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कुश्ती के इस पहलवान के लिए प्रशासन ने नहीं दिखाई फुर्ती, पहचान के लिए कर रहा हैं 'दंगल' - मंदला न्यूज

मंडला जिले में कुश्ती के कई खिलाड़ी हैं, लेकिन आलम ये है कि यहां पर एक भी मैदान मौजूद नहीं है. इसके बावजूद भी खिलाड़ी शिवम सिंधिया अपने दम पर तीन यूनिवर्सिटी लेवल की नेशनल प्रतियोगिताओं का हिस्सा रहे हैं. पढ़िए पूरी खबर....

Wrestling players losing their identity
पहचान खोता कुश्ती का सितारा

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Published : Oct 29, 2020, 8:41 PM IST

मंडला। देश को गोल्ड मेडल तो चाहिए, लेकिन खिलाड़ियों को सुविधाएं दिलाने के नाम पर जिम्मेदार फिसड्डी ही साबित होते हैं. फिर भी अपनी काबलियत के बल पर खिलाड़ी कुछ करें भी तो गुमनामी उनके साथ ही चलती है. कुछ ऐसे ही हालात जिले में देखने को मिले, जहां कुश्ती के खिलाड़ी तो हैं, लेकिन एक मैदान भी उपलब्ध नहीं है.

पहचान खोता कुश्ती का सितारा

पारंपरिक खेल रहा है कुश्ती

जिले का पारंपरिक खेल कुश्ती रहा है, जिसे व्यायाम शालाओं और अखाड़ों में खेला जाता है. बावजूद इसके प्रशासनिक उदासीनता के चलते कुश्ती कभी आगे नहीं बढ़ पाई, जो पहलवान चंद तमगे और कुछ प्रतियोगिताओं तक सिमट कर रह गया है, लेकिन शिवम एक ऐसा खिलाड़ी है, जिसने हार नहीं मानी और अपने दम पर तीन यूनिवर्सिटी लेवल की नेशनल स्पर्धाओं का हिस्सा बने. अब वह दूसरों को पहलवानी के दांव-पेंच सिखा रहे हैं.

अपनी मेहनत से पाया मुकाम

बस स्टैंड पर स्थित व्यायाम शाला में कुश्ती का अभ्यास करने वाले 23 साल के शिवम सिंधिया को जब लगा कि अगर रेसलिंग में कुछ करना है, तो उसे मण्डला से बाहर ले जाना होगा. इसके लिए शिवम ने जबलपुर जाकर कोचिंग की. फिर यूनिवर्सिटी की तरफ से 2017-18 में रोहतक, 2018-19 में बिभानी और 2019-20 में हिसार की इंटर यूनिवर्सिटी प्रतियोगिताओं का हिस्सा बने. इसके बाद उन्हें एहसास हुआ कि वह कुश्ती में बहुत कुछ कर सकते हैं. इसके लिए वह जबलपुर में ही रहकर प्रेक्टिस करने लगे और खुद को बड़ी प्रतियोगिता के लिए तराशते रहे हैं.

मण्डला में दे रहे प्रशिक्षण

खिलाड़ी शिवम मण्डला के रहने वाले हैं, जो मार्च माह से करीब 20 लोगों को पहलवानी के गुर सिखा रहे हैं. उनसे ट्रेनिंग लेने वाले भी इस बात पर गुरुर करते हैं कि उनका उस्ताद एक नेशनल स्तर का खिलाड़ी है, जो नई तकनीक और कुश्ती के हर कायदे को बड़ी बारीकी से सिखाता है.

नहीं है एक भी मैदान, कभी नहीं मिली सरकारी मदद

शिवम सिंधिया का कहना है कि वे जिले के पहलवानों को आगे बढ़ाने की कोशिश तो कर रहे हैं, लेकिन यहां ना तो कुश्ती के लिए मैदान है और ना ही किसी तरह की कोई सुविधा. सरकारी उदासीनता हमेशा से ही इस खेल पर हावी रही है. वहीं शासन-प्रशासन ने कभी इस खेल को बढ़ावा देने के लिए कोई पहल की शुरूआत नहीं की है. शिवम कहते हैं कि उन्होंने जो भी पाया खुद के बूते पर ही. 50 से ज्यादा शील्ड, तमगे और प्रमाणपत्र तो मिल चुके हैं, लेकिन ऐसी कोई मदद नहीं मिली, जिससे राष्ट्रीय प्रतियोगिता का हिस्सा बना जा सकें.

कोच बनने की है ख्वाहिश

खिलाड़ी शिवम खुद दिन-रात व्यायाम शाला जाकर पसीना बहाते हैं, क्योंकि उनका लक्ष्य कुश्ती का कोच बनने से पहले मंडला को कोई ऐसा पदक दिलाना है, जिससे इस जिले को राष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान मिल सकें. घर के सभी लोगों से भी उन्हें भरपूर सहयोग मिल रहा है.

क्या कहते हैं खेल अधिकारी

जिला खेल अधिकारी रविन्द्र ठाकुर का कहना है कि जिले में मैदान बनाने के लिए कोई स्थान नहीं है. यही वजह है कि खिलाड़ियों को बिना मैदान जरूरी सामान या सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराई जा सकती है, मगर कलेक्टर से चर्चा कर मैदान की बात की जाएगी. साथ ही कुश्ती खिलाड़ियों को भी प्रोत्साहित किया जाएगा.यह विडम्बना ही कही जा सकती है कि जिले में खिलाड़ी तो हैं, लेकिन खेल के मैदान और सुविधाओं का अभाव हमेशा बना रहा है. शिवम तो अपने दम पर मेहनत कर रहा है. अगर इसे सरकारी मदद और सुविधाएं मिल जाएं, तो वह एक दिन न केवल मण्डला बल्कि देश का भी नाम रोशन कर सकता है, जो आज तीन नेशनल यूनिवर्सिटी लेवल की प्रतियोगिता का हिस्सा बनने के बाद भी गुमनाम है.

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