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आदिवासी जिले से निकलकर विदेशों में फहराया देश का परचम, इस बेटी पर नाज करते हैं जिलेवासी

मिनी की शुरुआत हुई हॉकी और जूड़ो से हुई क्योंकि उनके पिता मदन सिंह हॉकी के एनएसएनआईएससाई के कोच थे. मिनी ने पिता के साथ ही अपने खेल कैरियर की शुरुआत की, जिसके कुछ सालों के बाद ही उन्होंने पैदल चाल के लिए मेहनत करना चालू कर दिया और बिना किसी सरकारी मदद के मिनी की मेहनत वो रंग लाई कि मेडल्स की झड़ी लग गई.

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Published : Mar 5, 2019, 5:08 AM IST

mini singh

मण्डला। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मंडला का नाम रौशन करने वाली मिनी सिंह पर सबको नाज है. मंडला की इस बेटी ने तीन मेडल अपने नाम कर जिले के साथ ही देश का गौरव भी बढ़ाया है. इस बेटी के पास आज इतने मेडल और प्रमाणपत्र हैं कि बस आप गिनते ही रह जाएंगे. कोई भी मैराथन, पैदल चाल हो या फिर रिले रेस की नेशनल या फिर इंटरनेशनल स्पर्धा मिनी सिंह के बिना अधूरी है.

मिनी सिंह आज किसी भी परिचय की मोहताज नहीं हैं. उन्होने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इतने मेडल अपने नाम किये हैं जो किसी भी खिलाड़ी का सपना तो हो सकता है लेकिन जिन्हें हासिल करना हर एक के बस की बात नहीं. वॉकिंग, रिले रेस या फिर मैराथन की कोई भी प्रतियोगिता मिनी सिंह से अछूती नहीं है.


मिनी की शुरुआत हुई हॉकी और जूड़ो से हुई क्योंकि उनके पिता मदन सिंह हॉकी के एनएसएनआईएससाई के कोच थे. मिनी ने पिता के साथ ही अपने खेल कैरियर की शुरुआत की, जिसके कुछ सालों के बाद ही उन्होंने पैदल चाल के लिए मेहनत करना चालू कर दिया और बिना किसी सरकारी मदद के मिनी की मेहनत वो रंग लाई कि मेडल्स की झड़ी लग गई.

स्टोरी पैकेज

मिनी ने मलेशिया में सितम्बर 2018 में हुए 64 देशों के एशिया पैसिफिक स्पोर्ट्स ईवेंट में 5 हज़ार रन एन्ड वॉक में गोल्ड मेडल, 15 सौ मीटर में सिल्वर मैडल और फोर इन टू फोर ब्रॉन्ज मैडल जीत कर इतिहास रच दिया. यह सफर अभी थमा नहीं है बीते सप्ताह इंडिया और बांग्लादेश के बीच दिल्ली में आयोजित अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में भी मिनी ने दूसरा और तीसरा स्थान हासिल किया.


मिनी के गौरव की कहानी यह भी है कि उन्हें बीते विधानसभा चुनावों में आइकॉन बनाया गया था. इससे पहले वे छत्तीसगढ़ में आयोजित मैराथन, विदिशा में आयोजित नेशनल प्रतियोगिता में भाग ले चुकीं है और करीब आधा सैकड़ा मैडल और प्रमाणपत्र अपने नाम कर चुकी हैं. मिनी सिंह ने जो भी मुकाम पाया है वह अपने दम पर पाया है उसे किसी तरह की कोई सरकारी सहायता कभी नहीं मिली कभी कभी आर्थिक परेशानियों ने उसका हौसला तोड़ा भी लेकिन मिली सिंह और परिवार ने कभी उसे हार नहीं मानने दिया.


आज मिनी अपनी बेटी को भी खेल के क्षेत्र में ही आगे बढाने के प्रयास में है और उसे प्रशिक्षण खुद ही दे रही हैं. वहीं मिनी देश की महिलाओं को संदेश देते हुए कहती हैं कि जब वो अपनी मेहनत के बूते आदिवासी बहुल ऐसा जिला जो काफी पिछड़ा हुआ है वहां से निकल कर अपनी मेहनत के दम पर विदेशी धरती पर अपनी पहचान बना सकती है तो बाकी की महिलाएं क्यों नहीं. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर इस महिला के द्वारा पाए मुकाम से हर कोई सीख लेकर अपने लिए नयामुकाम चुन सकता है.

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