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जमुना उइके ने भरी हौसलों की उड़ान, दिव्यांग होने के बाद भी नहीं मानी हार - athlete jamuna uikey

मंडला के वनांचल की आदिवासी दिव्यांग बेटी जमुना उइके ने हौसलों में उड़ान भरकर मिसाल पेश की है. वर्ल्ड एथलिट डे पर जानिए जमुना के हौसलों की कहानी.

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मुश्किलों से पंगा

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Published : May 7, 2020, 8:57 PM IST

मंडला।हौसला हो तो कोई भी काम नामुमकिन नहीं होता और इरादे मजबूत हों तो कोई भी मुश्किल आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती. इसी बात की मिसाल पेश की है, मंडला के छोटे से गांव में जन्मी दिव्यांग एथलीट जमुना उइके ने, जिसने कभी परेशानियों से हार नहीं मानी. अपने हौसलों में उड़ान भर जुनून के साथ सिर्फ अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती रहीं.

मुश्किलों से पंगा

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पढ़ाई के साथ सीखती रहीं खेल

वनांचल की आदिवासी बेटी ग्रामीण परिवेश में पली-बढ़ी जमुना ने अपने दिव्यांग होने पर कभी मलाल नहीं किया. आर्थिक स्थितियां ठीक नहीं होने के बावजूद अपनी पढ़ाई के साथ-साथ डिस्क थ्रो(तवा फेंक), शॉर्ट पुट(गोला फेंक), जैवलिन थ्रो (भाला फेंक) जैसे खेल सीखती रहीं. गांव में हर कोई जमुना को दिव्यांग देख कहता कि बड़ी होकर ये दिव्यांग बच्ची क्या करेगी. लेकिन जमुना ने कभी ध्यान न देते हुए अपने जुनून को तवज्जो दी और कड़ी मेहनत कर इस मुकाम को हासिल किया.

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सीखते-सीखते बन गया जुनून
खेलों को सीखते-सीखते जमुना छोटी-मोटी प्रतियोगिताओं में भी हिस्सा लेनी लगीं, जिस कारण ये उनका जुनून बनने लगा. कड़ी मेहनत कर उन्हीं प्रतियोगिताओं में सफलता हासिल की और पुरस्कार जीतें. जिस वजह से उनके हौसलों में उड़ान और इरादों में दृढ़ता आईं. जब-जब उन्हें पुरस्ककार मिलता, तब-तब उनके अंदर नई ऊर्जा का संचार होता और वे दोगुनी मेहनत के साथ प्रैक्टिस में लग जाती.

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मलेशिया टूर्नामेंट के लिए हुआ चयन

सिवनी जिले में राज्यस्तरीय मास्टर एथलीट प्रतियोगिता में जमुना ने तवा और गोला फेंक में गोल्ड मैडल, तो वहीं भाला फेंक में सिल्वर मैडल हासिल किए, जिसके बाद उनका चयन 2019 में हरियाणा के पंचकुला में आयोजित राष्ट्रीय मास्टर एथलीट प्रतियोगिता के लिए हुआ. पंचकुला प्रतियोगिता में हजारों की संख्या में खिलाड़ी पहुंचे थे. इस दौरान जमुना ने तवा फेंक प्रतियोगिता में कांस्य पदक अपने नाम कर बड़ी सफलता हासिल की. इसके अलावा इसी प्रतियोगिता के द्वारा मलेशिया में आयोजित होने वाले टूर्नामेंट के लिए भी उनका चयन हुआ था लेकिन कोरोना काल के चलते यह प्रतियोगिता स्थगित हो गई.

शासन-प्रशासन से नहीं मिली मदद
जमुना ने बताया कि उन्होंने जो भी पाया वो सब खुद की मेहनत से पाया है. उन्हें कभी शासन-प्रशासन का सहयोग नहीं मिला. वनांचल की आदिवासी बेटी के साथ ही मास्टर डिग्री करने वाली जमुना उइके वृद्धाश्रम में नौकरी कर जमुना अपना गुजर-बसर कर रही हैं. उनका कहना है कि खेल उनकी जिंदगी और वे खेलना कभी नहीं छोडेंगी.

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जमुना के जज्बे को ETV भारत सलाम करता है क्योंकि निश्चित ही अंतराष्ट्रीय स्तर तक अपने पक्के इरादे और हौसलों की बदौलत पहचान बनाने वाली जमुना नजीर हैं, उन युवाओं लिए जो ऐसा मुकाम पाना चाहते है, क्योंकि जमुना ने यह साबित कर दिया है कि सामान्य लोगों के बीच आयोजित प्रतियोगिता में भी हौसलों के आगे हर मुकाम पाया जा सकता है.

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