मध्य प्रदेश

madhya pradesh

ETV Bharat / state

लॉकडाउन में लॉक आदिवासी परंपरा, न धुन, न कोई राग, सूने पड़े खेत-खलिहान - tribal traditional song lock

लॉकडाउन में आदिवासियों की पारंपरिक लोकधुन भी पूरा तरह लॉक हो गयी है, अब न लोकगीत सुनाई पड़ती है, न कोई राग से राग मिलाता है, बस चारों तरफ सन्नाटा ही सन्नाटा पसरा है, जबकि बाकी दिनों में बिना लोकधुनों के आदिवासियों का कोई भी काम पूरा नहीं होता था.

Design photo
डिजाइन फोटो

By

Published : May 20, 2020, 10:35 AM IST

Updated : May 20, 2020, 1:24 PM IST

मंडला। भले ही देश कितना आधुनिक क्यों न हो जाए, पर आज भी अपनी संस्कृति को आदिवासी बड़ी शिद्दत से संजो रहे हैं, कोरोना की चेन तोड़ने के लिए पूरे देश में लॉकडाउन है तो इस खामोशी में आदिवासी लोकधुन भी खामोश है, जबकि और दिनों में बिना लोकधुनों के इनका कोई काम पूरा नहीं होता था और इन्हीं परंपराओं में इनकी खुशियां बसती हैं, मुश्किल दौर को भी आदिवासी इन्हीं धुनों की तान में शामिल कर आसान कर लेते हैं. इनकी खासियत ये है कि ये दिखावे पर नहीं जाते, बल्कि ढोल-नगाड़े की धुन पर लोकगीतों के जरिए खुशियां ढूंढ लेते हैं.

आदिवासी परंपराओं पर कोरोना का कहर

चाहे फसल की कटाई हो, महुआ बीनना हो या फिर तेंदू पत्ते की तुड़ाई हो, ऐसा कोई मौका आदिवासी अपने हाथ से नहीं जाने देते, जो बिना लोकधुनों के पूरा हो, लेकिन अब कोरोना का साया आदिवासी परंपराओं पर भी गहराने लगा है. इन दिनों मंडला के वनांचल में आदिवासी महुआ बीनने के साथ ही तेंदू पत्ता तोड़ने भी जा रहे हैं, लेकिन कहीं भी अब कोई धुन सुनाई नहीं पड़ रही है. ऐसा ही सन्नाटा फसलों की कटाई के बाद होने वाले आयोजनों में भी दिख रहा है.

अल सुबह वनांचल के ग्रामीण महुआ बीनने निकल जाते हैं, हर महुए के फूल टपकने के साथ ही सन्नाटे को आदिवासियों का संगीत गुंजायमान कर देता था, किसी ने कोई धुन छेड़ा तो दूसरे ने उसके राग से राग मिला दी और बंध गया समां, यही कुछ नजारा होता है, जब ग्रामीण बीड़ी पत्ता यानी तेंदू पत्तियों को तोड़ने जाते हैं, लेकिन इस साल लोक संगीत को कोरोना की ऐसी नजर लगी है कि न कहीं से कोई धुन सुनाई देती है और न ही कोई राग से राग मिलाता है. बस हर तरफ सन्नाटा है.

इस साल लॉकडाउन के चलते फसलों की कटाई देर से हुई, जबकि लोक संगीत और पारम्परिक नृत्य के आयोजन भी नहीं हुए. इस सीजन में ही आदिवासियों के यहां शादियां होती थी, जिनमें महिलाओं और पुरूषों की अलग-अलम महफिले सजती थी, लेकिन लॉकडाउन के चलते अदिवासियों की परम्पराओं और रीति रिवाजों में कहीं न कहीं ताला सा लग गया है जो बिना राग और पारंपरिक धुनों के बड़ा नीरस सा लग रहा है.

Last Updated : May 20, 2020, 1:24 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details