मंडला। इसमें कोई शक नहीं कि, कोरोना वायरस दुनिया के लिए काल बनकर आया है. इस वायरस की वजह से हजारों लोग असमय ही काल के गाल में समा गए. कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए देशभर में लॉकडाउन लगाया गया. लॉकडाउन से पूरा देश थम सा गया. कामकाज ठप हो गए. जिसका सबसे ज्यादा असर गरीबों पर हुआ. हालांकि सरकार ने गरीबों के लिए राशन- पानी से लेकर हर चीज की व्ययवस्था करने का दावा किया, लेकिन अचानक लगे लॉकडाउन की वजह से बड़ी संख्या में लोग भुखमरी के शिकार भी हुए. इनमें वो असहाय लोग भी शामिल हैं, जो दिव्यांगता, परिवारिक या सामजिक कारणों से भीख मांगने को मजबूर हो गए. जिसका एक नजारा इन दिनों मंडला में नर्मदा घाटों पर देखने को मिलता है.
स्थानीय लोगों का कहना है कि, लॉकडाउन के बाद ही यहां भिक्षावृत्ति करने वाले लोगों की संख्या में इजाफा हुआ है. जिनमें बच्चे तक शामिल हैं. लॉकडाउन के समय जब हर जगह सूनापन था. तब यहां भिखारी कम ही नजर आए. लेकिन अनलॉक के बाद से एक बार फिर से भिक्षावृत्ति करते हुए लोग नज़र आने लगे हैं.
मजबूरी के चलते भीख मांगने को मजबूर बुजुर्ग
नर्मदा के घाटों पर भिक्षा मांगने वालों में सबसे ज्यादा संख्या बुजुर्गों की है. हालांकि उनका कहना है कि, कोई सहारा न होने की वजह से वे मजबूरी में भिक्षा मांगते हैं. लॉकडाउन का वक्त तो उनके लिए मुसीबतों में गुजरा, जहां वे एक-एक पैसे को मोहताज रहे. इनमें से कई बुजुगों के पास सिर छिपाने के लिए छत तक नहीं है. यही वजह है कि, स्याह रात काटने के लिए नर्मदा घाटों के किनारे लगे टीन के शेड इनका घर हैं. दो पोटलियों में सारी जरूरतों का सामान रखकर ये मजबूरी में भीख मांगते हैं.
बड़ा सवाल यह है कि, आखिर भीख मांगने वाले इन बुजुर्गों को शासन की योजनाओं का लाभ क्यों नहीं मिलता. इसकी भी एक बड़ी वजह सरकारी उदासीनता ही है. जहां कई लोगों पेंशन कार्ड नहीं बने, तो किसी का राशन कार्ड नहीं बना, यही वजह है कि, तरह-तरह की परेशानियों में उलझे ये लोग भीख मांगने को मजबूर हैं.