायणगंज जनपद में कुल 162 बच्चे हैं, जिसमें से 33 बच्चे शाला में प्रवेशित, 129 बच्चे शाला में प्रवेश कराए जाने हैं.
  • बीजाडांडी जनपद में कुल 95 बच्चे हैं, जिसमें से 12 बच्चे शाला में प्रवेशित, 83 बच्चे शाला में प्रवेश कराए जाने हैं.
  • निवास जनपद में कुल 73 बच्चे हैं, जिसमें से 20 बच्चे शाला में प्रवेशित, 53 बच्चे शाला में प्रवेश कराए जाने हैं.
  • बिछिया नगर परिषद में कुल 4 बच्चे हैं, जिनका शाला में प्रवेश होना है.
  • मंडला नगर परिषद में कुल 2 बच्चे हैं, दोनों बच्चों का शाला में प्रवेश कराया जाना है.

इस तरह देखा जाए तो 15 साल से 18 साल के वे बच्चे जो कक्षा आठवीं से बारहवीं तक के हैं, उनकी कुल संख्या 1526 है, जिनमें से महज 360 बच्चों को ही पढ़ाई से जोड़ा जा सका है. जबकि 1226 बच्चों को अभी पढ़ाई का कोई लाभ नहीं मिल पा रहा. इस तरह कुल लाभान्वित बच्चे 20 फीसदी से भी कम हैं.

बुक बैंक

सर्वे का निर्देश नहीं, आने वालों को दिया जाए प्रवेश

शिक्षा विभाग से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि प्रवासी बच्चों के सर्वे का कोई निर्देश राज्य शिक्षा केन्द्र से नहीं मिला है. आंकड़े जरूर उपलब्ध कराए गए हैं. ऐसे में जो भी बच्चे आते हैं उन्हें बिना ट्रांसफर सार्टिफिकेट के ही दाखिला उम्र और पहले की पढ़ाई की दी गई जानकारी के आधार पर दिया जाएगा, साथ ही शिक्षा के अधिकार के तहत हर तरह से उन्हें पढ़ाई की सामग्री और सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी.

स्कूल

मंडला जिले में 5 साल से 18 साल के कुल 2303 बच्चे प्रवासी व्यक्तियों के साथ वापस अपने घर लौटे हैं. जिनमें से अभी कुल 706 बच्चे ही स्कूल में दाखिला ले पाए हैं, जबकि 1597 बच्चों का एडमिशन होना बाकी है. ऐसे में समझा जा सकता है कि अगस्त का पहला सप्ताह बीतने को है और सिर्फ 30 प्रतिशत बच्चे ही पढ़ाई से जुड़ पाए हैं, जबकि 70 प्रतिशत बच्चों का स्कूल में एडमिशन ही नहीं हुआ है, तो उन्हें कोरोना महामारी के चलते स्कूल नहीं खुलने से डीजी लैब, मोबाइल, टीवी रेडियो, हमारा घर हमारा विद्यालय और किताबों के वितरण जैसी वैकल्पिक पढ़ाई का लाभ कैसे मिल रहा होगा. कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि पलायन हो या महामारी ये सब घर वापस आए मजदूरों के बच्चों के भविष्य पर गहरा आघात है. ऐसे में प्रवासी मजदूरों के बच्चों को शिक्षा कैसे होगी ये सोचने का विषय है.

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