मंडला। पुराणों और धार्मिक कथाओं के अनुसार बिल्ब पत्र जिसे साधारण भाषा में बेल पत्र कहा जाता है. इसकी उत्पत्ति मां भगवती के पसीने की बूंद से मैकल पर्वत पर मानी जाती है. वहीं भगवान भोलेनाथ को ये भोजन के रूप में अत्यंत प्रिय है. इसलिए भगवान शिव का कोई भी धार्मिक अनुष्ठान बिना बेल पत्र के पूरा नहीं माना जाता. भगवान शिव का अभिषेक हो या सावन सोमवार की पूजा. हर अनुष्ठान में इसका महत्व होता है. बेल पत्र सामान्य तौर पर तीन पत्तियों के होते हैं, लेकिन मंडला जिले की हिरदेनगर की शिव वाटिका में जो बेल पत्र पाए जाते हैं, इन बेल पत्र में पांच और नौ पत्तियां तक होती हैं.
दुर्लभ हैं तीन से ज्यादा दलों वाले बेल पत्र
माना जाता है कि किसी को यदि तीन से ज्यादा दलों वाली बेल पत्र मिल जाए, तो उसे भगवान शंकर को चढ़ाने के बाद घर के मुख्य दरवाजे में फ्रेम करा कर रखने से पूजा स्थल पर रख कर प्रतिदिन पूजा करने से, रामायण या धार्मिक किताबों में दबा कर रखने से और तिजोरी या आलमारी, व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में रखने से अलग-अलग तरह के फल प्राप्त होते हैं. ऐसे पेड़ भारत मे लाखों में एक पाए जाते हैं. ये पेड़ ज्यादातर नेपाल में मिलते हैं.
दूर दराज से बेल पत्र लेने आते हैं लोग हिरदेनगर की शिव वाटिका में है अनूठा पेड़
मंडला जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर करीब 50 साल पुराना एक ऐसा ही पेड़ है जिसकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है. इस पेड़ के दर्शन करने और इसकी पत्तियों की चाह में शिव के भक्त दूर-दूर से यहां आते हैं. वहीं इस पेड़ की सेवा करने वाला परिवार लोगों को इसके महत्व बताने के साथ ही बेल की पत्तियां भी तोड़ कर देता है.
12 पत्तियों वाला बेल पत्र बीमारियों में भी कारगर है बेल
बेल की पत्तियों में टैनिन, आयरन, कैलिशयम, पोटेशियम और मैग्नीशियम जैसे रसायन पाए जाते हैं. बेल की पत्तियों का चूर्ण पाचन क्रिया को दुरुस्त रखता है. वहीं गैस होने पर ये तुरंत आराम देता है. जबकि बेल की पत्तियां खाने से आंखों की रोशनी बढ़ती है. बेल के फल शक्ति के प्रतीक माने जाते हैं. जो शीतलता प्रदान करते हैं. आयुर्वेद चिकित्सा में इसके खास महत्व के चलते अब इसकी खेती भी बहुत से इलाकों में की जाने लगी है.
स्कंद पुराण के अनुसार देवी की ललाट के पसीने की बूंद से उत्पन्न हुए बेल पत्र के पेड़ में महालक्ष्मी का वास माना जाता है. वहीं वृक्ष की जड़ों में गिरजा तना में महेश्वरी शाखाओं में दक्षयायनी पत्तियों में पार्वती, फूलों में गोरी और फलों में कात्यायनी देवी वास करती हैं. भगवान शंकर के त्रिनेत्र और त्रिशूल के साथ ही 3 लोकों के स्वरुप बेलपत्र के 12 दलों वाली पत्तियों को बारह ज्योतिर्लिंगों जैसा महत्व दिया जाता है.