मंडला।सांप मनुष्य के ऐसे दोस्त हैं, जिन्हें हमेशा से इंसान दुश्मन समझता आ रहा है, यही वजह है कि दोनों ही एक दूसरे से दूर रहना पसंद करते हैं. लेकिन विकास की चकाचौंध में हो रहे निर्माण के चलते इंसानों ने सांपों के रहने लायक जगह भी नहीं छोड़ी और लगातार उनके आसियानों पर अतिक्रमण होता चला गया, जिस कारण अब वो इंसानी बस्तियों में दिखाई देने लगे और कई बार कॉन्क्रीट के जंगलों की तरफ रुख कर रहे सांपों को सुरक्षित पकड़ कर जंगलों में छोड़ने की जगह उन्हें मारा जाने लगा, जिससे उनकी संख्या में भारी गिरावट आने लगी, जो कि आने वाले दिनों में इंसानों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है.
नागराज के आसियाने पर भी इंसानों ने किया कब्जा इंसानों ने नहीं छोड़ा ठिकाना
अमूमन सांप मनुष्यों के मित्र की तरह ही होते हैं, जो खेत में रहकर फसलों को खराब करने वाले दूसरे जीवों को खाकर किसान की मदद करते हैं. लेकिन लगातार बढ़ रहा रासायनों और कीटनाशकों का उपयोंग इनके लिए नुकसान दायक साबित हो रहा है, जिस कारण अब खेतों में कमतर ही सांप नजर आ रहे हैं. वहीं लगातार हो रहे निर्माण से सांपो के पास अब रहने को जगह नहीं रह गयी, जंगल से लेकर पहाड़ों तक में लोग सीमेन्ट के जंगल तैयार कर रहे हैं. ऐसे में सांप जाएं भी कहां. उनके बिल तो निर्माण की भेंट चढ़ गए.
जिम्मदार भी नहीं जागरूक
जानकारों के मुताबिक हर एक सांप जहरीला नहीं होता. लेकिन सांप नाम का डर कुछ ऐसा है कि उसका दिख जाना ही उसकी मौत की वजह बन जाता है. वन विभाग की तरफ से जनता को जागरूक करने की बात तो कही जाती है लेकिन सांप मारने वालों पर कानून होने के बाद भी कार्रवाई कभी नहीं होती, वहीं सांप दिखाई देने की सूचना के बाद वन विभाग की हीला हवाली भी कई बार सांप की जान के लिए घातक साबित हो जाती है.
सर्प मित्रों को नहीं कोई सरकारी सहयोग
मण्डला में रहने वाले पंकज कटारे ने अब तक करीब 300 से ज्यादा सांपो को रेस्क्यू कर सुरक्षित स्थानों तक छोड़ा है. पंकज बताते हैं कि मण्डला शहर में करीब दर्जन भर सर्प मित्र हैं जो कुछ पैसे लेकर या फिर मुफ्त ही अपनी सेवाएं लोगों को देते हैं, लकिन सरकार या प्रशासन की ओर से उनकी कोई मदद नहीं होती, न हीं वन विभाग ने उनके लिए कभी किसी तरह के सांप पकड़ने के उपकरण का बंदोबस्त किया, भले ही इलाके मे कई सांप की प्रजातियों को बचाने में उनका योगदान हो.
धार्मिक देव होने पर भी होता है बध
हिन्दू धर्म में सांपो को देवता का दर्जा मिला है, जिसके कारण इनकी पूजा की जाती है और नागपंचमी तो इनका खास दिन होता है. बाबजूद इसके सांपो को मारने के पहले एक बार भी इंसान के हाथ नहीं कांपते. जबकि मंडला इलाके में पाई जाने वाली सांपो की सैकड़ों प्रजातियों में से आधा दर्जन के करीब ही जहरीली है. दूसरी तरफ सांपो को काटने के बाद लोग अस्पताल की जगह झाड़फूंक पर ज्यादा भरोसा कर समय गंवाते है और फिर यही देरी इंसान की मौत का कारण बनता है, जिसकी कीमत चुकानी होती है फिर पूरी सांपो की प्रजाति को.
झाड़फूंक के स्थान पर मेडिकल को प्राथमिकता
चिकित्सा जगत में सांप के जहर का पूरा इलाज है, बसर्ते लोग बिना देरी किए बिना अस्पताल पहुंचा जाए. मालूम हो की सरकारी निर्देशों पर हर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक में भी एंटीबेनम रखना अनिवार्य है जो की लोगों को निःशुल्क उपलब्ध भी है. ऐसे में यदी किसी को सांप काट भी ले तो सबसे पहले उस स्थान पर चीरा लगा कर खून को बहने देना चाहिए और कुछ देर बाद कोई कपड़ा बांध कर रक्त का संचार रोकने का प्रयास किया जाना चाहिए और बिना हिलाए डुलाए जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाया जाना चाहिए. हमें इस बाकत का ध्यान रखना हो गा की झाड़ फूंक से कतई जहर नहीं निकलता.
जहरीले सांप के जहर दो तरह से इंसान की मौत के कारण बनते हैं
- कुछ सांपो का जहर खून में मिलते ही उसका थक्का बना देता है और रक्त संचार रुक जाता है, जिससे कि नाक मुंह या मसूड़ों से जमा हुआ खून प्रेशर या दबाब से बाहर आता है और थक्के के चलते इंसान की मौत हो जाती है.
- जहर तंत्रिका पर अटैक करता है और इंसान इसके प्रभाव से गहरी निद्रा,या कोमा में चला जाता है जिसके बाद उसकी मौत होती है. लेकिन इनका यदी बिना समय गंवाए उपचार किया जाए तो जान बचाना कोई मुश्किल भी नहीं.
वर्षा काल मे रहें सावधान
बात मण्डला जिले की करें तो यहां साल भर में करीब आधा सैकड़ा सर्पदंश के मामले सामने आते हैं, जिनमे से आधे से ज्यादा मानसून सीजन में ही सामने आते हैं. इस का कारण होता है सांपो के बिलों में पानी भर जाना. वैसे सांप खुद अपना बिल नहीं बनाते वे दूसरे जीवों के बनाए बिलों या फिर दरारों और पेड़ की खोखट में रहना पसंद करते हैं और जैसे ही इनके आशियाने पर पानी घुसा वे अपनी रहने के लिए स्थान ढूंढने के लिए निकल जाते हैं. ऐसे में लोगों को बारिश के मौसम खास सावधानी बरतनी चाहिए.
सांपो की एक तरफ तो पूजा की जाती है वहीं दूसरी तरफ उन्हें देखते ही मार भी दिया जाता है, जबकि सांपो को जब तक न छेड़ा जाए ये किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते. बलकी प्रकृति को बैलेंस कर अन्नदाताओं की सबसे बड़ी मदद करते हैं. ऐसे जरूरत है सिर्फ सावधनियां रखने का और घट रही सांपो के प्रजाति को बचाने की वरना ऐसा समय दूर नहीं जब चूहों और दूसरे तरह के जीवों से फसलों की पैदावार करना ही मुश्किल हो जाएगा.