मंडला। मंडला जिला मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर दूर ये डूंगरिया गांव है. जहां रावण की पूजा होती है. मान्यता है कि यह गांव रावण का है. दशहरे के दिन जहां पूरे देश रावण का दहन होता है. लेकिन यहां रावण की पूजा होती है. डूंगरिया के लोग रावण को अपना वंशज मानते हैं.
रावण को पूजते डुंगरिया गांव के लोग जी हां यह मंदिर महाराज रावण का और इसकी स्थापना की है अपने को प्रकृति पुत्र कहने वाले रावण के वंशजों ने. ग्रामीणों का कहना है कि हम 'कोया' वंश के हैं, जिसका मतलब होता है मूलनिवासी, प्रकृति से उत्पन्न हुए और पले बढ़े. उनका मानना है कि रावण ने भी प्रकृति में जन्म लिया था. इसलिए रावण उनके वशंज है.
लोग भले ही रावण को राक्षस का रुप और दशानन कहते हो. लेकिन डूंगरिया गांव के लोग रावण को एक अलग नजरिए से देखते हैं. गांव के निवासी हीरालाल पन्द्रो जो कि संरक्षक भी है उन्होंने बताया कि रावण महाराज महान गुणों से परिपूर्ण थे लेकिन समझने और समझाने के अंतर ने उन्हें दानव की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया. उन्होंने कहा कि रावण के कभी 10 सिर नहीं थे उनके 10 गुणों को लोगों ने अपनी कल्पना से उसे दशानन का रूप दे दिया. खास बात यह है कि ग्रामीण रावण द्वारा माता सीता के अपहरण की बात को भी नकारते हैं. वे कहते है कि रावण तो सीता को अपनी पुत्री मानते थे.
रावण को पूजते डुंगरिया गांव के लोग लोग भले ही दशहरे पर देशभर में रावण जलता हो. लेकिन डूंगरिया गांव में तो हर दिन रावण की पूजा होती है. यहां रावण के इस छोटे से मंदिर में पूरे गांव के लोग भक्ति भाव से रावण की पूजा करते हैं. भारत की विविधता का इससे अनूठा उदाहरण क्या होगा कि जिस के पुतले को विजयादशमी के दिन जब पूरे देश में आग के हवाले कर खुशियां मनाई जाती हैं, ठीक उसी दिन डूंगरिया गांव में रावण के इस मंदिर की स्थापना हुई थी. हर रविवार को यहां विशेष पूजा अर्चना और सुमरनी याने की भजनों का आयोजन होता है. पूरे आस्था, श्रद्धा और विश्वास के साथ कि रावण महाराज सबका कल्याण करेंगे.