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300 साल पहले 'स्वर्णमसि' में सोने की स्याही से भरा गया रंग, चित्रकारी का है नायाब नगीना - mandla news

कला अभिव्यक्ति का वो माध्यम है, जिसके जरिये खींची गयी लकीरें और उनमें भरे गये रंग हजारों शब्दों पर भारी पड़ते हैं. हिंदुस्तान कलाओं का वो गुलदस्ता है. जिसमें लगे हर फूल का अपना अलग रुतबा और महत्व है. जिसे सहेजने का काम पुरातत्व विभाग बखूबी कर रहा है. खासकर आदिवासी संस्कृति आज भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है. ऐसी ही एक धरोहर स्वर्णमसी पर ईटीवी भारत की नजर पड़ी, जिस पर दर्ज अक्षर सोने की स्याही से उकेरे गये हैं.

स्वर्णमसि चित्रकला

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Published : Jul 25, 2019, 7:50 PM IST

मण्डला। स्वर्णमसि मण्डला के इतिहास की वो धरोहर है, जो यहां की सुख-समृद्धि की तस्दीक करती है. इसके हर एक पन्ने पर दर्ज चित्रकला के नमूने का कोई सानी नहीं है. गोंड़ी लोककला संग्रहालय में संरक्षित ऐतिहासिक धरोहर करीब 300 साल पुरानी है, जिस पर चित्रकला के जरिये माहिष्मति साम्राज्य का समृद्ध इतिहास तारीख पर दर्ज है. जिसके पन्नों पर खींची गयी लकीरों में जो रंग भरे गये हैं, उसे तैयार करने के लिए सोने की स्याही का उपयोग किया गया है. जो अपने आप में अद्भुत है.

300 साल पुरानी स्वर्णमसि कला

ये चित्रकला का वो नायाब नगीना है, जिसमें महाभारत, गीता जैसे धार्मिक ग्रंथों का वृतांत बड़ी ही बारीकी और खूबसूरती के साथ उकेरा गया है, जिनमें रंगों के साथ सोने की स्याही का उपयोग किया गया है. इतिहासकारों के अनुसार स्वर्णमासी की रचना 300 साल पहले की गई थी, लेकिन इसे किसने बनवाया था, ये किसी को पता नहीं है. माना जाता है कि उस दौर में लोग कम पढ़े-लिखे होते थे. लिहाजा, उन्हें समझाने के लिए किस्से-कहानियों के साथ चित्रों का भी प्रयोग किया जाता था.

स्वर्णमसी की जानकारी पुरातत्व विभाग के पास नहीं है, पर वहां कार्यरत हेमन्तिका शुक्ला ने बताया की स्वर्णमसी की मूल प्रति लोककला संग्रहालय के संचालक गिरिजा शंकर अग्रवाल के पास सुरक्षित है, जिसे देखने का सौभाग्य कम ही लोगों को मिला है. तत्कालीन मण्डला कलेक्टर लोकेश जाटव की नजर जब इस पुस्तक पर पड़ी तब उन्होंने इसकी प्रतियां संग्रहालय में संरक्षित करवायी, ताकि इस कला के बारे में आवाम को भी पता चल सके.

स्वर्णमसी की प्रतियां देख सबके मन में मूल प्रति देखने की उत्सुकता होती है क्योंकि कला अभिव्यक्ति का वो माध्यम है. जो लोगों को पुरानी परंपराओं से सिर्फ जोड़ता ही नहीं, बल्कि बहुत कुछ सीख भी देता है. 300 साल पुरानी स्वर्णमसी पर हुई चित्रकारी देखकर लगता ही नहीं कि वो दौर मौजूदा दौर से किसी मायने में कम रहा होगा.

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