मंडला। कहते हैं कि अगला विश्वयुद्ध पानी के लिए लड़ा जाएगा, इस बात में सच्चाई भी नजर आती है, मंडला जिले के ग्वारा गांव पहुंचकर. यहां बूंद-बूंद पानी के लिए संघर्ष करना ग्रामीणों की नियति बन चुकी है. कोई साइकिल से, तो कोई मोटरसाइकिल से, कोई बैलगाड़ी से तो किसी ने कर लिया देशी जुगाड़. कोई सिर पर या कोई कंधे पर चला जा रहा है, हर कोई जूझ रहा है उस समस्या से, जो ग्वारा गांव के लगभग 4 हजार लोगों के लिए अब आदत बन चुकी है. ग्रामीण बीते 5 सालों से पानी की समस्या से जूझ रहे हैं.
ग्वारा गांव में पानी की गंभीर समस्या से जूझ रहे लोग जब ईटीवी भारत की टीम पहुंची गांव
ग्वारा गांव में जब ईटीवी भारत की टीम पहुंची, तो लोगों का दर्द छलक पड़ा. महिला हो या पुरुष हर कोई चाह रहा था कि हम उनकी समस्या को सुनें और उनके हालत से शासन-प्रशासन को रू-ब-रू कराएं. सबने बताया कि बीते 5 सालों से किस तरह से वे पानी की कमी से जूझ रहे हैं.
टूटे पाइप से रिसते पानी को भरते लोग पानी के लिए जद्दोजहद
ग्वारा के ग्रामीण जितनी जद्दोजहद पानी के लिए करते हैं इतनी जद्दोजहद शायद ही कहीं होती हो. इस गांव में पानी की कीमत का वो आलम है कि पाइप लाइन से लीकेज होकर बूंद-बूंद टपकते हुए पानी को भी जैसे-तैसे बर्तन में भरा जाता है. यह काम दिनभर चलता रहता है. वहीं पानी की टंकी से नल खोलने वाले जहां वॉल्व लगे हुए हैं, उन चैंबर पर भी रिसाव से जो पानी स्टोर होता है, उसे भी ग्रामीण छोटे डिब्बों के सहारे भर लेते हैं.
पानी भरने के लिए अपनी बारी का इंतजार करते लोग भाईचारा बिगाड़ रहा पानी
ग्वारा के लोगों ने बताया कि आलम यह है कि पानी की किल्लत के चलते रोज ही आपस में लड़ाई होती रहती है. हर कोई पानी चाहता है, जिसके लिए डिब्बों को कतार में रखकर नंबर लगाया जाता है. ऐसे में कोई ज्यादा तो कोई कम डिब्बे-बर्तन को लेकर झगड़ा होना ही है और पानी के लिए धक्का-मुक्की, गाली गलौज से कई बार बात मारपीट तक पहुंच जाती है. इस तरह से पानी की कमी के चलते गांव का भाईचारा भी बिगड़ रहा है.
स्कूल के शौचालय में नहीं पानी, कैसे स्वच्छ रहे भारत
ग्वारा के एक ही कैम्पस में प्राथमिक माध्यमिक शालाएं संचालित हैं. जहां के तीनों स्कूल के छात्र-छात्राओं को पानी की कमी से जूझना पड़ता है. वहीं सबसे ज्यादा मुसीबत का सामना करना पड़ता है छात्राओं को, जिनके लिए टॉयलेट तो है लेकिन पानी ही नहीं. वहीं इसके चलते गंदगी होने की बात को यहां के प्रधान पाठक भी स्वीकारते हैं.
जरूरत के चलते हुआ नया देसी जुगाड़
गांव के ही राजकुमार जंघेला ने ने पानी की कमी को देखते हुए दूर से पानी लाने के लिए एक देसी जुगाड़ भी बना डाला, मोटरसाइकिल में दो एंगल लगाए और कुछ लोहे के सरिया को वेल्डिंग कराकर उसमें 200 लीटर का ड्रम रखा और ट्रेक्टर की ट्रॉली की शक्ल दे दी, जिसे मोटर साइकिल से अटैच कर पानी की ढुलाई की जा रही है.
पानी लाने के लिए जुगाड़ की गाड़ी क्यों है पानी की समस्या
इस गांव में नल जल योजना तो संचालित है. लेकिन यहां वाटर लेवल बहुत नीचे होने के सात ही ग्राम पंचायत ने कम पावर की मोटर लगाई, वहीं सरपंच ने भी अपनी मनचाही जगहों पर बिना सर्वे के बोर करवा दिया, इसीलिए पानी की यह समस्या बनी है. यहां के उप सरपंच लेखराम जंघेला और निवासी मोहम्मद नफीस खान के अनुसार ग्राम पंचायत की लापरवाही ही पानी की समस्या के लिए जिम्मेदार है.
रोज बैलगाड़ी से पानी गांव ले जाते हैं लोग क्या कहते हैं अधिकारी
गांव में पानी की व्यवस्था को लेकर कार्यपालन यंत्री के एस कुशरे का कहना है कि आवेदन उन्हें भी प्राप्त हुआ है, लेकिन शासन की योजना के तहत इसकी पहल ग्राम पंचायत को ही करनी होगी. 100 % नल के कनेक्शन के आधार पर जनभागीदारी समिति के द्वारा पैसे जुटाए जाएं और सहमति देकर विभाग को दी जाए. जिसका प्रोजेक्ट बना कर शासन को भेजा जाएगा, तभी इनकी समस्या का हल हो पाएगा.
बीते साल भी इस गांव के ग्रामीण पानी की समस्या के चलते खाली बर्तन लेकर बड़ी संख्या में कलेक्ट्रेट पहुंचे थे, इसके अलावा अनेकों बार जनसुनवाई में आवेदन भी दिए जा चुके हैं, लेकिन पानी की समस्या का हल ना हो पाना. कहीं ना कहीं सिस्टम की लापरवाही और जनप्रतिनिधियों की गंभीरता पर सवाल पैदा करता है.