मंडला।मध्यप्रदेश के मंडला जिले में रहने वाली प्रिया उन बच्चों के लिए किसी मसीहा से कम नहीं है. जिन्हें समाज स्पेशल चाइल्ड कहता है. क्योंकि भगवान ने इनमें कोई ऐसी कमी छोड़ा रखी है जो आम लोगों से इन्हें जुदा करती है, लेकिन ऐसे बच्चों को जीवन के संघर्ष के लिए तैयार करने की कोशिश में प्रिया लगन से जुटी हैं.
मूक-बधिर बच्चों के लिए मसीहा बनीं महिला शिक्षक दरअसल प्रिया पमनानी जो बच्चा बोल नहीं पाता है उनके लिए उनकी आवाज बन जाती हैं. जो सुन नहीं पाता है उन्हें इशारों में वे सब कुछ समझा देती हैं. इसके साथ ही जिन बच्चों का उम्र के लिहाज से आईक्यू लेवल कम है ये उनके ही बराबर बनकर उन्हें अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का जरिया बन जाती हैं और ये सब करके उन्हें मिलता है वो सुकून जिसके लिए कितनी भी दौलत खर्च कर दो लेकिन उसे पाना मुश्किल है.
मसीहा से कम नहीं ये महिला शिक्षक प्रिया पमनानी का कहना है कि बच्चों में यदि कोई कमी रह गई है तो उसमें कोई ऐसी प्रतिभा जरूर होगी. जो उन्हें अन्य बच्चों के मुकाबले समाज में एक अलग स्थान दिला सकती है. बस जरूरत है उसकी प्रतिभा को पहचानने के साथ ही उसकी भावना को समझने की माता पिता को प्रिया पमनानी की सलाह है कि ऐसे बच्चों में यदी थोड़ा ध्यान दिया जाए तो वे भी अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकते हैं और सामान्य बच्चों की तरह ही नाम कमा सकते हैं लेकिन ऐसे बच्चों को परिवार के साथ ही समाज बोझ समझ लेता है.
मूक-बधिर बच्चों को देती हैं शिक्षा प्रिया पमनानी के स्कूल में उनके अलावा आधा दर्जन और टीचर हैं, जो बच्चों को किताबों के कोर्स तो कराती ही हैं. इसके साथ ही जिन बच्चों को नृत्य में रुचि है, उन्हें डांस सिखाने के साथ ही कला के क्षेत्र में भी आगे बढ़ाने का काम करती हैं. इनके स्कूल के बच्चे दीवाली के समय सुंदर सुंदर डिजाइन वाले दिये जरूरी कागज के थैले, सजावट की झालरें, घर में लटकाने वाले झूमर जैसे दर्जनों सामान बनाना सिखाती भी हैं और विभिन्न मौकों पर स्टॉल लगाकर इन्हें बेच कर जो पैसे आते हैं उनसे गरीब छात्रों के लिए मिठाई,त्योहार के लिए नए कपड़े और सामान खरीदकर देती हैं इनके स्कूल के बच्चे जिला स्तरीय मंच पर बहुत से पुरस्कार भी पा चुके हैं.
किसी ने सही कहा है कि बच्चों में भगवान बसते हैं, क्योंकि इनमें कोई छल कपट या बदले जैसी भावनाएं कभी नहीं देखी जाती है और जब ये बच्चे किसी भी कमी के चलते स्पेशल चाइल्ड कहलाने लगे तो समाज के साथ ही परिवार उन्हें बोझ न समझे कुछ इसी तरह की सोच लेकर इन बच्चों में स्वाभिमान के साथ जीने की कला सिखा रहीं है. प्रिया उदाहरण हैं उस समाज के लिए जो स्पेशल चाइल्ड को समाज पर बोझ समझता है.