खरगोन।देश में सफेद सोने के नाम से नाम से जाने जाने वाला कपास निमाड़ की मुख्य फसल है, इस कारण निमाड़ को सफेद सोने की खान कहा जाता है. यहां के ज्यादातर किसान कपास की उपज और उसके अच्छे मूल्य पर निर्भर रहते हैं, लेकिन इस साल निमाड का कपास किसान मायूस नजर आ रहा है. बात करें खरगोन की तो लॉकडाउन खुलने के बाद यहां की मंडियों में कपास की आवक बढ़ने तो लगी है, लेकिन भाव नहीं मिल पाने कारण किसान काफी परेशान है.
कपास के किसानों को नहीं मिल रहा भाव लागत से कम मिल रहा दाम
किसान सेवकराम ने बताया कि 10 से 15 हजार की लागत लगाने के बाद भी उनका कपास 2 हजार से ढ़ाई हजार के बीच बिक रहा है, जबकी आम तौर पर इसकी कीमत 5 हजार से उपर होती है. वहीं एक अन्य किसान प्रमोद डोंगरे ने बताया कि लागत अधिक है और उन्हें भाव कम मिल रहा है. किसानों के पास कपास रखने की जगह नहीं है इस लिए वो भाव की इंतजार भी नहीं कर सकते.
कपास की नमी के कारण गिरा भाव
कपास व्यापारी कल्याण अग्रवाल ने बताया कि मंडियों में कपास की आवक बढ़ी है, लेकिन किसान जो कपास लेकर आ रहे हैं उसमें 30 प्रतिशत तक कि नमी है, इसके अलावा बाजार में कपास के भाव भी टूट गए हैं, जिस कारण किसान को पहले जैसा दाम नहीं मिल पा रहा है, किसानों को चाहिए कि वह कपास सुखाकर लाए जिससे उन्हें कुछ हद तक सही दाम मिल पाए.
बढ़ी आवक घटा रेट
खरगोन के मंडी प्रभारी रमेश चन्द्र भास्करे ने बताया कि मंडी में रोजाना 3 सौ के करीब कपास के वाहन और दो सौ के करीब बैल गाड़ियां आ रही है. मंडी में कपास के भाव तीन हजार से चार हजार है अगर औसत देखें तो अभी पैंतीस-छत्तीस सौ के करीब रेट बना हुआ है. इन दिनों मंडी में आ रहा कपास गिला होने से काला पड़ गया है, जिस कारण इसका रेट कम हुआ है.
पहले के मुकाबले गिरा दाम
सरकार बड़ी मात्रा में किसानों से गेहूं की खरीदी समर्थन मूल्य पर खरीद की, लेकिन कपास की खरीदी बाजार में मनमाने भाव पर की जा रही है.कोरोना के कारण देश के विभिन्न हिस्सों में कपास झीन, कपड़ा मिल, कपास्या प्लांट, सोया प्लांट में काम धीमा है, जिसके चलते व्यापारी कम ही कपास की खरीदी कर रहे और अगर कर भी रहे हैं तो दाम नहीं दे रहे हैं. पिछले साल कपास का भाव 5 हजार से 6 हजार 5 के करीब था, जबकि अभी किसानों से कपास मात्र 4 हजार प्रति क्विंटल की दर से खरीदा जा रहा है, जो किसानों की नजरों में मिट्टी के भाव हैं.