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गणतंत्र के लिए आजादी के परवानों ने सीने पर खाईं थी गोलियां, उदयचंद जैन की वीरता को सलाम - Quit India Movement

71वां गणतंत्र दिवस के मौके पर मंडला के वीर सपूत उदयचंद जैन की कहानी एक बार फिर याद की जा रही है. 14 अगस्त 1942 को उदयचंद जैन वंदे मातरम के नारे के साथ आंदोलन कर रहे थे. लेकिन अंग्रेजी हुकूमत को ये रास नहीं आया और उनके सीने पर गोली चला दी.

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गणतंत्र दिवस विशेष

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Published : Jan 25, 2020, 12:47 PM IST

मंडला। भारत अपना 71वां गणतंत्र दिवस मना रहा है. लेकिन देश को गणतंत्र कहलाने का गर्व ऐसे ही नहीं मिली. 15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ. जिसके बाद 26 जनवरी 1950 को देश का संविधान लागू किया गया ये वो पल था. इस आजादी के पीछे देश के कई शहीदों के खून बहा है.ऐसे ही एक शहीद थे मंडला के उदयचंद जैन जिनकी अमर गाथा को सब सलाम करते हैं.

गणतंत्र दिवस विशेष

सन 1942 में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन का शंखनाद सारे देश भर में आज़ादी के परवानों ने छेड़ी दी थी. सारे देश से होते हुए यह लहर मंडला तक भी पहुंची, यहां से होने वाले विद्रोह को देखते हुए तमाम बड़े नेता जो आंदोलन की अगुआई कर रहे थे. उन्हें अंग्रेजी पुलिस ने घरों से उठा कर थानों में या जेल में ठूंस दिया. मंडला क्षेत्र से पंडित गिरिजा शंकर अग्निहोत्री, उमेश दत्त पाठक,डिंडौरी क्षेत्र से गन्दू भोई अंग्रेजों की नाक में दम कर चुके थे. भगवान सिंह कुस्ताजर, जुगलकिशोर कुसतवार,बाबू लाल यादव,गया प्रसाद यादव जैसे दर्जनों नाम जो हर तरफ से अंग्रेजों के खिलाफ बगावत कर रहे थे. इसी दौरान नवयुवकों को एकता के सूत्र में बांधने एक कार्यक्रम का आयोजन टाउन हॉल में किया. जहां कार्यक्रम के दौरान गिरिजाशंकर जैसे बड़े नेताओं के गिरफ्तार होने की खबर पहुंची. नाटक और कार्यक्रम सुबह पांच बजे जब खत्म हुआ तो पुलिस ने और भी नेताओं को गिरफ्तार कर दमन कारी नीति अपनाई,अब शहर में सिपाहियों के बूटों, बंदूक की खड़खड़ ही सुनाई दे रही थी. लोगों को समझ नहीं आ रहा था कि अब उस आंदोलन की अगुआई कौन करेगा

कौन थे उदयचंद जैन

14 अगस्त 1942 उदयचंद जैन महारपुर के अपने घर से विद्यालय जाने के लिए निकले घर के सदस्यों को या उदयचन्द को खुद नहीं पता था कि आगे क्या होने वाला है. उदय दिनभर अपने साथी चित्र भूषण के साथ रहे. इसी रात को हनुमान मंदिर में बैठक भी हुई. रातभर उदय चन्द घर नहीं गये. दूसरे दिन 15 अगस्त को स्कूल में भी वंदे मातरम की आवाज सुनाई दे रही थी. स्कूल बंद करने के लिए गौरीशंकर नामदेव धरने पर बैठ गए जिन्हें जगन्नाथ स्कूल प्रधानपाठक मेलाराम शर्मा ने समझाने की कोशिश की. स्कूल सुबह की पारी में लगा था,चार छात्र प्रधानाध्यापक के पास जुलूस में शामिल होने के लिए इजाजत लेने गये. जिन्हें टीसी दे दी गयी इसी दौरान स्कूल की छुट्टी हो गयी जुलूस की तैयारी छात्रों ने कर ली थी.

वीर सपूत उदयचंद जैन की वीर गाथा

ऐसे निकला था वो जुलूस

जुलूस नर्मदा गंज से प्रारंभ होकर कमानिया गेट,मस्जिद के मध्य खड़ा था. फतह दरवाजा और अस्पताल के बीच रिजर्व इंस्पेक्टर मिस्टर फॉक्स के नेतृत्व में सशस्त्र पुलिस बल के जवान तैयार खड़े थे. जुलूस जिलाध्यक्ष कार्यालय पहुंचने से पहले ही रोक दिया गया. इंस्पेक्टर भीड़ को बार बार चेतावनी दे रहे थे कि अगर आगे बढ़े तो गोली मार दी जाएगी. जिसका कोई असर नहीं हो रहा था. जुलूस को सभा मे बदल दिया गया. इसी दौरान आग उगलते भाषण और उन्मादी नारो का दौर चालू हो गया अंग्रेजों की परेशानी बढ़ती जा रही थी भीड़ उत्तेजित हो चली थी,अब पत्थर भी फेंके जाने लगे थे.

कैसे हुए शहीद

उदय चन्द जैन जो अभी तक कुएं के निकट से लोगों को समझा रहे थे. लेकिन अंग्रेजों को लगा कि यह उन्हें ललकार रहा है और अंग्रेज ने उन्हें धमकाते हुए कहा पीछे हट जाओ नहीं तो गोली मार दी जाएगी. उदय चन्द जैन ने अपनी कमीज की बटन खोल दी और कहा यहां चलाओ गोली बस फिर क्या था, एक गोली चली जो पास के घर में जा धंसी और दूसरी गोली उदय के पेट के भीतर समा गई उदय लड़खड़ा कर गिर गए वो तड़फ रहे थे. इधर भीड़ को तीतर बितर करने जम कर लाठी चार्ज हुए कितने ही घायल हुए और फिर तूफान के बाद शांति,उदय रक्त रंजित मैदान में पड़े थे.

गोली लगने के बाद क्या हुआ

उदय को पास ही अस्पताल में लाया गया लेकिन दूसरे दिन 16 अगस्त को उदय उस सफर के लिए चल पड़े जहां से कोई वापस नहीं आता. जैसे ही घर पर खबर पहुंची तो उदय की मां खिलौना बाई और पिता त्रिलोक चंद तड़फ उठे आखिर नवम्बर 1922 में जन्मे उदय की अभी उम्र 20 साल ही तो थी. लोगों का हुजूम फिर लगने लगा एक शहीद की शहादत को सलाम करने शहर से लेकर घर तक भारी भीड़,महाराजपुर में शहीद को अंतिम विदाई दी गई. इतिहासकार गिरिजा शंकर अग्रवाल भी आज़ादी के इस नायक को सलाम करते हुए उनकी कहानियों को गर्व से बताते हैं. उदयचंद जैन प्रदेश के नंद बिहारी पांडे, राणा बख्ताबर सिंह,लाल पद्म धर, रूद्रप्रताप ठाकुर के बाद पांचवे शहीद थे. जिन्होंने मण्डला में सबसे पहले अपनी जान देकर कर अंग्रेजों से लोहा लिया और उनकी शहादत के ठीक पांच साल बाद देश को आज़ादी मिली.

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