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भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होने जेल से बाहर आए थे सैनानी, घंटाघर चौक पर फहराया था तिरंगा

निमाड़ क्षेत्र के तीन स्वतंत्रता सेनानी मंंडलेश्वर के बैजनाथ महोदय, खरगोन के विश्वनाथ खेड़े और कुक्षी के काशीनाथ त्रिवेदी सहित 64 अन्य कैदियों के साथ 2 अक्टूबर 1942 को महात्मा गांधी के जन्मदिन पर जेल तोड़कर नगर के घंटाघर चौक पर तिरंगा लहराया था.

Quit India Movement
भारत छोड़ो आंदोलन

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Published : Aug 8, 2020, 9:35 PM IST

खरगोन। अंग्रेजों के शासनकाल में 8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई थी. इसका असर जिले की महेश्वर तहसील के मंडलेश्वर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों पर भी हुआ था. महात्मा गांधी द्वारा इस आंदोलन की शुरुआत के बाद अंग्रेजों ने विभिन्न नगरों में प्रदर्शन कर रहे प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों को पकड़कर जेल में डालना शुरू कर दिया गया था. उसका कारण यह था कि यदि आंदोलन में महात्मा गांधी के सहयोगी साथ नही होंगे तो आंदोलन सफल नहीं हो पाएगा.

भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़ा मंडलेश्वर का इतिहास

इस आंदोलन में निमाड़ क्षेत्र के तीन स्वतंत्रता सेनानी मंडलेश्वर के बैजनाथ महोदय, खरगोन के विश्वनाथ खेड़े और कुक्षी के काशीनाथ त्रिवेदी सहित 64 अन्य कैदियों के साथ 2 अक्टूबर 1942 को महात्मा गांधी के जन्मदिन के अवसर पर जेल तोड़कर नगर के घंटाघर चौक पर तिरंगा लहराया था. इस दौरान उस समय की होलकर स्टेट के डीआईजी अब्दुल रशीद खान का कार्यालय भी मंडलेश्वर में स्थित था. अब्दुल रशीद खान वर्तमान फिल्म स्टार सलमान खान के दादाजी थे.

रात में तोड़ी जेल, सुबह दे दी गिरफ्तारी

देशभर में महात्मा गांधी के सहयोगियों को जेल में बंद कर दिया गया था और जेल में बंद सहयोगी, आंदोलन में अपना योगदान देने के लिए तड़प रहे थे. इसलिए मंडलेश्वर स्थित तात्कालीन जिला जेल में बंद स्वतंत्रता सेनानियों ने जेल तोड़कर घंटाघर पर तिरंगा फहरा कर शांतिपूर्वक रातभर प्रदर्शन किया. प्रदर्शन के दौरान सभी कैदियों ने भजन कीर्तन कर रात गुजारी और सुबह फिर जेल पर जाकर गिरफ्तारी दे दी.

खरगोन स्थित घंटाघर
बेबस हो गया था प्रशासन

2 अक्टूबर 1942 को 67 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने जेल तोड़ कर घंटाघर चौक पर प्रदर्शन किया था. तब तात्कालिक डीआईजी एवं वर्तमान फिल्म स्टार सलमान खान के दादाजी अब्दुल रशीद खान एवं प्रशासन से जुड़े अन्य अधिकारी इन 67 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के आगे बेबस दिखाई दिए थे. रात 8 बजे से अगले दिन सुबह तक ये 67 स्वतंत्रता संग्राम सेनानी झंडा चौक पर डटे रहे प्रशासन इन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से विनती करता रहा लेकिन इन्होंने किसी की नहीं सुनी. अगले दिन इन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने खुद अपनी गिरफ्तारी दी थी.

घंटाघर को झंडा चौक भी कहा जाता है

2 अक्टूबर 1942 को 67 क्रांतिकारियों ने मंडलेश्वर जिला जेल तोड़कर घंटा घर चौक पर तिरंगा फहराया था. उसके बाद से इस चौक का नाम झंडा चौक पड़ गया. 1942 से 1946 तक हर 2 अक्टूबर और आजादी के बाद से 1947 तक 15 अगस्त एवं 1950 से वर्तमान तक 15 अगस्त एवं 26 जनवरी को झंडा चौक पर तिरंगा फहराया जाता है, जबकि राष्ट्रीय पर्व पर नगर का सार्वजनिक आयोजन शासकीय स्कूल मैदान पर आयोजित किया जाता है, पर झंडा चौक पर तिरंगा फहराने के प्रथा आज तक कायम है.

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