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मध्यप्रदेश में इस जगह पिंडदान करने से मिलता है गया जी जितना फल, देखिए खबर - पिंडदान और तर्पण

बड़वाह में एक ऐसा स्थल है, जहां पर श्राद्ध के दौरान पिंड दान और तर्पण करने से गयाजी में किए गए पिंड दान के समान फल प्राप्त होता है, जिसके लिए यहां दूर दूर से लोग आते हैं. फिलहाल लोग यहां पहुंच रहे हैं और श्राद्ध, पिंड दान और तर्पण कर रहे हैं.

गयाजी शिला में पिंडदान करने का महत्व

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Published : Sep 21, 2019, 10:07 AM IST

खरगोन। 14 सितंबर से शुरू हुआ पितृपक्ष 28 सितंबर तक चलेगा. इस बीच लोग अपने पूर्वजों को याद कर और उनकी तृप्ति के लिए श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण कर रहे हैं. मान्यता है कि बिहार राज्य के गयाजी में भगवान पितरों को श्रद्धापूर्वक किए गए श्राद्ध से मोक्ष प्रदान कर देते हैं. इसी तरह का स्थान खरगोन जिले के बड़वाह से 18 किलोमीटर दूर स्थित है.

बड़वाह स्थित गयाशिला के यहां पिंडदान करने दूर-दूर से आ रहे लोग

इस स्थान पर श्राद्ध के दौरान पिंडदान और तर्पण करने से गयाजी में किए गए पिंडदान के समान फल प्राप्त होता है. यही वजह है कि इस स्थान पर दूर दूर से लोग पहुंचते हैं.

ये स्थान बड़वाह से गुजरने वाला कावेरी नदी के तट पर पर पहाड़ों के बीच स्थित है. जहां पांडव कालीन जीर्णशीर्ण शिव मंदिर सहित खण्डर में तब्दील अनेक मूर्तियों के साथ स्वयंभू प्रकट हुई गयाशिला मौजूद है. पंडित धर्मेंद्र पाठक बताते हैं कि एक कक्षा प्रचलित है.स्कंद पुराण के अनुसार द्वापर युग मे मां नर्मदा की भक्ति में लीन रहकर निरन्तर परिक्रमा करने वाले मार्कण्डेय ऋषि ने इसी स्थान पर चतुर्मास किया था.


चतुर्मास के दौरान मार्कण्डेय ऋषि ने 16 श्राद्ध में यहां स्थित गयाशिला पर अपने पूर्वजों के पिंडदान व तर्पण के लिये इच्छा जताई और भगवान श्रीहरि विष्णु का ध्यान व तप किया तो विष्णु भगवान ने ब्राह्मण का वेश धारण किया और स्वयंभू प्रकट हुई गयाशिला पर तर्पण करवाया था, जिससे मार्कण्डेय ऋषि को गयाजी स्थित गयाशिला का फल प्राप्त हुआ था.

किदवंती है कि आज भी जो श्रद्धालु यहा पर पितरों का तर्पण करता है, उसे भी गयाजी का फल प्राप्त होता है. पंडित धर्मेंद्र पाठक बताते हैं कि गयाजी की तहर यहां भी एक नदी है जो विलुप्त होकर कावेरी में मिल रही है. इस जगह पर पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान अपने पूर्वजों का तर्पण किया था.

पितृपक्ष क्या है और इसमें क्या होता है
पितरों को प्रसन्न करने के लिहाज से आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक के पंद्रह दिनों का (इस वर्ष 14 सितंबर से 28 सितंबर) विशेष महत्व है, जो पितृपक्ष कहलाता है. जिसके बाद प्रतिपदा श्राद्ध, महालयारंभ होता है, जिसमें मां शक्ति की पूजा-अराधना का विधान है. मान्यता है कि पंद्रह दिनों में लोग अपने पूर्वजों की मृत्युतिथि पर श्राद्ध-तर्पण करते हैं. मृत्यु के पश्चात्‌ पिता-माता व पूर्वजों की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक किये जाने वाले कर्म को पितृ श्राद्ध कहते हैं.

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