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लोगों के डर की वजह से कम हो रही सांपों की संख्या, सपेरों की रोजी-रोटी पर संकट

मंडला में कुछ लोग और जातियां ऐसी हैं जो सांपों को पाल कर अपनी रोजी-रोटी चलाते हैं. वहीं लोग डर वजह से इन्हें मार भी देते हैं. जिससे इन सांपों की संख्या कम होती जा रही है.

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Published : Oct 25, 2020, 2:05 PM IST

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सपेरों की रोजी-रोटी पर संकट

मंडला। हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार ये पृथ्वी शेषनाग के फन पर टिकी हुई है और जब वो करवट बदलते हैं तो भूकम्प आता है. इस बात में भले ही सच्चाई न हो, लेकिन सांप को देखते ही लोगों की रूह कांप जाती है और वो इसे मार कर ही दम लेते हैं, लेकिन ये सांप जितने भी खतरनाक क्यों न हों, तब तक किसी पर हमला नहीं करते जब तक इन्हें छेड़ा न जाए. इसके अलावा ये पर्यावरण और इंशानों के सबसे बड़े मित्र भी हैं, लेकिन इनकी संख्या दिनों दिन कम होती जा रही है

सपेरों की रोजी-रोटी पर संकट

बहुत से परिवारों को पालते हैं सांप

सांपों को लेकर धार्मिक आस्था भी है और नागपंचमी के दिन तो इनकी देवता की तरह पूजा भी की जाता है. यही वजह है कि सपेरों और कुछ खास जाति के लोगों के लिए ये रोजी-रोटी चलाने के साधन भी हैं, ये लोग इन्हें आज भी टिपारी में रख कर जगह-जगह जाते हैं, लोगों को इनके दर्शन कराते हैं या फिर बीन बजा कर इनके करतब दिखाते है. उनसे मिले पैसों से परिवार का लालन पालन करते हैं, जो सांपों की कम होती संख्या के चलते अब गैर कानूनी है, लेकिन अब भी इन्हें देखा जा सकता है.

पर्यावरण का संतुलन बनाने में सहायक हैं सांप

सोचिए जरा यदी सांप न हो तो इस पृथ्वी पर चूहे, मेंढ़क, गिलहरी या ऐसे छोटे जीवों की संख्या कितनी बढ़ जाएगी, जिन्हें खाकर ये प्रकृति और जीवों के आहार चक्र को नियंत्रित करते हैं. नहीं तो जमीन पर इन जीवों की भरमार हो जाएगी और पर्यावरण का संतुलन पूरी तरह से गड़बड़ा जाएगा.

किसानों के मित्र हैं सांप

खेतों पर लगाई गई फसल पर चूहों और छोटे जीवों का आक्रमण स्वाभाविक है, लेकिन इन जीवों से होने वाले नुकसान को बचाने में सांप सहायक होते हैं. सांप इन्हें खाते हैं और इनकी संख्या बढ़ने नहीं देते. जिससे कि किसानों की उगाई फसल खेतों पर दूसरे जीवों से बची रहती है.

लोगों का डर बनता है इनकी मौत का कारण

सांपों के विशेषज्ञों की मानें तो हर एक सांप जहरीला नहीं होता. बमुश्किल 4 प्रजाति ही अत्यंत जहरीली होती हैं, लेकिन सांपों को लेकर इंशानों के मन में बैठा डर इनकी मौत का कारण बनता है और देखते ही लोग इन पर टूट पड़ते हैं.

क्या हो व्यवस्थाएं

सांप पकड़ने या पालने वाले चोरी छिपे इनके जहर को निकालते हैं और विष हीन सांप के करतब दिखाते हैं. ऐसे लोगों को सांपों को पकड़ने की ट्रेंनिग दी जाए, उनके द्वारा निकाले गए जहर को सही तरीके से खरीदा जाए जिससे कि एंटी स्नैक वेनम का उत्पादन और उपलब्धता बढ़ाई जा सके. साथ ही सांपों की लगातार घट रही आबादी को भी रोका जा सके. इसके अलावा ऐसे वालेंटियर भी हैं जो खुद की जान को जोखिम में डालकर कहीं भी निकले सांपों को पकड़ कर जंगल या सुनसान जगहों पर छोड़ने का काम करते हैं, इन्हें प्रशिक्षित किए जाने के साथ ही सांप पकड़ने के इक्यूपमेंट भी दिए जाने चाहिए और पारिश्रमिक भी. जिससे की सांपों को मारने की बजाय लोग इन्हें सुरक्षित पकड़वाने को लेकर जागरूक हो सकें.

क्या कहते हैं सर्पदंश के आंकड़े

मंडला जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में बारिश के समय सांप काटने की घटनाएं ज्यादा सामने आती हैं. जिसकी वजह है इनके बिलों में घुसने वाला पानी और ग्रामीणों के असुरक्षित कच्चे मकान. जहां ये आसानी से चले जाते हैं और बिना बिजली वाले घरों में छुप जाते हैं और फिर कुछ इंशानि हलचल के बाद लोगों पर हमला कर देते हैं, लोगों की जान जाने की वजह सबसे ज्यादा दहशत ही होती है.
बीते जनवरी से कुल 69 लोग सर्पदंश के शिकार हुए, जिनमें 58 ग्रामीण क्षेत्रों में तो 11 शहरी क्षेत्र में. स्वास्थ्य विभाग की मानें तो सभी को बचा लिया गया. वहीं जिले में 10 स्थानों पर इनके इलाज की सुविधा है और पर्याप्त मात्रा में एंटी स्नैक वेनम भी, लेकिन सर्प विशेषज्ञ पंकज कटारे का कहना है कि जागरूकता की कमी के चलते बड़ी संख्या में लोग उपचार के लिए जाते ही नहीं और मौत का सही आंकड़ा सामने भी नहीं आ पाता.

लॉकडाउन ने ऐसे लोगों पर विपरीत प्रभाव डाला है जो सांपों को पकड़ कर रोजी रोटी कमाते थे और परिवार पालते थे, लेकिन जागरूकता की कमी, अंधविश्वास और अशिक्षा जहां सांपों की घटती आबादी के लिए जिम्मेदार है. वहीं इंशानों की मौत का कारण भी. जरूरत है सांपों को पकड़ने के लिए वॉलेंटियर तैयार किए जाएं, साथ ही मंडला जिले को स्नैक सेन्चुरी भी बनाने पर विचार किया जाए, क्योंकि यहां सांपों की दुर्लभ प्रजाति की उपलब्धता के साथ ही उनके लिए आर्दश वातावरण भी है.

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