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वैदिक काल की परम्परा का निर्वाह करते हैं ग्वालवंशी, श्रीकृष्ण ने दिया था गोवर्धन पूजा का आदेश - Bhai Dooj

मंडला जिले में वैदिक काल की परम्परा आज भी बनी हुई है. जिसमें दिवाली की रात से अहिरी नृत्य किया जाता है. अहिरी नृत्य ग्वालवंशियों के द्वारा की जाती है. वहीं भाई दूज के दिन मंडई की शुरुआत होती है.

दीपावली की रात से शुरु होता अहिरी नृत्य

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Published : Oct 29, 2019, 11:27 PM IST

Updated : Oct 29, 2019, 11:43 PM IST

मण्डला। जिले की परंपरा का अभिन्न अंग है अहिरी नृत्य, जिसकी शुरुआत दिवाली की रात से होती है. जिसके बाद भाई दूज के दिन मंडई की शुरूआत होती है. मंडई की कल्पना बिना अहिरी नृत्य और चंडी के नहीं की जा सकती. वहीं लोगों का हुजूम भी इस नृत्य को देखने के लिए बड़ी संख्या में उमड़ता है.

दीपावली की रात से शुरु होता अहिरी नृत्य


अहिरी नृत्य जिसे छत्तीसगढ़ में कहा जाता है राउत नाचा-
अहिरी नृत्य जिसे छत्तीसगढ़ में राउत नाचा भी कहते हैं. जिसकी शुरुआत दिवाली के दिन से यदुवंशियों के द्वारा पूजा-अर्चना के बाद से होती है. इस दिन गोवर्धन की पूजा करते हैं, जिसका आदेश भगवान कृष्ण ने दिया था. माना जाता है कि वैदिक काल में ग्वालवंश इंद्रदेव की पूजा करते थे, जिसे द्वापर में भगवान कृष्ण ने ये कह कर बन्द करा दिया कि गौमाता की सेवा करने वालों के लिए गोवर्धन की पूजा करना आवश्यक है, तब से इस परम्परा की शुरुआत हुई है.


यदुवंशी मंच पर करते नृत्य प्रदर्शन-
सामूहिक रूप से ग्वालवंश के द्वारा पारम्परिक वेशभूषा के साथ एक स्थान पर एकत्रित होकर मंडई करते है. पहले यदुवंशी मंच पर नृत्य प्रदर्शन कर पूजा करते थे, जो आज भी देखा जाता है, लेकिन लोगों की भीड़ के चलते मंडई का स्वरूप बदल गया है. अब लोगों के जरूरत की चीजें और दूसरे तरह की दुकानों के साथ ही मनोरंजन के लिए झूले और अन्य साधन भी आने लगे है.


घर में छाहूर की मदद से नकारात्मक चीजें होती हैं दूर-
मण्डला में मंडई की शुरुआत आज भी इसी परंपरा के साथ होती है, जहां पहले दिवाली की रात अहीर पूजा करते हैं. वहीं हर घर जाकर वहां की नकारात्मक ऊर्जा खास झाड़ की पत्तियों और मोरपंख से बने छाहूर की मदद से निकलते हैं. जिन्हें बदले में लोग इनाम देते हैं. मंडई की शुरुआत चंडी पूजा के बाद होती हैं. यहां लोग अपनी मुसीबतों और बाधाओं को चावल के दाने और उड़द से अपने ऊपर घुमा कर फेंकते हैं. जिसके बाद अपने खास तरह के दोहे गाकर ये ग्वाल वंशी मंच पर पारम्परिक वेशभूषा और वाद्ययंत्र मांदर,मवेशी की सींघ से बनी तोरहि, कांसे की थाल, कुल्हाड़ी, फरसे और डंडे के साथ नाचते हैं.

Last Updated : Oct 29, 2019, 11:43 PM IST

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