मंडला।जिले में दुनिया का सबसे फाइन क्लास ग्रेनाइट फिनिशिंग का काम होता है. जिसकी चमक से विदेशी भी प्रभावित होते हैं, लेकिन कोरोना संकट के चलते ट्रांसपोर्ट की सुविधा नहीं मिल पाने से करोड़ों का माल प्लांट में ही जाम पड़ा है. जबकि फिनिशिंग का काम लगातार चल रहा है और खर्च है कि कम होने का नाम नहीं ले रहा, ऐसे में लोगों को रोजगार देने वाले इस उद्योग को अब सरकारी मदद की दरकार है.
मंडला जिले के लिए कुछ करने की चाह और जिले को रोजगार मुहैया कराने की सोच के चलते मृदुला काल्पिवार ने ग्रेनाइट पत्थर के फिनिशिंग का उद्योग करीब 8 करोड़ रुपए की लागत से शुरू किया. पहले तो ग्रेनाइट के ब्लॉक, राजस्थान में रिफाइन करने के लिए भेजे जाते थे, लेकिन बाद में जिले के प्लांट में ही दुनिया के सबसे अच्छे क्वालिटी वाले पत्थर को तैयार किया जाने लगा. इस ग्रेनाइट ने देश के साथ ही विदेशों में भी खूब पहचान बनाई है, लेकिन मार्च से कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन के बाद से आने वाली मुसीबतों का जो सिलसिला शुरू हुआ, उससे आज भी मृदुला और किशोर काल्पिवार जूझ रहे हैं.
बहुत खास है आधुनिक मशीनों वाला ये प्लांट
मंडला के इस कारखाने में सीधी से आने वाले बड़े-बड़े पत्थरों के ब्लॉक को आधुनिक विदेशी मशीनों से काटा जाता है, फिर इसकी फिनिशिंग की जाती है. जिसके बाद देश के बाहर भी ग्रेनाइट के शौकीन और व्यापारी इसे लेने को तैयार रहते हैं. इस कारखाने में जो अत्याधुनिक मशीनें हैं, वो हमारे देश के कुछ ही राज्यों में हैं, जिनकी संख्या उंगलियों में गिनी जा सकती हैं. इन ऑटोमेटिक मशीनों के ऑपरेटर भी दूसरे प्रदेश के ऐसे एक्सपर्ट हैं, जिन्हें ग्रेनाइट को तराशने में महारत हासिल है.
जिले को रोजगार देना चाहती हैं मृदुला
मृदुला का कहना है कि, जिले से बड़ी संख्या में लोग दूसरे प्रदेशों के लिए पलायन करते हैं, जो लॉकडाउन के बाद वापस लौटे हैं. इस पलायन को रोकने के लिए जिले में ही ऐसे उद्योग शुरू किए जाने की जरूरत है. मृदुला चाहती हैं कि, सरकार जिले के उद्यमियों की मदद करें और ऐसी सुविधाएं उपलब्ध कराए, कि जिले में ही उद्योगों की शुरुआत हो, लेकिन जहां बिजली के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता हो, ऐसे में किसी भी उद्योग को चला पाना बहुत मुश्किल है. वहीं बार-बार बिजली की आवाजाही से कुछ घंटों में ही लाखों का नुकसान हो जाता है.
कोरोना ने बढ़ाई मुश्किलें
मृदुला ने बताया कि, लॉकडाउन के चलते महज 40 प्रतिशत वर्कर ही उनके पास रुक पाए हैं और बाकी लोग अपने घर चले गए हैं. ऐसे में कम वर्कर के कारण ब्लॉक की लोडिंग से लेकर कटिंग पॉइंट तक पहुंचना और हर एक परत को अलग-अलग करने में समय और बिजली की बर्बादी हो रही है. वहीं लोग नहीं होने पर टूट फुट की संभावनाएं भी बहुत ज्यादा बढ़ गई हैं, जो अलग से नुकसानदेह है. फिनिशिंग और पॉलिशिंग के भी लिए जितने एक्सपर्ट चाहिए, वे नहीं हैं, ऐसे में मशीनों में आने वाला खर्च तो उतना ही है, लेकिन आऊटपुट पहले के मुकाबले आधा रह गया है.