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'सिकलसेल' की जद में मंडला, हर महीने बढ़ रही मरीजों की संख्या, नहीं मिल रहा इलाज

आदिवासी बाहुल्य मंडला जिले में सिकलसेल नाम की अनुवांशिक बीमारी तेजी से पैर पसार रही है. ताज्जुब की बात यह है कि स्वास्थ्य विभाग के पास न तो इस बीमारी का सही इलाज है और न अब तक बीमारी से पीड़ित मरीजों के कोई आंकड़े जुटाए गए हैं. हालांकि सामान्य तौर पर सिकलसेल से पीड़ित 60 से 70 मरीज हर महीने सामने आ रहे हैं.

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मंडला जिले में तेजी से पैर पसार रही सिकलसेल बीमारी

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Published : Jan 8, 2020, 12:04 PM IST

मंडला। जिले में अनुवांशिक बीमारी सिकलसेल तेजी से पैर पसार रही है. सिकलसेल से पीड़ित 60 से 70 मरीज जिले से हर महीने सामने आ रहे हैं, लेकिन खून की कमी से होने वाली इस बीमारी का इलाज जिले में नहीं हो पा रहा है. इससे हर सिकलसेल के मरीजों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

मंडला जिले में तेजी से पैर पसार रही सिकलसेल बीमारी

मंडला जिले में सिकलसेल एनीमिया के मरीजों की संख्या के आधार पर यदि बात करें तो यहां हर महीने 30 से 40 यूनिट ब्लड की जरूरत पड़ती है. हर हफ्ते करीब आधा दर्जन महिला पुरुष मरीज इन बीमारी के चलते एचबी लेवल कम होने के कारण जिला अस्पताल आते हैं.

मंडला जिले में तेजी से बढ़ते सिकलसेल के मरीज
मंडला में रहने वाली हेमलता यादव का पूरा परिवार सिकलसेल बीमारी से पीड़ित है. अपनी परेशानी सुनाते हुए उनकी आंखे भर आती है. हेमलता कहती है कि परिवार में चार सदस्य है सभी को सिकलसेल है. पति मजदूर है और आर्थिक हालात भी खराब हैं ऐसे में इलाज कराना मुश्किल हो रहा है तो शासन की तरफ से भी कोई मदद नहीं मिल रही. कुछ यही कहना है वीरेंद्र चंदेल का भी जिनका बेटा लक्ष्य भी इस बीमारी से पीड़ित है.

जिले की समाजसेवी हेमलता झरिया जो सिकलसेल के मरीजों को जागरूक करने का काम करती हैं. उनका कहना है कि जिले में ऐसा शायद ही कोई गांव ऐसा हो जहां इस बीमारी का कहर न हो. सिकल सेल की जद में हर गांव में कई लोग पीड़ित मिल जाते हैं. मंडला जिला अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ राकेश खरे का कहना है कि हर रोज जिला अस्पताल में तीन से चार मरीज इस बीमारी के इलाज के लिए आते हैं.

मामले में जब निवास विधानसभा सीट से विधायक डॉ अशोक मर्सकोले से बात की गई तो उनका कहना था कि सिकलसेल तेजी से जिले में बढ़ रहा है. यह बीमारी अब महामारी का रुप लेती जा रही है. उन्होंने कहा कि इस बीमारी से कुछ खास समाज के लोग ज्यादा पीड़ित हैं. लेकिन जिले में इसके आंकड़े न होना चिंता का विषय है. वह इस मामले में स्वास्थ्य विभाग से बात करेंगे.

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