मंडला।कहते है अगर हौसले बुलंद हों और इरादों में दम, तो हर मंजिल आसान हो जाती है. कुछ ऐसी ही कहानी है बच्चों को योगा सिखाती इस महिला की. जिन्हें मैराथन गर्ल मिनी सिंह के नाम से जाना जाता है. मंडला में रहने वाली मिनी सिंह किसी पहचान की मोहताज नहीं, वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मैराथन रेस में भारत के लिए कई मेडल जीत चुकी है.
मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी मैराथन गर्ल मिनी सिंह ने मुफलिसी के दौर में अपनी मेहनत से वो मुकाम पाया, जिसका सपना कभी उनके पिता ने देखा था. मिनी बताती हैं कि उनके पिता पिता मदन सिंह हॉकी के राष्ट्रीय स्तर के कोच थे. उनका सपना था कि उनकी बेटी भी अच्छी खिलाड़ी बने, अपने पिता के इस सपने को पूरा करने मिनी सिंह ने हॉकी से इतर मिनी मैराथन को चुना. आर्थिक तंगी के बीच भी मिनी ने मेहनत जारी रखी और धीरे-धीरे मैराथन रेस में अपना अलग मुकाम बनाया.
मेडल जीतने के बाद मिनी सिंह अब तक कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में भाग ले चुकी मिनी सिंह 20 गोल्ड, 20 ब्रांन्ज और 35 सिल्वर मेडल जीत चुकी हैं, तो 2018 में सम्पन्न हुए मलेशिया के एशियाई पैसिफिक स्पोर्ट्स इवेंट्स में तो 64 देशों के बीच अपना डंका बजा दिया था. इस प्रतियोगिता में उन्होंने. 5 हजार मीटर रन एंड वॉक में गोल्ड मेडल, फोर इन टू फोर रन में ब्रॉन्ज मेडल और 15 सौ मीटर दौड़ में सिल्वर मेडल जीतकर इतिहास रच दिया था.
विदेशी खिलाड़ियों के साथ मिनी सिंह भले ही मिनी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक अलग पहचान बना चुकी हैं, लेकिन सरकार से उन्हें वो मदद नहीं मिली, जिसकी वह हकदार थीं. मिनी सिंह कहती हैं कि, एथलीट में वे विदेशी धरती पर होने वाली हर एक प्रतियोगिता में भाग लेकर देश के लिए ज्यादा से ज्यादा गोल्ड मेडल लाना चाहती हैं. इसके लिए लगातार मेहनत भी करती हैं. इसलिए वे किसी से उम्मीद भी नहीं करती खुद कमाती हैं और खेल पर ही खर्च करती हैं.
मिनी सिंह अपने जैसे कई और खिलाड़ियों को तैयार करने में जुटी है, वे मंडला जिले की लड़कियों दौड़ और योगा की ट्रेनिंग दे रही हैं. उनकी इस मेहनत का परिणाम भी सामने आने लगा है, उनकी सिखाई हुई लड़कियों ने अब तक 4 प्रदेश स्तर के केम्प, टूर्नामेंट में भाग लिया है और हर जगह से मेडल या कप लेकर ही लौटी हैं. मिनी सिंह कहती हैं, महिलाएं किसी से कम नहीं होती बस हौसला बड़ा होना चाहिए, रास्ते अपने आप बन जाते हैं.