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ईटीवी भारत ने खोज निकाली सदियों पुरानी 'गोल्डन बुक', अब दीदार का इंतजार - swarnamsi

कला अभिव्यक्ति का वो माध्यम है, जिसके जरिये खींची गयी लकीरें और उनमें भरे गये रंग हजारों शब्दों पर भारी पड़ते हैं. हिंदुस्तान कलाओं का वो गुलदस्ता है. जिसमें लगे हर फूल का अपना अलग रुतबा और महत्व है. जिसे सहेजने का काम पुरातत्व विभाग बखूबी कर रहा है. खासकर आदिवासी संस्कृति आज भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है. ऐसी ही मंडला की एक धरोहर स्वर्णमसी को ईटीवी भारत ने खोज निकाला है, जिस पर दर्ज अक्षर सोने की स्याही से उकेरे गये हैं.

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'गोल्डन बुक स्वर्णमसि

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Published : Dec 23, 2019, 11:16 PM IST

मंडला। गोंडी लोककला की तस्दीक करने वाली 'गोल्डन बुक' स्वर्णमसि को ईटीवी भारत ने खोज निकाला है. जिस पर दर्ज अक्षर सोने की स्याही से उकेरे गए हैं. सदियों पुरानी ये बेशकीमती धरोहर प्रशासनिक लापरवाही के चलते मिट्टी में मिलती जा रही है. स्वर्णमसि को पहले गोंडी लोककला संग्रहालय में सहेज कर रखा गया था, तभी एक दिन अचानक वहां से ये धरोहर गायब हो गई. अधिकारियों को लगा की स्वर्णमसि की मूल प्रति चोरी हो गई है, लेकिन ईटीवी भारत ने इसे खोजने की ठान ली और इसे खोजते हुए ईटीवी भारत की टीम गोंडी पब्लिक ट्रस्ट के ट्रस्टी और इतिहासकार गिरजा शंकर अग्रवाल के घर पहुंची, जहां स्वर्णमसि की मूल प्रति रखी हुई मिली.

ईटीवी भारत ने खोज निकाली सदियों पुरानी स्वर्णमसि किताब

हैरानी की बात ये है कि पुरातत्व विभाग को इसकी जानकारी तक नहीं है कि किताब है कहां. विभाग की अधिकारी हेमन्तिका शुक्ला का कहना है कि ट्रस्ट के अध्यक्ष कलेक्टर हैं. अगर किताब ट्रस्ट में नहीं है तो वे कलेक्टर से इस मामले में हस्तक्षेप की मांग करेंगी.

गोंडी ट्रस्ट समिति के सदस्य चंद्रेश खरे ने कहा कि कुछ समय पहले स्वर्णमसि को गोंडी लोककला संग्राहलय में देखा गया था. उसके बाद से उसका पता नहीं. उन्होंने कहा कि ये किताब किसी की निजी संपत्ति नहीं है. उन्होंने कलेक्टर से मांग की है कि स्वर्णमसि को वापस म्यूजियम में रखा जाए.

गिरिजा शंकर ने स्वर्णमसि के बारे में बताया कि इस किताब में 400 पेज हैं. जिसमें से 18 पेजों पर सोने की स्याही से लिखा गया है. किताब में लेखक का कोई जिक्र नहीं मिलता है. इस किताब में संस्कृत के श्लोक लिखे हुए हैं. जिसकी मूल प्रति उनके पास सुरक्षित है. अगर किसी को इस किताब को देखना है तो गोंडी लोककला संग्रहालय के माध्यम से देख सकता है. हालांकि, उन्होंने पुरात्व विभाग को किताब सौंपने से मना कर दिया है.

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