मंडला। अमूमन महिलाओं के हाथ आपने चूल्हे-चौके की ही जिम्मेदारी देखी होगी. अधिकतर लोगों का मानना है कि महिलाएं घर के कामों के लिए ही हैं, लेकिन आज के वक्त में महिलाएं हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवा रही हैं.
मंडला में भी एक ऐसी कलाकार हैं, जिन्होंने सामाजिक मान्यताओं और तय लकीरों से आगे बढ़कर कला के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई है. उनका नाम है शाकरा खान. उनकी बनाई स्केचेज और पेंटिंग्स की तारीफ भूतपूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी पत्र लिखकर कर चुके हैं. लेकिन शाकरा की कला को आज भी वह मुकाम नहीं मिल पाया है, जिसकी वो सच्ची हकदार हैं. प्रदेश में उनकी कला की वो कीमत नहीं, जो उन्हें पहचान के साथ ही दो जून की रोटी भी दे सके.
शाकरा के पास दो कमरे का जर्जर घर है, जिसमें वे अपने पिता मोहम्मद याशीन खान के साथ रहती हैं. लेकिन उनकी गुरबत भी उनके मजबूत इरादों को नहीं तोड़ सकी. उन्होंने अपनी साधाना से ऐसे रंग उकेरे हैं कि जिसने देखा वो बस देखता ही रह गया. शाकरा ने रंगों की दुनिया की शुरुआत भी अचानक की. शाकरा के पिता भी पेंटिंग करते हैं. उन्हें देखकर ही शाकरा ने भी पेंटिंग करना, स्केचेज बनाना शुरू किया. अपने स्कूल के प्रोजेक्ट में वे ऐसे रंग भरती थी कि शिक्षकों को लगता था कि ये शाकरा ने नहीं बनाया और स्कूल में उनसे फिर वही प्रोजेक्ट बनवाए जाते थे.