इंदौर। मध्यप्रदेश में देवी अहिल्याबाई होल्कर की महिला रोजगार उन्मुखी विरासत का प्रतीक माने जाने वाली महेश्वरी साड़ी के निर्माण में 300 सालों बाद भी होल्कर कालीन डिजाइन की परंपरा निभाई जा रही है. खरगोन के महेश्वर में बनाई जाने वाली इस साड़ी की दुनिया भर में भारी मांग है. जिसे अब इसे तैयार करने वाले कारीगर भी पूरा नहीं कर पा रहे हैं. यही वजह है कि भारत सरकार इस बुनाई परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए महेश्वरी साड़ी (Maheshwari Saree) निर्माण को आगे बढ़ाने की पहल कर रही है. सरकार अब प्रवासी भारतीय सम्मेलन जैसे आयोजनों में भी अपने इस दुर्लभ प्रोडक्ट को प्रमोट कर रही है.
होल्कर की विरासत महेश्वरी साड़ी: मालवा अंचल की चर्चित शासक रहीं देवी अहिल्याबाई होल्कर ने अपने शासनकाल में होल्कर रियासत के महेश्वर अंचल में कृषि कार्य करने वाली महिलाओं को आजीविका और रोजगार प्रदान करने के लिए महाराष्ट्रीयन साड़ी की तरह ही खास तरह की साड़ी बनाने की शुरुआत की थी. इसके बाद बाद में इस साड़ी का नाम महेश्वर अंचल के कारण महेश्वरी साड़ी पड़ गया. स्थानीय बुनकरों द्वारा हाथ से बुनाई के करघे तैयार की जाने वाली साड़ी क्योंकि स्थानीय रेशम और शुद्ध सूत से तैयार होकर पारंपरिक रंगों से रंगी जाती थी, इसलिए यह धीरे-धीरे दुनिया भर में चर्चित हुई. यह साड़ी अपने पारंपरिक डिजाइन और कॉटन की शुद्धता के कारण आज देश और दुनिया भर में प्रसिद्ध है.
महेश्वरी साड़ी की पारपंरिक डिजाइन:महेश्वरी साड़ी बनाने वाले महेश्वर के अंसारी परिवार के साड़ी कारीगर अलाउद्दीन अंसारी बताते हैं कि उनके घर में तीसरी पीढ़ी में भी महारानी अहिल्याबाई होल्कर और यशवंत राव होल्कर की रोजगार आधारित पहल के फलस्वरूप साड़ियां बनाई जा रही हैं. उनके द्वारा आज भी हर साड़ी में डिजाइन अहिल्याबाई के राजवाड़ा में उल्लेख डिजाइन का ही होता है जिसके डिजाइन और बॉर्डर के पैटर्न में कभी भी परिवर्तन नहीं हुआ.