खरगोन। शादी के मौके पर घोड़े घोड़ियों की मांग बढ़ जाती है. क्योंकि दूल्हे राजा को घोड़ी चढ़कर ही शादी के मंडप तक पहुंचना होता है. घोड़ी चढ़ने की रस्म के बीना शादी पूरा नहीं होता है. जिसके लिए प्रतिवर्ष घोड़ा व्यवसाई अच्छी नस्ल के घोड़े और घोड़ियों की खरीदारी करते हैं. इस वर्ष भी व्यवसायियों ने बड़ी उम्मीद के साथ कर्ज लेकर घोड़े -घोड़ी की खरीदी की थी. लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते हुए लॉकडाउन के कारण व्यवसायियों पर लॉक डाउन का चाबुक चल गया. जिससे व्यापारी आर्थिक संकट से घिर गए हैं. यही वजह है कि अब घोड़ा व्यवसायी बेहद परेशान हैं.
घोड़ा पालकों पर चला लॉकडाउन का चाबुक, इलाज न मिलने से तीन की मौत - Horse traders demand financial help from Shivraj
कोरोना काल में शादी नहीं हो रही हैं और न हीं घोड़ियों पर बारात निकाली जा रही है, ऐसे में घोड़ा व्यवसाय पर आर्थिक संकट आ गया है, हालात ये हैं कि पैसे की कमी के कारण घोड़ों को इलाज नहीं मिल पाया और तीन घोड़ों की मौत हो गई.
![घोड़ा पालकों पर चला लॉकडाउन का चाबुक, इलाज न मिलने से तीन की मौत Horsemen surrounded by economic crisis in Khargone district](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/768-512-7575661-874-7575661-1591898101827.jpg)
घोड़ा व्यवसाई इरफान का कहना है कि उन्होंने कर्ज लेकर अच्छी नस्ल के घोड़े गुजरात, महाराष्ट्र से खरीदे थे. उन्हें उम्मीद थी कि शादियों के सीजन में घोड़े वालों का कर्ज चुका देंगे. लेकिन लॉकडाउन की वजह से सीजन खराब हो गया. कोरोनावायरस के कारण हुए लॉकडाउन में इलाज नहीं मिलने के कारण दो घोड़ों की मौत भी हो गई. अब कर्ज चुकाने की चिंता है. घोड़े वाले भी कर्ज चुकाने के लिए तकाजा कर रहे हैं. जिसके चलते उन्होंने प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से आर्थिक मदद की गुहार लगाई है.
शेख जमील भी घोड़ों का व्यवसाय करते हैं उनका कहना है कि कर्ज लेकर उन्होंने घोड़े खरीदे थे. लेकिन लॉकडाउन के कारण शादियों में बारात नहीं लगाई गई और कई ऑर्डर कैंसिल हो गए, जिससे अब घोड़े के व्यवसायियों का कर्ज लौटाना मुश्किल हो रहा है. लॉकडाउन में घोड़ों का इलाज नहीं मिल पाने से शेख जमील का भी एक घोड़ा मर गया. शहर के अन्य घोड़े वालों का यह भी कहना है कि लॉकडाउन में शादियां निरस्त हो गई. जिससे आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने कहा, 'हमारे पास इतने भी पैसे नहीं कि इन घोड़ों की खुराक खरीद सकें, हम सभी अपना पेट पाले या घोड़ों को खिलाएं.'