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मंडला: कोरोना के चलते फीकी पड़ी ग्रेनाइट की चमक, प्लांट संचालक सरकार से लगा रहे मदद की गुहार

मंडला जिले में दुनिया के सबसे फाइन क्लास की ग्रेनाइट के फिनिशिंग का काम किया जाता है. जिसकी चमक देश-विदेश में मशहूर है, लेकिन कोरोना वायारस के चलते ट्रांसपोर्ट की सुविधा नहीं मिलने से कोरोड़ों का माल प्लांट में जाम पड़ा है. ऐसे में प्लांट संचालकों ने सरकार से मदद की गुहार लगाई है.

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ग्रेनाइट कंपनी

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Published : Jul 22, 2020, 2:45 PM IST

मंडला।जिले में दुनिया का सबसे फाइन क्लास ग्रेनाइट फिनिशिंग का काम होता है. जिसकी चमक से विदेशी भी प्रभावित होते हैं, लेकिन कोरोना संकट के चलते ट्रांसपोर्ट की सुविधा नहीं मिल पाने से करोड़ों का माल प्लांट में ही जाम पड़ा है. जबकि फिनिशिंग का काम लगातार चल रहा है और खर्च है कि कम होने का नाम नहीं ले रहा, ऐसे में लोगों को रोजगार देने वाले इस उद्योग को अब सरकारी मदद की दरकार है.

जाम हुआ माल

मंडला जिले के लिए कुछ करने की चाह और जिले को रोजगार मुहैया कराने की सोच के चलते मृदुला काल्पिवार ने ग्रेनाइट पत्थर के फिनिशिंग का उद्योग करीब 8 करोड़ रुपए की लागत से शुरू किया. पहले तो ग्रेनाइट के ब्लॉक, राजस्थान में रिफाइन करने के लिए भेजे जाते थे, लेकिन बाद में जिले के प्लांट में ही दुनिया के सबसे अच्छे क्वालिटी वाले पत्थर को तैयार किया जाने लगा. इस ग्रेनाइट ने देश के साथ ही विदेशों में भी खूब पहचान बनाई है, लेकिन मार्च से कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन के बाद से आने वाली मुसीबतों का जो सिलसिला शुरू हुआ, उससे आज भी मृदुला और किशोर काल्पिवार जूझ रहे हैं.

अत्याधुनिक मशीनें

बहुत खास है आधुनिक मशीनों वाला ये प्लांट

मंडला के इस कारखाने में सीधी से आने वाले बड़े-बड़े पत्थरों के ब्लॉक को आधुनिक विदेशी मशीनों से काटा जाता है, फिर इसकी फिनिशिंग की जाती है. जिसके बाद देश के बाहर भी ग्रेनाइट के शौकीन और व्यापारी इसे लेने को तैयार रहते हैं. इस कारखाने में जो अत्याधुनिक मशीनें हैं, वो हमारे देश के कुछ ही राज्यों में हैं, जिनकी संख्या उंगलियों में गिनी जा सकती हैं. इन ऑटोमेटिक मशीनों के ऑपरेटर भी दूसरे प्रदेश के ऐसे एक्सपर्ट हैं, जिन्हें ग्रेनाइट को तराशने में महारत हासिल है.

ग्रेनाइट कंटिंग मशीन

जिले को रोजगार देना चाहती हैं मृदुला

मृदुला का कहना है कि, जिले से बड़ी संख्या में लोग दूसरे प्रदेशों के लिए पलायन करते हैं, जो लॉकडाउन के बाद वापस लौटे हैं. इस पलायन को रोकने के लिए जिले में ही ऐसे उद्योग शुरू किए जाने की जरूरत है. मृदुला चाहती हैं कि, सरकार जिले के उद्यमियों की मदद करें और ऐसी सुविधाएं उपलब्ध कराए, कि जिले में ही उद्योगों की शुरुआत हो, लेकिन जहां बिजली के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता हो, ऐसे में किसी भी उद्योग को चला पाना बहुत मुश्किल है. वहीं बार-बार बिजली की आवाजाही से कुछ घंटों में ही लाखों का नुकसान हो जाता है.

