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अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करती मां नर्मदा, योजना को ठेंगा दिखाती सिमटती जलधारा

नर्मदा नदी लगातार सिमट रही है. जिस तरह से नर्मदा घाटों पर किनारों में सिल्टें बढ़ रही हैं, वैसे-वैसे नर्मदा नदी पर खतरा साफ तौर पर दिख रहा है. आदिवासी जिला मंडला में भी नर्मदा नदी सिमट कर रह गई है. आखिर क्यों सरकार की योजनाएं नर्मदा को बचाने में नाकाफी साबित हो रही हैं. पढ़ें पूरी खबर...

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Published : Nov 23, 2020, 11:42 PM IST

मंडला।कल-कल बहने वाली जीवनदायनी नर्मदा नदी अपने घाटों से सिमट कर अब दूर जा रही हैं. आदिवासी जिला मंडला में तो आलम ये है कि घाटों से जलधारा की दूरी 50 मीटर से भी ज्यादा दूर हो चली है. इस दूरी की गवाही घाटों के किनारे की सिल्टें खुद दे रही हैं.

घाटों से दूर हुई जल धारा

मंडला का संगम घाट हो, शनि घाट हो या फिर कई दूसरे घाट, आज हर घाटों से जलधारा की दूरी लगातार बढ़ती जा रही है. पहले जो भी घाट बनाए गए थे, वे नर्मदा नदी की जल धारा के करीब यह सोच कर बनाए गए थे कि पावन पर्वों और मुहूर्त में डुबकी लगाने वाले श्रद्धालुओं को बिना किसी परेशानी के नर्मदा स्नान का पुण्य मिल सके. लेकिन आज छोटा प्रयाग कहलाए जाने वाले त्रिवेणी संगम के हाल कुछ यूं हैं कि लोगों को श्राद्ध कर्म के साथ ही नर्मदा मां की पूजा आराधना करीब 50 से 100 मीटर दूर करनी होती है. वहीं स्नान के लिए बह कर आई सिल्ट से होकर गुजरना होता है. अब डुबकी लगाने वालों को भी कीचड़ भरा जल ही नसीब हो पा रहा है.

लगातार सिमटती जा रही नर्मदा की जलधारा

वनों की कटाई है मुख्य कारण

मंडला जिले को एक समय घने जंगलों के लिए जाना जाता था और मैकल की पहाड़ियों से कल-कल करती नर्मदा नदी की अविरल धारा बहती थी लेकिन अब न तो सतपुड़ा के घने जंगल रहे और न ही नर्मदा तट पर वे वन जिनकी जड़ें मिट्टी के कटाव को रोकती थीं. यही वजह है कि बरसात के महीने में बड़ी मात्रा में मिट्टी बह कर आती है और सिल्ट के रूप में जमा होकर नर्मदा की धारा को ही धीरे-धीरे खत्म कर रही हैं.

पतली हो रही नदियों की जलधारा

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किसकी है जिम्मेदारी

सरकारें नर्मदा किनारे वृक्षारोपण के नाम पर नमामि देवी नर्मदे जैसी योजनओं का आयोजन कर करोड़ों रुपए खर्च कर रहीं हैं. इन योजनाओं का उद्देश्य नर्मदा और उनकी सहायक नदियों को बचाना है. घाटों के किनारों पर वृक्षारोपण और नदियों के ही जलीय जीवों के संरक्षण की दिशा में काम करना इन योजनाओं का उद्देश्य है लेकिन नदी संरक्षण बोर्ड हो या फिर कोई भी योजना, उनका नतीजा निकलता नहीं दिख रहा है.

सफाई पर कोई नहीं देता ध्यान

तमाम नदियां आज सिमट कर नालों में तब्दील होती नजर आ रही हैं. मंडला नगर पालिका क्षेत्र में घाटों की साफ-सफाई से लेकर मेले का ठेका और आयोजन नगर पालिका प्रशासन द्वारा किया जाता है, लेकिन सिल्ट सफाई की कोई योजना उसके पास नहीं और न ही अलग से बजट का इंतजाम. नगर पालिका अध्यक्ष पूर्णिमा शुक्ला का कहना है कि प्रशासन से कई बार कहा गया लेकिन इसके लिए कोई ठोस योजना बना कर कार्य अब शुरू नहीं हुआ है.

सूख गई नर्मदा

क्या कहते हैं जानकार

समाजसेवियों और जिले के कई वरिष्ठ नागरिकों का कहना है कि नगर पालिका की उदासीनता के साथ ही सरकारें जिला स्तर पर कोई पहल नहीं करने के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार हैं. नर्मदा की हालत को देखते हुए जरूरत हैं कि इसकी गंभीरता को समझा जाए और समय रहते सिल्ट निकाले जाने की दिशा में कदम उठाए जाएं. नहीं तो वो दिन दूर नहीं जबकापू के ये बड़े-बड़े ढे़र पूरी नदी को ही समेट कर एक धारा में बदल देंगे. और तो और सिर्फ बारिश के बाद ही नदी अस्तित्व रह जाएगा.

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बीते दो सालों में हुए बददत्तर हालात

बीते दो सालों की गर्मियों में नर्मदा नदी में पानी की जितनी कमी देखी गई है उतनी कभी नहीं देखी गई. आलम ये है कि नर्मदा की गीली रेत में लगाई जाने वाली सब्जी, गर्मियों के मौसमी फल जैसे तरबूज, डिंगरा और खीरा तक नहीं लगाए जा रहे हैं. जिन घाटों का पानी कभी सूखता नहीं था, वहां लोग अब पानी देखने के लिए तरस गए हैं.

इन घाटों से नर्मदा की दूरी कोई एक दिन की नहीं बल्कि सालों की नाराजगी की वजह से है. आखिर कब तक मां नर्मदा यह सहती रहे कि लोग बस पर्वों में आकर पुण्य कमाएं और उनके संरक्षण की दिशा में कोई काम ही न किए जाएं.

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