कोरोना ने बढ़ाई मुश्किलें

फीकी पड़ी ग्रेनाइट की चमक

मृदुला ने बताया कि, लॉकडाउन के चलते महज 40 प्रतिशत वर्कर ही उनके पास रुक पाए हैं और बाकी लोग अपने घर चले गए हैं. ऐसे में कम वर्कर के कारण ब्लॉक की लोडिंग से लेकर कटिंग पॉइंट तक पहुंचना और हर एक परत को अलग-अलग करने में समय और बिजली की बर्बादी हो रही है. वहीं लोग नहीं होने पर टूट फुट की संभावनाएं भी बहुत ज्यादा बढ़ गई हैं, जो अलग से नुकसानदेह है. फिनिशिंग और पॉलिशिंग के भी लिए जितने एक्सपर्ट चाहिए, वे नहीं हैं, ऐसे में मशीनों में आने वाला खर्च तो उतना ही है, लेकिन आऊटपुट पहले के मुकाबले आधा रह गया है.

बिजली बिल बना मुसीबत

लॉकडाउन के समय करीब तीन माह पूरा प्लांट बंद रहा, लेकिन बिजली का एवरेज बिल करीब 5 लाख रुपए आया. जिसे नहीं चुकाते तो 33 केवी की बिजली, विभाग के द्वारा काट दी जाती. वहीं बार-बार लाइट बंद हो जाने जैसी समस्याओं से हमेशा जूझना पड़ रहा है, जो अब तक बरकरार है. हर रोज करीब 1 से 2 घंटे बिजली का नहीं रहना, उन्हें हर दिन नुकसान पहुंचाता है. उद्यमी चाहते हैं की, लॉकडाउन के घाटे से उबरने के लिए बिजली की आपूर्ति की तरफ गम्भीरता से विभाग ध्यान दें, जिससे कुछ भरपाई हो सके.

ट्रांसपोर्ट बड़ी समस्या

सीधी जिले में काल्पिवार दम्पति ने लीज पर खदान ली है और ग्रेनाइट अनफिनिश ब्लॉक यहां से मंडला भेजे जाते हैं. इन खदानों पर भी एक्सपर्ट लेबर की कमी है. पूरी तरह से ट्रांसपोर्ट अभी भी शुरू नहीं हुआ है. ऐसे में बड़े पत्थरों को मंडला लाने में परेशानी हो रही है. दूसरी तरफ ट्रांसपोर्ट के चलते तैयार ग्रेनाइट को खरीदने वालों की संख्या में भी कमी आई है. कंपनी में मटेरियल तो तैयार हो रहा है, लेकिन माल लगातार जाम होता जा रहा है. ऐसे में बीते दो महीने में करोड़ों का माल जाम हो चुका है, जबकि प्रोडक्शन करना उनकी मजबूरी हैं, क्योंकि बिजली बिल से लेकर लेबर खर्च तो देना ही होगा.

सरकार से मदद की दरकार

प्लांट के संचालक काल्पिवार दंपत्ति का कहना है कि, बाहर से लौटे हुए लोगों को वे जिले में ही रोजगार तो देना चाहते हैं और बड़े कारखाने भी लगाना चाहते हैं, लेकिन सरकारी मदद के अभाव में ये संभव नहीं हो पाता. बिजली की कटौती और लो वोल्टेज, लोन लेने के साथ ही टैक्स भरने की मुसीबत और सरकार से कोई मदद नहीं मिल पाने के चलते उद्योग लगाना काफी मुश्किल हो गया है. इसके लिए नियमों को शिथिल किया जाना चाहिए और छोटे उद्योगों को सहयोग दिया जाना चाहिए. जिससे पलायन जैसी समस्याओं और बेरोजगारी का हल निकला जा सकेगा.

हैंडीक्राफ्ट में बड़ी संभवना

उद्योग विहीन मंडला जिले में ग्रेनाइट के इस उद्योग से जिले के लोगों को बड़ी संख्या में रोजगार की संभावना हैं, लेकिन उद्यमियों को सरकारी उदासीनता और बिजली जैसी समस्याओं से जूझना पड़ रहा है. ऐसे में मदद का अभाव और जिम्मदारों की उदासीनता कहीं न कहीं उद्यमियों के लिए मुसीबत बन जाती हैं. जिनके सहारे काम नहीं किया जा सकता, लेकिन मजबूरी ऐसी है कि, उन्हें सुलझाने वाले इन्हें सुलझाना नहीं चाहते और उद्योग लगाने वाले करोड़ों खर्च करने के बाद भी समस्याओं ने उबर नहीं पाते.

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